2014 के भाजपा के
प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र दामोदर दास मोदी दौड़ रहे हैं, बेतहाशा
दौड़ रहे हैं, बिना रूके दौड़ रहे हैं, गिर कर संभल रहे हैं फिर दौड़ रहे हैं, ये
छोड़िए मौका मिलते ही उड़ने से भी परहेज नहीं करते। बस हर हाल में मंजिल पा लेना
चाहते हैं, प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंच जाना चाहते हैं। आखिर मोदी कहां दौड़
रहे हैं, कहां गिर रहे हैं और कहां उड़ रहे हैं, इस पर बात करने से पहले मोदी के
चाहने वालों को जिक्र करना चाहूंगा जो किसी भी सूरत में मोदी को देश के अगले
प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं।
मोदी के चाहने वालों
को लगता है कि मोदी देश के प्रधानमंत्री बनेंगे तो देश की सारी समस्याओं को चुटकी
बजाते ही हल कर देंगे। फिर चाहे वो गिरते रुपए को थामने की बात हो, अर्थव्यवस्था
को पटरी पर लाने की बात हो, महंगाई को कम करने की बात हो, बेरोजगारी का मसला हो,
अपराध मुक्त समाज की बात हो या फिर अपने धूर्त पड़ोसी पाकिस्तान और चीन से सख्ती
से निपटने की बात हो। मोदी के चाहने वालों को ये लगने लगा है कि ये सब सिर्फ और
सिर्फ नरेन्द्र दामोदर दास मोदी के बूते की ही बात है। जाहिर है ये सब इतना आसान
तो है नहीं जितना कि मोदी समर्थक समझ रहे हैं और दूसरों को समझा रहे हैं।
खैर मोदी की दौड़
जारी है और मोदी के चाहने वाले भी मोदी को खूब दौड़ा रहे हैं और जिस तेजी से ये दौड़
चल रही है, उसे देखकर तो ऐसा लगता है कि मोदी समर्थकों का बस चले तो वे मनमोहन
सिंह को हटाकर मोदी को आज ही प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठा दें। दरअसल
प्रधानमंत्री की कुर्सी के लिए “मोदी रन” का सफर जारी है। मोदी
के गढ़ गुजरात से शुरू हुई “मोदी रन” देश के सभी राज्यों
से होकर गुजर रही है लेकिन “मोदी रन” गैर भाजपा शासित
राज्यों के साथ ही उन राज्यों में मोदी के लिए मुश्किलें खड़ी कर रही है, जहां पर
भाजपा के पास या तो गिनी चुनी सीटें हैं या फिर उन राज्यों में भाजपा की झोली सूनी
ही रही है।
मैंने सोचा क्यों न
मोदी रन में अपने भी हाथ आजमाएं जाएं। गुजरात से मोदी रन शुरु करते हुए मैंने भी
आज मोदी को दौड़ना में कोई कसर नहीं छोड़ी, पहले गुजरात, फिर महाराष्ट्र, फिर उत्तराखंड,
नरेन्द्र मोदी को एक पल के लिए भी आराम करने का मौका नहीं दिया। बस दौड़ाते रहा,
दौड़ाते रहा, लेकिन ये क्या जैसे ही राजस्थान आया मोदी की तो मानो रफ्तार ही थम
गयी। दो कदम दौड़ते ही मोदी धड़ाम से नीचे गिर जाते। समझ में नहीं आया कि आखिर
राजस्थान का किला फतह करने में क्यों मोदी को पसीने आ रहे हैं। 2009 के आम चुनाव
के नतीजे उठाकर देखा तो समझ में आया कि यहां तो 25 में से 20 लोकसभा सीटें
कांग्रेस के कब्जे में हैं, जबकि भाजपा के पास सिर्फ 4 लोकसभा सीटें है और एक बची
हुई सीट निर्दलीय के कब्जे में है। जाहिर है 4 से 25 न सही 20 में भी अगर पहुंचना
है तो दम तो लगाना ही पड़ेगा और ये राह इतनी आसान भी नहीं, शायद इसीलिए ही मोदी को
राजस्थान पार करने में पसीना आ रहा है।
मैंने सोचा ऐसे तो
मोदी प्रधानमंत्री कैसे बन पाएंगे, कैसे अपने पीएम इन वेटिंग के टिकट को कनफर्म कर
पाएंगे। अभी तो राजस्थान में ही एंट्री की है, इसके बाद तो आंध्र प्रदेश है, बिहार
है, उत्तर प्रदेश है, कर्नाटक है, तमिलनाडु है और न जाने कितने ऐसे राज्य जहां की
डगर मोदी के लिए आसान तो बिल्कुल भी नहीं रहने वाली।
खैर गिरते – पड़ते मोदी
ने आखिरकार राजस्थान का किला भी फतह कर ही लिया। राजस्थान के बाद मोदी पहुंचे
केरला लेकिन यहां तो हालात और भी मुश्किल निकले। मुश्किल होते भी क्यों न यहां की
20 लोकसभा सीटों में भाजपा शून्य जो है, जबकि कांग्रेस 13 सीटों की मालिक है। गिर
कर उठने के फिर से दौड़ में शामिल होने के कई मौके थे, लिहाजा ये पड़ाव भी पार हो
गया लेकिन इसके बाद आया भाजपा का दक्षिण का वो किला जिसे भाजपा ने बमुश्किल फतह
किया था लेकिन अब वो बीते जमाने की बात हो गयी है। वर्तमान में भले ही भाजपा के पास
कुल 28 में से 19 सीटें हों और कांग्रेस 6 सीटों की मालिक हो, लेकिन इसी साल
कर्नाटक में हुए विधानसभा चुनाव के नतीजे जो भाजपा को 2008 की 110 विधानसभा सीटों
से 40 सीटों पर ले आए, ये बताने के लिए काफी हैं कि 2014 में भाजपा के लिए 2009 का
इतिहास दोहराना बिल्कुल भी आसान नहीं होगा। जारी है...
“मोदी रन” में आज तो फिलहाल में कर्नाटक तक ही पहुंच पाया, अभी
तो कई राज्य बाकी हैं, जल्द लौटता हूं “मोदी रन PART -2” के साथ।
deepaktiwari555@gmail.com
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