मणिपुर में हमारे वीर सैनिकों की शहादत के बदला जिस तरह से भारतीय सेना ने म्यांमार
सेना के साथ साझा ऑपरेशन में बड़े पैमाने पर उग्रवादियों के ठिकानों को ध्वस्त कर
उनका सफाया करने के बाद लिया, वो 18 वीर जवानों की शहादत के बाद दिल को एक सुकून
पहुंचाने वाली ख़बर थी।
ये बात अलग है कि जिस मां-बाप ने अपने लाल को खोया है, जिस बहन ने अपने भाई को
खोया है, जिस पत्नी ने अपने सुहाग को खोया है और जिन बच्चों के सिर से उनके पिता
का साया उठ गया है, उनका अपना तो कभी लौटकर नहीं आने वाला और न ही उसकी कमी कभी पूरी
होने वाली है, लेकिन ये ख़बर उनके दुख को कुछ हद तक कम जरूर करने वाली है।
भारतीय शूरवीरों की इस जवाबी कार्रवाई की चहुं ओर तारीफ हो रही है और केन्द्र
की मोदी सरकार भी इसका श्रेय लेने का कोई मौका नहीं छोड़ रही है। हालात तो ये है
कि मोदी की सेना मोदी के 56 इंच के सीने का बखान करते नहीं थक रही है। सोशल मीडिया
में मोदी की सेना के साथ ही 56 इंच के सीने का बखान करने में मोदी भक्त भी पीछे
नहीं हैं !
भारतीय सेना की यह जवाबी कार्रवाई निश्चित तौर पर काबिले तारीफ है, जैसा कि
कहा जा रहा है कि सीमा पार म्यांमार में भारतीय शूरवीरों ने खुद को खरोंच आए बिना
उग्रवादियों के ठिकानों को नेस्तनाबूद करने के साथ ही उग्रवादियों को भी मौत के
घाट उतार दिया है, वह वाकई में हर भारतीय का सीने को 56 इंच का कर देती है।
मोदी सरकार इसका जमकर श्रेय ले, कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन बात यहीं खत्म नहीं
हो जाती, क्योंकि बात सिर्फ मणिपुर की नहीं है। मणिपुर की बात होगी तो बात कश्मीर
की भी होगी। मोदी सरकार म्यांमार की कार्रवाई का श्रेय ले सकती है तो मोदी सरकार
को कश्मीर में जो हो रहा है, उसकी भी जिम्मेदारी लेनी होगी ! वो भी तब जब जम्मू-कश्मीर सरकार में पीएम नरेन्द्र मोदी वाली भारतीय जनता
पार्टी अहम सहयोगी है।
लेकिन कश्मीर में जो हो रहा है, उसकी जिम्मेदारी लेने के लिए मोदी सरकार का एक
भी मंत्री ट्विटर में नजर नहीं आता। तिरंगे की जगह पाकिस्तान के झंडे खुलेआम लहराए
जा रहे हैं, पाकिस्तान जिंदाबाद के नारों से घाटी गूंज रही है लेकिन ऐसा करने
वालों के खिलाफ कार्रवाई करने की हिम्मत शायद किसी में दिखाई नहीं देती। अलगाववादी
कश्मीर से लेकर दिल्ली तक सरकार और देश के खिलाफ जहर उगलते दिखाई देते हैं लेकिन
होता क्या है, ये बताने की शायद जरूरत नहीं है !
कुछ एक भाजपा नेताओं का ज़मीर राजनीति से इतर जागता भी है तो उनका कद इतना
छोटा है कि उनकी आवाज अलवागववादियों के नारों की गूंज में ही दम तोड़ देती है !
ऐसे वक्त में 56 इंच के सीने का बखान करने वालों को भी मानो सांप सूंघ जाता है।
ऐसा नहीं है कि इस पर बात नहीं होती, बातें बहुत बड़ी-बड़ी होती हैं, लेकिन ये
सिर्फ जुबानी जमा खर्च होता है, जो अक्सर ऐसी घटनाओं के बाद सरकार के बचाव में
मीडिया में परोस दिया जाता है।
फिलहाल तो यही उम्मीद करते हैं, 56 इंच के सीने का फुलाव कश्मीर से लेकर
कन्याकुमारी तक एक सा रहेगा, और जिस दिन ये होगा हर भारतीय का सीना भी खुद ब खुद 56
इंच का हो जाएगा।
deepaktiwari555@gmail.com
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