राजनीति
को पवित्र करने की जरुरत है, जरूरत है राजनीति से उन लोगों की सफाई की जो अपने
पापों को धाने के लिए राजनीति की गंगा में डुबकी लगाने से परहेज नहीं करते। हो भी
क्यों न..? राजनीति दागियों के लिए अपने अपराधों के दागों को
छिपाने का सबसे आसान जरिया जो बन गयी है। सोने पर सुहागा तो तब हो जाता है जब ये दागी
सांसद और विधायक सत्ताधारी दल का प्रतिनिधित्व कर रहे होते हैं। उस वक्त इनका आचरण
देखने लायक होता है। वैसे भी अपराधियों के लिए राजनीति से बेहतर ऐशगाह और कहां हो
सकती है..?
राजनीति
की पेटेंट सफेद परिधान कुर्ता पायजामा में तो इनके सारे दाग जैसे छू मंतर हो जाते
हैं। राजनीति दागी नेताओं के लिए टीवी पर अक्सर आने वाले उस टाईड डिटर्जेंट पाउडर
और केक के विज्ञापन की तरह है, जो इनके दागों को पलक झपकते ही साफ कर देती है।
ऐसे
में सवाल ये उठता है कि आखिर इसका ईलाज है क्या..? हाल ही में
सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक आदेश में यह कहा था कि 2 साल से
ज्यादा की सजा पाने वाले सांसदों और विधायकों की सदस्यता खत्म कर दी जानी चाहिए।
लेकिन मनमोहन कैबिनेट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटते हुए नए अध्यादेश की
मंजूरी दे दी जिसके चलते सरकार ने दागी नेताओं को राहत देने का काम किया था। दागी
नेताओं पर आई सुप्रीम कोर्ट की सुनामी टलने से दागियों के चेहरे खुशी से खिल गए थे
लेकिन अचानक से कांग्रेस युवराज राहुल गांधी अध्यादेश को फाड़कर बाहर निकले और इसे
नॉनसेंस कहते हुई अपनी पार्टी के नेता और देश के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह तक की
किरकिरी कराने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
पीएम
मनमोहन सिंह की मजबूरी सामने आई और उन्होंने इस अध्यादेश को वापस ले लिया जिसके
पहले शिकार बने राजद अध्यक्ष और सासंद लालू प्रसाद यादव और कांग्रेस सांसद राशिद
मसूद।
अब
केन्द्रीय मंत्री कपिल सिब्बल ने कैबिनेट के सामने एक प्रस्ताव पेश किया है जिसके
तहत बलात्कार, हत्या, अपहरण आदि जैसे गुनाहों
(जिनमें न्यूनतम सात वर्ष तक की सजा होती है) के आरोपियों को चुनाव लड़ने की
अनुमति नहीं मिलनी चाहिए। राजनीतिक सुधारों की दिशा में सोचा जाए तो ये प्रस्ताव
काबिले तारीफ है लेकिन इस प्रस्ताव के विरोध में भी आवाज बुलंद होनी शुरु हो गयी
है। ऐसे में सवाल ये है कि सिब्बल के इस प्रस्ताव का विरोध कितना जायज है..?
ये सवाल
इसलिए भी क्योंकि ये प्रस्ताव उन राजनेताओं के राजनीतिक भविष्य को चौपट कर सकता है,
जो या तो झूठे आरोपों में फंसे हुए हैं या फिर जिन पर राजनीतिक साजिश के तहत आरोप
लगाए गए हों। राजनीति में कुछ भी संभव है, ऐसे में निश्चित तौर पर इसका फायदा
उठाकर राजनेता अपने फायदे के लिए और विरोधी नेताओं का राजनीतिक भविष्य चौपट करने
के लिए उन पर झूठे आरोप भी लगाने से गुरेज नहीं करेंगे।
निश्चित
तौर पर इस प्रस्ताव के विरोध से वास्तव में दागी नेताओं को बचने का एक अवसर मिल
जाएगा लेकिन इसकी कीमत पर ईमानदार या फिर झूठे मामलों में फंसाए गए नेताओं के
भविष्य को चौपट नहीं किया जाना चाहिए। वैसे भी सुप्रीम कोर्ट पहले ही दागियों के
राजनीतिक भविष्य को चौपट करने की दिशा में ऐतिहासिक फैसला दे ही चुका है जिसके दो
बड़े शिकार भी लालू और राशिद मसूद के रूप में हमारे सामने मौजूद हैं।
सिब्बल
का ये प्रस्ताव सुधार की राजनीति के अंतर्गत जनता और समाज के हित में तो दिखाई
देता है लेकिन इस प्रस्ताव को अमली जामा पहनाना ईमानदार राजनेताओं और राजनीति में
जाने की ईच्छा रखने वाले लोगों के लिए एक बड़ी बाधा का काम करेगा। इसका मतलब ये भी
नहीं कि राजनीति में सुधार की दिशा में सोचना बंद कर दिया जाए या इस पर काम न हो।
सुप्रीम कोर्ट का हाल ही में आया ऐतिहासिक फैसला एक अच्छी शुरुआत दे चुका है। इस शुरुआत
को आगे बढ़ाया जाना चाहिए लेकिन ये ध्यान भी रखा जाना चाहिए कि ये ईमानदार लोगों
के लिए राजनीति के रास्ते बंद न हों बल्कि वे नए जोश के साथ राजनीति में प्रवेश
करें।
deepaktiwari555@gmail.com
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