सचिन तेंदुलकर को
भारत रत्न मिलने पर उनके प्रशंसक फूले नहीं समा रहे हैं। क्रिकेट के शौकिनों के
साथ ही सचिन के प्रशंसकों का खुश होना लाजिमी भी है क्योंकि क्रिकेट उनके लिए धर्म
है तो सचिन तेंदुलकर क्रिकेट के भगवान। भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान “भारत रत्न” पाना किसी के लिए
भी गौरव की बात है लेकिन सवाल ये है कि क्या सचिन को सही वक्त पर भारत रत्न से
सम्मानित किया गया..?
कहीं ये फैसला जल्दबाजी में तो नहीं लिया गया..? खेल जगत की ही अगर बात करें तो क्या सचिन के चक्कर
में दूसरे खिलाड़ियों को नजरअंदाज तो नहीं किया गया जो इसके हकदार थे..?
निश्चित तौर पर भारतीय
क्रिकेट के लिए सचिन के योगदान को नहीं भुलाया जा सकता लेकिन सचिन के
अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास लेने के तुरंत बाद बिना देर किए सचिन को इस
सम्मान से नवाजना गले नहीं उतरता। जिस तरह से सचिन को भारत रत्न से नवाजा गया उससे
तो कम से कम भारत सरकार का ये फैसला जल्दबाजी में लिया गया लगता है..!
ये इसलिए क्योंकि
सचिन के मामले में उन्हें ये सम्मान महज 42 वर्ष की आयु में प्रदान कर दिया जाता
है लेकिन खेल जगत के ऐसे कई भारतीय खिलाड़ी जो अलग अलग खेलों में अपना जौहर दिखाकर
भारत का नाम रोशन कर चुके हैं उन्हें इस सम्मान के लायक ही नहीं समझा गया।
फ्लॉंईंग सिख के नाम
से मशहूर एथलीट मिल्खा सिंह हों या फिर हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद दोनों ने
विश्व स्तर पर कई मौकों पर अपने बेहतरीन प्रदर्शन के दम पर न सिर्फ तिरंगे के
सम्मान को बढ़ाया बल्कि देशवासियों को गर्व करने का मौका दिया। मिल्खा सिंह को दी
गयी उड़न सिख की उपाधि और ध्यानचंद को हॉकी के जादूगर की उपाधि ये बताने के लिए
काफी हैं कि अपने अपने खेल में दोनों का विश्व में कोई सानी नहीं है। ये इनके खेल
की जादूगरी ही थी कि विश्वस्तर पर आज भी इनके नाम का डंका बजता है। हो सकता है
सचिन के प्रशंसकों को ये बातें नागवार गुजरे लेकिन सचिन की तुलना में भारत रत्न के
लिए हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद सिंह और उड़न सिख मिल्खा सिंह के योगदान को
नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। ये स्पष्ट करना चाहूंगा कि यहां विरोध सचिन को भारत
रत्न दिए जाने का नहीं है बल्कि दूसरे खिलाड़ियों को नजरअंदाज करने का है कि आखिर
क्यों ऐसा किया गया..?
सचिन को भारत रत्न
से नवाजने के बाद एक और नाम की गूंज सुनाई देने लगी है कि आखिर क्यों भारत के
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को आज तक भारत रत्न से सम्मानित नहीं किया
गया। अटल बिहारी वाजपेयी को भारत रत्न देने की मांग न सिर्फ उनकी पार्टी के लोग कर
रहे हैं बल्कि विरोधी पार्टियों के नेताओं फारुख अब्दुल्ला और नीतिश कुमार का अटल
को भारत रत्न देने की मांग करना ये जाहिर करता है कि अटल बिहारी वाजपेयी की छवि एक
निर्विवाद नेता की है और वे इसके हकदार भी हैं। अटल ने भारतीय राजनीति में रहते
हुए राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत का नाम ऊंचा ही किया है ऐसे में उनकी
दावेदारी को खारिज नहीं किया जा सकता। कांग्रेसी भले ही अटल बिहारी वाजपेयी के नाम
को ये कहकर खारिज कर रहे हैं कि 2002 में गुजरात दंगों के वक्त अटल बिहारी वाजपेयी
ने प्रधानमंत्री रहते हुए राजधर्म का पालन नहीं किया लेकिन इस सवाल का जवाब शायद इनके
पास नहीं होगा कि 1975 में देश पर आपातकाल लादकर भारत की लोकतांत्रिक प्रणाली को
खतरे में डालने वाली इंदिरा गांधी और बफोर्स घोटाले में नाम आने वाले राजीव गांधी
आखिर इसके हकदार कैसे हो गए..?
भारत के पहले
प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु और इंदिरा गांधी का खुद को भारत रत्न से नवाजना भी
कई बातें सोचने पर मजबूर करता है कि क्या भारतीय राजनीति में नेहरु – गांधी परिवार
के जो सदस्य देश के पीएम बने, वे ही भारत रत्न के हकदार हैं, फिर चाहे उनके साथ कई
विवाद क्यों न जुड़े हों..?
बहरहाल सचिन को भारत
रत्न मिलने के बाद अटल बिहारी वाजपेयी को भारत रत्न दिए जाने की मांग और मेजर
ध्यानचंद और मिल्खा सिंह नजरअंदाज क्यों के सवाल चाहे लाखों उठ रहे हो लेकिन आज का
सच तो यही है कि अटल बिहारी, ध्यानचंद और मिल्खा सिंह भारत रत्न नहीं है लेकिन
क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर भारत रत्न हैं और यही इतिहास के पन्नों में भी दर्ज होगा। मचाते
रहो हल्ला होगा वही जो मंजूरे यूपीए सरकार होगा।
आखिर में एक सवाल और
“भारत रत्न” सचिन को टीवी पर
विज्ञापनों में विभिन्न कंपनियों के उत्पादों का प्रचार करते
देखकर आपको कैसा लग रहा है..?
deepaktiwari555@gmail.com
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