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शुक्रवार, 27 सितंबर 2013

सियासी ड्रामे के जरिए ही सही, कुछ तो अच्छा हुआ !

राहुल गांधी ने पहली बार तो कुछ सही बोला है लेकिन यहां पर भी राहुल गांधी के इस बयान के पीछे की मंशा पर संदेह हो रहा है क्योंकि राहुल गांधी न तो विपक्ष में हैं और न ही यूपीए के किसी घटक दल के नेता कि जो अपनी ही सरकार के फैसले के खिलाफ आवाज उठाएं। वो भी उस यूपीए सरकार के फैसले पर जिसके अघोषित मुखिया वे और उनकी मां व यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी ही है। उस यूपीए सरकार के फैसले पर जिसके घोषित मुखिया प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह कुछ बोलें न बोलें लेकिन ये कहने में पीछे नहीं हटते की वे राहुल के लिए कुर्सी खाली करने के लिए हरदम तैयार हैं और राहुल गांधी प्रधानमंत्री पद के लिए सबसे योग्य और कांग्रेस में सर्वमान्य नेता हैं।
सवाल ये भी उठता है कि दागियों पर सुप्रीम कोर्ट के जिस फैसले को पलटने के लिए सरकार फैसले के बाद से ही कवायद कर रही थी उस पर राहुल आज तक चुप क्यों रहे..? क्यों राहुल गांधी को इससे पहले यूपीए सरकार की ये कवायद बकवास नहीं लगी और क्यों अचानक से राहुल गांधी को लगा कि इसे फाड़कर फेंक देना चाहिए..? हैरत तो तब होती है राहुल के इस बयान से कुछ मिनट पहले तक इस यूपीए सरकार के इस अध्यादेश को लाने के फैसले को सरकार में शामिल मंत्री और नेता जस्टिफाई करने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे थे। हालांकि केन्द्रीय मंत्री मिलिंद देवड़ा जैसे कुछ गिने चुने कांग्रेसी ऐसे थे जिन्हें सरकार का ये फैसला अखर रहा था लेकिन इनकी बात की भावना को समझने वाले यूपीए में शायद कोई नहीं था।
चापलूसी की हद तो तब हो जाती है जब अध्यादेश पर कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की नाराजगी के बाद सरकार में शामिल सभी मंत्रियों के साथ ही कांग्रेसी नेताओं के सुर बदल जाते हैं और अध्यादेश पर सरकार के फैसले को जस्टिफाई करने वाले ये कांग्रेसी और मंत्री अब राहुल गांधी की राय को ही पार्टी की राय बताने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं।
ये भी अजब है कि राहुल गांधी की नाराजगी के बाद अब यूपीए सरकार भी दागियों को बचाने वाले अध्यादेश को वापस लेने की तैयारी कर रही है। अब इसका क्या मतलब निकाला जाए कि आखिर सरकार किसके ईशारे पर चल रही है और सरकार जो भी फैसले लेती है या आजतक लेती आई है उसमें राहुल गांधी की कितनी भूमिका है। जाहिर है राहुल गांधी को जो पसंद नहीं होगा वह सरकार नहीं करेगी क्योंकि जनाब सरकार साउथ ब्लॉक, रायसीना हिल्स से नहीं 10 जनपथ से चलती है..!
बहरहाल सियासी ड्रामे के जरिए ही सही, सुप्रीम कोर्ट की ऐतिहासिक पहल के बाद चुनाव सुधारों की दिशा में कम से कम एक अच्छा काम तो हो रहा है, जो बहुत हद तक राजनीति की गंदगी को साफ करने में एक अहम रोल अदा करेगा।


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