उत्तराखंड में आई
भीषण त्रासदी से निपटने में नाकाम रहने के साथ ही मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने एक
बार फिर से ये साबित कर दिया कि आखिर क्यों वे उत्तराखंड के लिए एक राजनीतिक
त्रासदी की तरह हैं। 16 जून को केदारनाथ में आए मौत के सैलाब के बाद से ही बहुगुणा
सरकार एक तमाशबीन की तरह सिर्फ मौत का तमाशा ही देखती रही..! सरकार का आपदा
प्रबंधन फेल हो चुका था और सरकार हर मोर्चे पर नाकाम साबित हो रही थी। विजय
बहुगुणा का दरअसल पता ही नहीं था कि इस भीषण त्रासदी से आखिर निपटा कैसे जाए..? (पढ़ें - बहुगुणा का सीएम बनना भी एक त्रासदी..!)
त्रासदी के बाद से
ही विजय बहुगुणा सुबह, दोपहर और शाम तीनों वक्त मीडिया के आगे एक बेबस मुख्यमंत्री
की तरह दिखाई दे रहे थे और कर रहे थे तो सिर्फ त्रासदी में हुई मौत के आंकड़ों की
कमेंट्री..! बहुगुणा सरकार के
पास न कोई एक्शन प्लान था और न ही प्रभावितों की मदद करने का जज्बा...वो तो भला हो
भारतीय सेना के जाबांज जवानों का जिन्होंने खुद को मौत के मुंह में झोंक कर लाखों
लोगों को मौतौ के मुंह से निकालकर सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया।
सेना काम कर रही थी और
बहुगुणा लाशों की गिनती की कमेंट्री..! बहुगुणा को लगा कि सरकार की छीछालेदर हो रही है तो करोड़ों
में मीडिया को मैनेज कर समाचार चैनलों में कमेंट्री करने लगे। बताने लगे कि कुदरत
के कहर के आगे सरकार बेबस है..!
दिल्ली में शीश
नवाने के बाद उत्तराखंड के वो दिल्ली वाले मुख्यमंत्री आपदा प्रभावित क्षेत्रों का
दौरा करने पहुंचे तो आपदा प्रभावितों से साफ कह दिया कि दो महीने आप अपनी सुरक्षा
खुद करो...सरकार कुछ नहीं कर सकती..! कहने का अंदाज भी ऐसा था कि मानो साल के 10 महीने बहुगुणा
सरकार उत्तराखंड की आवाम का पूरा ख्याल रखती हो..! हवाई जहाज में बैठकर
आपदा प्रभावित क्षेत्रों में पहुंचने वाले मुख्यमंत्री आपदा प्रभावितों को संबल
देने की बजाए...मदद का आश्वासन देने की बजाए जब ऐसा कहे कि अपनी सुरक्षा स्वंय करो
तो सोचिए क्या बीती होगी उन हजारों आपदा प्रभावितों पर जो मुख्यमंत्री का हवाई
जहाज जमीन पर उतरने से पहले उसे इस आस में टकटकी लगाए देख रहे थे कि ये जमीन पर
उतरेगा तो उनकी आधी परेशानियां तो ऐसे ही दूर हो जाएंगी लेकिन अफसोस उनके सपने उस
रहनुमा ने ही तोड़ दिए जिससे उन्हें सबसे ज्यादा आस थी..!
देहरादून लौटकर
मीडिया में शेखी बघारते हैं कि आपदा प्रभावितों को राशन पानी मुहैया कराया जा रहा
है जबकि जमीनी हकीकत तो ये है की उत्तराखंड के कई आपदा प्रभावित गांवों से भुखमरी
और खाने के लिए खून खराबे की ख़बरें सामने आ रही हैं..! जिन गांव वालों ने
अपने घर के राशन पानी से बाहरी प्रदेश से चार धाम यात्रा पर आए लोगों का पेट भरा
वे खुद दाने दाने को मोहताज हो रहे हैं लेकिन बकौल बहुगुणा सरकार राहत सामग्री
लोगों तक पहुंच रही है..!
देशभर से प्रभावितों
के लिए मदद के नाम पर करोड़ों की राशि के साथ ही भारी मात्रा में राहत सामग्री पहुंच
रही है लेकिन सरकार इसका सही प्रबंधन करने में भी नाकाम साबित हो रही है। पैसे
राहत कोष में जमा हो रहा है...राहत सामग्री गोदामों में या फिर खड़े ट्रकों में
खराब हो रही है लेकिन मुख्यमंत्री साहब को ये पता ही नहीं कि इसका इस्तेमाल कैसे
किया जाए..? (पढ़ें- वाह बहुगुणा ! हजारों मर गए, अब याद आया कर्तव्य..!)
बेहतर होगा कि अब भी
वक्त रहते लाशों की गिनती की बजाए किसी तरह त्रासदी में जिंदा बचे लोगों को लाश
में तब्दील होने से रोकने के लिए बहुगुणा साहब अपनी कमेंट्री बंद करें और राहत एवं
पुनर्वास में पूरी ताकत लगा दें ताकि काल की तरह आपदा प्रभावितों के सिर पर खड़े
बरसात के दो महीनों में देवभूमि में और लाशों के ढ़ेर न लगें..!
deepaktiwari555@gmail.com
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें