बिहार में चुनाव में
बस अब थोड़ा वक्त बचा है, ऐसे में सत्ता के महायुद्ध की तैयारियां भी जोर पकड़ने
लगी हैं। बिहार का चुनाव हमेशा से ही दिलचस्प रहा है, लेकिन इस बार बिहार चुनाव के
नतीजे सिर्फ सरकार बनाने के गुणा-भाग तक ही सीमित नहीं रहेगें बल्कि बिहार के जरिए
देश में राज करने वालों का राजनीतिक भविष्य भी तय करेगें।
केन्द्र की सत्ता
में काबिज होने के बाद भाजपा जहां मोदी लहर के सहारे बिहार में भी भगवा फहराने का
सपना देख रही है, वहीं मोदी लहर को हवा करने के लिए बिहार की राजनीति के दिग्गज एक
मंच पर आ गए हैं।
ये सत्ता की ही
लालसा है कि लालू और नीतिश कुमार की दोस्ती पहले “दुश्मन न करे दोस्त ने वो काम किया है” गुनगुनाते हुए दुश्मनी
में तब्दील हुई और फिर से सत्ता के लिए दोनों दुश्मनी भुला, “य़े दोस्ती हम नहीं
तोड़ेंगे” का राग गुनगुनाते
दिखाई दे रहे हैं।
दुश्मनी से वापस
दोस्ती का ये सफर कितना हसीन रहेगा इसके लिए दोस्ती का ऐलान करते वक्त लालू प्रसाद
यादव के इस बयान से लगाया जा सकता है कि “वे बिहार में भाजपा को रोकने के लिए किसी भी ज़हर को पीने
के लिए तैयार हैं”।
ज़हर का प्याला तो सामने
था नहीं, मतलब साफ है कि ये ज़हर और को नहीं बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार
हैं, जिनके नेतृत्व में लालू की राजद और जदयू ने चुनाव लड़ने का फैसला लिया है।
लालू के राज को
जंगलराज बताकर जनता का भरोसा जीतने वाले नीतिश कुमार कैसे जनता के बीच लालू के
हाथों में हाथ डाल वोट मांगेंगे ये देखना उतना ही दिलचस्प होगा, जितना की लालू का
नीतिश को मुख्यमंत्री बनाने के लिए बिहार की जनता से वोट मांगना।
सत्ता की सीढ़ी में
अपनी पीढ़ी को चढ़ाने में विश्वास रखने वाले लालू प्रसाद यादव के लिए परिवारवाद से
बाहर निकलना इतना आसान तो नहीं लगता। आसान होता तो शायद राबड़ी देवी का नाम बिहार
की पूर्व मुख्यमंत्री की सूची में कभी नहीं जुड़ता लेकिन बिहार में ऐसा हुआ और इसे
संभव करने वाले लालू ही थे।
बिहार में सत्ता के
इस महायुद्ध में योद्धाओं की कमी होती नहीं दिख रही है, निर्णायक न सही लेकिन
जातिवाद के तड़के से सत्ता का गणित बिगाड़ने वाले योद्धा भी किंग मेकर बनने का
सपना देखने लगे हैं। कभी नीतिश के मांझी
रहे जीतनराम हो या फिर लालू प्रसाद के पप्पू यादव, अपनी अपनी पार्टी से
नाता तोड़ने के बाद ये दोनों योद्धा भी नीतिश और लालू की राह मुश्किल करने में कोई
कसर नहीं छोड़ रहे हैं।
कह सकते हैं कि बिहार
में इस बार सत्ता के लिए बिहार के इतिहास की सबसे रोचक जंग देखने को मिलेगी, लेकिन
दोस्ती-दुश्मनी-दोस्ती के इस पाठ को बिहार की जनता कितना समझ पाएगी, ये तो चुनावी नतीजे
ही तय करेंगे।
deepaktiwari555@gmail.com
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें