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बुधवार, 13 नवंबर 2013

और नेता जी लुट गए !

लोकसभा चुनाव हो, विधानसभा चुनाव हों या फिर नगर निकाय या पंचायत के चुनाव। चुनाव जीतने के बाद खुद को राजा समझने वाले नेता जनता रूपी प्रजा को लूटने का कोई भी मौका नहीं छोड़ते। भ्रष्टाचार और घोटालों के जरिए नेता जनता की खून पसीने की कमाई से अपनी नोटों को फसल को सींचने का कोई मौका नहीं छोड़ते क्योंकि ये नेता समझते हैं कि चुनाव जीतकर इन्होंने पांच साल का ऐश परमिट हासिल कर लिया है।
लेकिन चुनाव के वक्त जनता को लूटने वाले ये नेता भी कई बार लुट जाते हैं। ये बात अलग है कि इनकी धन दौलत तो नहीं लुटती, लेकिन धन दौलत का इंतजाम करने वाली कुर्सी पाने का इनका ख्वाब लुट कर जरुर टूट जाता है। इन्हें लूटने वाले भी इनके अपने ही होते हैं, लिहाजा अपनी महत्वकांक्षाओं को दबाकर अक्सर ये शांत बैठ जाते हैं, लेकिन कुछ ऐसे भी होते हैं जो अपनी महत्वकांक्षाओं को दबा नहीं पाते और बागी हो जाते हैं। मैं बात चुनावी टिकट की कर रहा हूं जिसके लिए नेताओं की जद्दोजहद और मेहनत देखने लायक होती है, आखिर पांच साल का ऐश परमिट पाने की पहली बाधा तो चुनावी टिकट ही है।
देश के पांच राज्यों में चुनावी सरगर्मियां उफान पर हैं, अखबार से लेकर टीवी में चुनावी रंग में रंगे हुए हैं। सुबह की चाय के साथ अख़बार में ऐसी ही ख़बरों को टटोलते हुए राजस्थान के एक नामी दैनिक में एक नेता जी का टिकट कटने की ख़बर सुनी तो ख़बर को पूरा पढ़ने का मन किया। दरअसल एक नेता जी को चुनाव का टिकट मिलने के बाद उनसे छिन गया और उनकी जगह किसी दूसरे नेता को टिकट दे दिया गया। नेता जी का पांच साल का ऐश परमिट हासिल करने का ख्वाब टिकट लुटने के साथ ही टूट चुका था। नेता जी करते भी क्या लूटने वाला भी उनकी अपना ही बिरादरी का था और अपनी ही पार्टी का।
नेता जी बड़े महत्वकांक्षी थे, हर साल में पांच साल का ऐश परमिट हासिल करना चाहते थे। उन्हें अपनी जीत का पूरा भरोसा भी था, लिहाजा नेता जी ने अपनी पार्टी से बगावत करने का ऐलान कर दिया और बागी होकर अपनी ही पार्टी के प्रत्याशी के खिलाफ चुनाव मैदान में ताल ठोकने की तैयारी शुरु कर दी। आखिर अपने हक के लिए नेता जी खुद आवाज नहीं उठाएंगे तो कौन उठाएगा..?
अच्छा लगा नेता जी को किसी के हक के लिए लड़ते हुए देखकर फिर भले ही अपने बिना किसी स्वार्थ के किसी के हक में आवाज न उठाने वाले नेता जी अपने ही हक के लिए क्यों न बगावत का झंडा उठाकर चुनावी मैदान में कूद पड़ें हों। और भी अच्छा लगा क्योंकि जनता को लूटने वाले नेता जी को भी पता चला कि आखिर लूटे जाने पर कितना दर्द होता है, लूटे जाने पर कितनी तकलीफ होती है। चुनाव के वक्त कम से कम इस टिकटों की लूट का तो लुत्फ उठा ही सकते हैं। जय हो नेतानगरी की।।

deepaktiwari555@gmail.com

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