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गुरुवार, 27 दिसंबर 2012

बेटा बोला लेकिन राष्ट्रपति “पिता” खामोश !


दिल्ली गैंगरेप मामले के खिलाफ देशभर में गुस्से की आग भड़की और ये गुस्सा रायसीना हिल्स तक भी पहुंचा। दो दिनों तक रायसीना हिल्स पर गैंगरेप के आरोपियों को फांसी की मांग को लेकर प्रदर्शनकारियों ने दिल्ली सरकार के साथ ही पुलिस की नींद उड़ा दी लेकिन रायसीना हिल्स से राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी बाहर नहीं निकले और न ही उन्होंने इस घटना पर दुख जताना जरूरी समझा। राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी न बोले न सही लेकिन पश्चिम बंगाल की जंगीपुर सीट से उनके सांसद बेटे अभिजीत मुखर्जी ने पिता की इस कमी को पूरी करने में देर नहीं की। कांग्रेस सांसद अभिजीत कहते हैं कि महिलाएं सज-धज कर प्रदर्शन करने आती हैं और कैंडिल मार्च निकालने के बाद डिस्को में जाती है। मुखर्जी साहब यहीं नहीं रूक वे कहते हैं कि कैंडिल मार्च निकालना फैशन हो गया है। बयान पर बवाल मचने के बाद भले ही मुखर्जी ने अपने शब्द वापस ले लिए हों लेकिन फिर भी वे ये कहने से नहीं चूके कि उन्होंने कुछ गलत कहा था। पिता की सीट पर बमुश्किल 2500 वोटों से उपचुनाव जीतकर संसद में पहुंचने वाले अभिजीत मुखर्जी को लगता है सुर्खियों में आने की कुछ ज्यादा ही जल्दी है। शायद यही वजह है कि एक ऐसे मुद्दे पर वे अपना मुंह खोलते हैं जिसको लेकर पहले ही जमकर बवाल मच चुका है। एक संवेदनशील मुद्दे पर राष्ट्रपति मुंह नहीं खोलते लेकिन राष्ट्रपति का सांसद बेटा अगर ऐसा बोलता है तो वाकई में इससे बड़ा दुर्भाग्य इस देश का और क्या हो सकता है। होना तो ये चाहिए था कि राष्ट्रपति को खुद रायसीना हिल्स में बाहर निकलकर लोगों से शांति की अपील करते हुए मामले में दखल देना चाहिए था और सरकार को इस संवेदनशील मुद्दे पर जल्द से जल्द आवश्यक कदम उठाने के निर्देश देने चाहिए थे लेकिन ऐसा नहीं हुआ और रही सही कसर राष्ट्रपति के सांसद बेटे ने पूरी कर दी। आभिजीत मुखर्जी ने तो प्रदर्शनकारियों पर ही सवाल खड़ा कर दिया कि ये प्रदर्शन तो सिर्फ एक दिखावा था। मुखर्जी साहब कभी एसी कमरों से बाहर निकल कर दिल्ली की सर्दी में एक रात छोड़िए एक घंटा बिताकर दिखा दीजिए आंदोलन और फैशन का फर्क आपको शायद समझ में आ जाएगा..! मुखर्जी साहब जिसे आप फैशन बोल रहे हैं ये न सिर्फ एक पीड़ित को इंसाफ दिलाने की लड़ाई है बल्कि महिलाओं के लिए सुरक्षित वातावरण तैयार करने की ओर महिलाओं की तरफ से बढ़ाया हुआ कदम था लेकिन अफसोस है कि महिलाओं की सुरक्षा के लिए शुरू हुई इस लड़ाई को न तो आपके पिताश्री समझ पाए जबकि वे तो इन प्रदर्शनकारियों से चंद कदम दूर थे और न ही आप। अरे साहब किसी पीड़ित का दर्द नहीं समझ सकते न सही कम से कम उनके जख्मों पर नमक तो मत छिड़किए। आप पीड़ित का दर्द कम नहीं कर सकते तो उसके जख्मों को कुरदने का भी आपको कोई अधिकार नहीं है। कटाक्ष करने के बाद आपने भले ही माफी मांग ली हो लेकिन जुबान से निकला हुई तीर वापस तो नहीं होता न...बोलने से पहले सोच तो लिया करो महाराज कि क्या बोलने जा रहे हैं...अपना न सही अपने पिताजी के पद और गरिमा का तो कम से कम ख्याल रखिए। आपके पिताजी ने तो चुप रहना ही बेहतर समझा लेकिन आपने तो पिताजी की सारी मेहनत पर पानी फेर दिया।

deepaktiwari555@gmail.com

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