डूबते हुए सूरज का
नजारा मनमोहक भले ही होता है लेकिन सूरज के इस रुप को कोई सलाम नहीं करता। भाजपा
में लाल कृष्ण आडवाणी के साथ भी कुछ ऐसा ही होता दिखाई दे रहा है..! मोदीमय होती भाजपा
में आडवाणी के कुछ न चाहने का कोई मोल अब नजर नहीं आ रहा है..! लेकिन आडवाणी के
लिए डूबते हुए सूरज के मायने शायद कुछ अलग हैं..! आडवाणी डूबते हुए सूरज में भी अगले दिन की उम्मीद
भरी सुबह का नजारा देख रहे हैं जो आडवाणी के मन में 2014 में एनडीए की सरकार बनने
की स्थिति में पीएम की कुर्सी की उम्मीद को जिंदा रखे हुए है..! शायद आडवाणी की यही
उम्मीद नरेन्द्र मोदी को 2014 के आम चुनाव के मद्देनजर पीएम पद का उम्मीदवार होता
नहीं देखना चाहती और शायद यही गोवा में भाजपा की कार्यसमिति की बैठक से पहले
आडवाणी की बीमारी की वजह भी है..!
लेकिन अफसोस अडवाणी
की ये उम्मीद भाजपा में नरेन्द्र मोदी के जादू के आगे नाउम्मीदी में तब्दील होती
दिखाई दे रही है। आडवाणी के मोदी को अहम जिम्मेदारी न देने की इच्छा के बावजूद
भाजपा में मोदी की ताजपोशी की तैयारी को देखकर तो कम से कम यही लग रहा है..!
कुर्सी चीज ही ऐसी
है कि उसे पाने के लिए आडवाणी क्या कोई भी नेता मरते दम तक नाउम्मीद नहीं होना
चाहेगा ऐसे में आडवाणी ने पीएम की कुर्सी के अपने ख्वाब को हकीकत में बदलने के लिए
पूरा जोर लगा दिया तो क्या हुआ..? आखिर आडवाणी को भी तो हक है अपनी इच्छा को जताने का...ये बात अलग है कि भाजपा
में मोदी के नाम के आगे उनकी इच्छा-अनिच्छा का बहुत ज्यादा असर अब दिखाई नहीं दे
रहा है..!
कुल मिलाकर वर्तमान
में भाजपा में मोदी और आडवाणी की स्थिति को देखकर तो यही लग रहा है कि आडवाणी
भाजपा के लिए डूबते हुए सूरज के समान हो गए हैं तो मोदी उगते हुए सूरज के समान जिसके
नेतृत्व में भाजपा 2014 में केन्द्र की सत्ता में काबिज होने का सुनहरा ख़्वाब देख
रही है। लेकिन बड़ा सवाल यही है कि क्या नरेन्द्र मोदी इस ख़्वाब को हकीकत में बदल
पाने में कामयाब होंगे..?
deepaktiwari555@gmail.com
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