हैदराबाद धमाकों के
बाद गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने राज्यसभा में बयान दिया कि 2008 में देश में 10
आतंकवादी हमले हुए तो 2010 में 5 बार आतंकवादी हमले हुए जबकि 2011 में 4 आतंकी
हमले हुए तो 2012 में सिर्फ दो आतंकवादी हमले हुए। शिंदे ने सदन को ये भी भरोसा
दिलाया कि आतंकवादी हमलों के 2012 के फिगर के बाद फरवरी 2013 में हैदराबाद में हुए
धमाके आखिरी आतंकवादी हमला भी हो सकता है..!
सभी देशवासी भी यही
उम्मीद करेंगे कि शिंदे का ये भरोसा सच साबित हो और हैदराबाद के बाद भविष्य में अब
कोई आतंकवादी हमला भारत में न और निर्दोष लोग मौत के मुंह में न समाएं लेकिन सवाल
ये है कि क्या ये इतना आसान है जितनी आसानी से गृहमंत्री ने राज्यसभा में बोला..?
आतंकवादी जिस तरह
से कभी मुंबई में, कभी दिल्ली में, कभी पुणे में, कभी बनारस नें तो हैदराबाद में
जिस तरह से बेखौफ होकर एक के बाद एक धमाके कर खून की होली खेलते हैं उससे आतंकवादी
हमलों मुक्त भारत का सपना साकार होता तो बिल्कुल भी नहीं लगता..!
कई बार खुफिया
तंत्र की नाकामी तो कई बार खुफिया एजेंसियों में आपस में तालमेल की कमी न सिर्फ
आतंकवादियों की राह आसान करती है बल्कि उनका हौसला भी बुलंद करती है। खुफिया तंत्र
को धमाकों से पहले आतंकवादियों की गतिविधियों की जानकारी मिल भी जाती है तो उस पर
केन्द्र और राज्य सरकार का ढुलमुल रवैया रही सही कसर पूरी कर देता है। (पढें- सरकार गरजती है आतंकी बरसते
हैं..!)
ऐसे में कैसे सुशील
कुमार शिंदे के इस भरोसे के यकीन में बदलने पर विश्वास किया जा सकता है कि
हैदराबाद के बाद भविष्य में देश में कोई आतंकवादी हमला नहीं होगा..? शिंदे 2012 में हुए
सिर्फ दो धमाकों के आधार पर ऐसा कैसे कह सकते हैं..? 2008 के बाद आतंकवादी हमलों में संख्यावार
कमी होने का ये तो मतलब नहीं है कि एक दिन ये संख्या शून्य में पहुंच जाएगी..! और शिंदे तो हैदराबाद
धमाके के बाद ही ये मतलब निकालकर खुद के साथ ही देश को संतुष्ट करने की कोशिश करने
में लगे हैं बजाए इसके की दोषियों को पकड़ा जाए और आतंकवादियों के खिलाफ अभियान
शुरु किया जाए..!
एबीटी में प्रकाशित
एक खबर के बाद इसमें एक पेंच और ये जुड़ जाता है जो राज्यसभा में बीते सालों में
हुए आतंकवादी धमाकों के आंकड़ों पर सवाल खड़ा करता है। एनबीटी की खबर(2012 में मणिपुर में हुए सबसे ज्यादा बम धमाके ) के मुताबिक
नेश्नल सिक्यूरिटी गार्ड(एनएसजी) के बम डाटा सेंटर का कहना है कि आतंकवादियों ने 2012
में देशभर में 241 बम धमाके किए। इनमें सबसे ज्यादा 69 बम धमाके मणिपुर में हुए और
दूसरे नंबर पर असम का नंबर है जहा पर 26 धमाके हुए। सिर्फ मणिपुर और असम में हुए
धमाकों में 113 लोगों की मौत हुए जिसमें 65 जवान थे तो 48 आम लोग थे जबकि कुल 158
लोग इन धमाकों में घायल हुए।
शिंदे ने राज्यसभा
में जो आंकड़ा दिया कि 2012 में कुल दो धमाके हुए वो बड़े धमाकों का आंकड़ा था
लेकिन इसके अलावा जो 239 धमाके हुए उसे शिंदे छुपा ले गए। ये बात अलग है कि इनमें
से कई धमाके नक्सलियों ने किए तो कई अलगाववादियों ने लेकिन निर्दोष लोगों की जान
तो इसमें गई। क्या इसके लिए गृह मंत्रालय की कोई जिम्मेदारी नहीं है..? क्या इन धमाकों के
लिए जिम्मेदार लोग देश के दुश्मन नहीं हैं..? फिर 2012 में गृह मंत्रालय को सिर्फ दो
धमाके ही क्यों नजर आए..?
उम्मीद करते हैं कि
गृह मंत्रालय को मणिपुर और असम के साथ ही दूसरे राज्यों में धमाकों में शहीद हो रहे
जवान और आम आदमी दिखाई देंगे और उनके खिलाफ भी जांच और कार्रवाई में सरकार उतनी ही
तेजी दिखाएगी जितनी की दिल्ली, मुंबई, पुणे, हैदराबाद जैसे आतंकी धमाकों के बाद
दिखाई देती है।
deepaktiwari555@gmail.com
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