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गुरुवार, 26 सितंबर 2013

आखिर कब तक सहते रहेंगे हम ?

वो मारेंगे हम सहेंगे, वो खून बहाएंगे हम फूलमाला लेकर उनका स्वागत करेंगे, वो उल्टा हमें आंख दिखाएंगे और हम उन्हें बातचीत करने का न्यौता देंगे आखिर कब तक..? एक बार फिर वही तो हुआ लेकिन फिर भी सरकार के सरदार कह रहे हैं कि हम बातचीत का रास्ता खुला रखेंगे। तीन आतंकवादी एक लेफ्टिनेंट कर्नल सहित 12 लोगों को मौत के घाट उतार देते हैं लेकिन हमारे प्रधानमंत्री सिर्फ ये कहकर अपना पल्ला झाड़ लेते हैं कि इस घटना की निंदा करने के लिए उनके पास शब्द नहीं है। शब्दकोष तो मनमोहन सिंह का पहले ही खाली है, ऐसे में ये बात तो समझ में आती है कि या तो वे घटना की कड़ी शब्दों में निंदा करेंगे या फिर कुछ बोलेंगे ही नहीं। (जरुर पढ़ें- फिर से- पाकिस्तान की तो..!)
यहां तक तो ठीक था लेकिन आतंकी हमले के दो दिन बाद वे अपने इस धूर्त पड़ोसी देश के वजीरे आजम से अपनी मुलाकात को नहीं टाल सकते। वो और उनकी सरकार में शामिल लोग कहते हैं कि बातचीत ही एकमात्र रास्ता है लेकिन हर महीने ऐसे दो तीन आतंकी हमलों में अपनी जान गंवाने वाले सेना के जवान और निर्दोष नागरिकों का आखिर क्या कसूर था इसका जवाब शायद उनके पास नहीं है। ये समझते हैं कि शहीदों के परिवार के प्रति अपनी संवेदनाएं प्रकट करके, शहीदों के घरवालों को मुआवजा राशि देकर शायद उनका दर्द कम हो जाएगा लेकिन अफसोस इस दर्द को ये कभी नहीं समझ पाएंगे क्योंकि इस दर्द को वही समझ सकता है जिसने किसी अपने को खोया हो। (जरुर पढ़ें- पाक को भारत का करारा जवाब !)
धूर्त पडोसी की ये धूर्तता एक, दो या तीन बार होती तो हमारी सरकार का ये रवैया समझ में आता कि आपसी बातचीत से वे पड़ोसी देश के हुक्मरानों को समझा लेंगे लेकिन पाकिस्तान की ये कायराना हरकत और बार बार पीठ में छुरा घोंपना क्या पाकिस्तान का भारत को सीधा जवाब नहीं है कि आप चाहे कुछ कर लो लेकिन हम नहीं सुधरेंगे।
भारत का एक अहम अंग होने के साथ ही जम्मू कश्मीर में लोकतांत्रिक प्रक्रिया से चुनी हुई सरकार होने के बावजूद पाकिस्तान का बार बार कश्मीर को विवादित क्षेत्र बताना और ये कहना कि कश्मीर के लोग अपनी आजादी की लड़ाई लड़ रहे हैं और अपनी सेना की मदद से कश्मीर में आतंकवाद को प्रायोजित करना क्या ये नहीं दर्शाता कि पाकिस्तान कभी नहीं चाहता कि जम्मू कश्मीर में शांति रहे। लेकिन अफसोस ये सब बातें जानने के बाद भी हमारी सरकार नासमझ बने रहना चाहती है। (जरुर पढ़ें- मनमोहन को जगाओ, देश बचाओ !)
आए दिन आतंकी हमलों में हमारे जवान शहीद हो रहे हैं, निर्दोष नागरिक मारे जा रहे हैं, लोग जर के साए में जीने को मजबूर हैं लेकिन हमारी सरकार अहिंसा की पुजारी बने रहना चाहती है। जो सरकार अपने नागरिकों की रक्षा न कर सके, सेनैकों का मनोबल तोड़ने का काम करे उससे और क्या उम्मीद की जा सकती है, आखिर अपने नागरिकों की सुरक्षा से बड़ी चीज किसी देश की सरकार के लिए और क्या हो सकती है। कम से कम अमेरिका से ही कुछ सीख लो जो अपने नागरिकों की सुरक्षा के लिए किसी भी हद तक जा सकता है और अपनी तरफ आंख उठाने वाले को उसके घर में घुसकर मारकर ही दम लेता है। ओसामा बिन लादेन से बड़ा उदाहरण और क्या हो सकता है लेकिन हम पाकिस्तान के आगे गिड़गिड़ाते ही रहते हैं कि मुंबई हमले के मास्टर माइंड हाफिज सईद को हमें सौंप दो, हमारे देश पर आतंकी हमले मत करो लेकिन होता क्या है छोटे से अंतराल के बाद भारत पर आतंकी हमले और शहीद होते हमारे जवान। (जरुर पढ़ें- लातों के भूत बातों से नहीं मानते)
जहां जरुरत है वहां बातचीत करो लेकिन कहते हैं न कि लातों के भूत बातों से नहीं मानते, इसलिए पकिस्तान को समझाना है तो बातों से काम नहीं चलेगा मनमोहन सिंह जी, बातों से काम नहीं चलेगा। आप तो देश के प्रधानमंत्री हैं, बेहतर समझते होंगे कि अटैक इज द बेस्ट डिफेंस। उम्मीद है कि आपकी सरकार कुछ ऐसे कदम उठाएगी कि पाकिस्तान भारत की तरफ आंख उठाने से पहले हजार बार सोचे।


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