दिल्ली गैंगरेप में
मनमोहन सिंह की चुप्पी टूटती है...लेकिन जिस अंदाज में मनमोहन सिंह ने अपनी चुप्पी
तोड़ी और उसके बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पता नही किससे पूछते हैं “ठीक है” इससे लगता है कि वे मौन ही बने रहते तो ज्यादा अच्छा था। क्या मनमोहन
सिंह के सामने कैमरामैन के बाजू में खड़ी सोनिया गांधी से पूछते हैं..? या फिर जिस किसी ने भी ये स्क्रिप्ट लिखी
थी उससे..? जो भी हो लेकिन एक बार फिर इतने संवोदनशील
मुद्दे पर प्रधानमंत्री का ऐसा रवैया अपने आप में कई सवाल खड़े करता है..! एक तरफ मनमोहन सिंह गैंगरेप पर दुख जताते हुए
खुद की भी तीन बेटियां होनी की दुहाई देते हैं और आखिर में कहते हैं “ठीक है”। प्रधानमंत्री जी आपने तो खुद को दी जाने वाले तमाम उपाधियों को आज की
घटना के बाद सही ठहरा दिया। यूं ही लोग मनमोहन सिंह को रोबोट नहीं कहते..! यूं ही मनमोहन सिंह को लोग सोनिया के ईशारे
पर फैसले लेना वाला नहीं कहते..! यूं ही सोनिया ने पीएम की कुर्सी छोड़कर कई दिग्गज कांग्रेस नेताओं को दरकिनार
कर मनमोहन सिंह को दो-दो बार पीएम पद की कुर्सी नहीं सौंपी..! यूं ही बाबा रामदेव
आपको मौनी बाबा नहीं कहते..! यूं ही टाईम मैगजीन के कवर पेज पर “दि अंडर अचीवर” के टैग के साथ मनमोहन
सिंह का फोटो नहीं छपता..! खैर इनके जवाब या तो मनमोहन सिंह खुद दे सकते हैं या फिर सोनिया गांधी। लेकिन दिल्ली गैंगरेप
जैसे संवेदनशील मुद्दे पर देश के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की असंवेदनहीनता ने
देशवासियों को एक बार फिर से निराश ही किया है। देश के गृहमंत्री सुशील कुमार
शिंदे इस मुद्दे को लेकर कितने संवेदनहीन है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता
है कि वे इंडिया गेट पर गैंगरेप के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे लोगों की तुलना
माओवादियों से कर देते हैं...वे कहते हैं कल माओवादी प्रदर्शन करें तो वे क्या
माओवादियों से भी मिलने जाएं..? आपको याद दिला दूं कि ये वही शिंदे हैं जो कोयला
घोटाले पर कहते हैं कि लोगों की याददाश्त बहुत कमजोर होती है और लोग बफोर्स घोटाले
की तरह कोयला घोटाले को भी जल्द भूल जाएंगे। इसका मतलब क्या शिंदे फिर से ये सोच
रहे हैं कि दिल्ली गैंगरेप को भी लोग जल्द भूल जाएंगे..? गजब करते हैं शिंदे साहब एक तरफ आप कहते
हैं कि आप की भी तीन-तीन बेटियां हैं और आप इस घटना का दर्द समझते हैं और महिलाओं
की सुरक्षा के प्रति चिंतित हैं...लेकिन एक तरफ आपका ये असंवेदनहीन बयान..! बढ़िया है शिंदे साहब आप भी अपने प्रधान
मंत्री मनमोहन सिंह के नक्शेकदम पर चल रहे हैं..! वैसे बात चारों
तरफ गैंगरेप के आरोपियों को मौत की सजा देने की हो रही है लेकिन हम इस बात को नहीं
नकार सकते कि मौत की सजा पाने वाले लोगों के पास इस सजा से बचने की काट भी मौजूद
है...और वो काट है राष्ट्रपति भवन। पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल की
ही बात कर लें तो उन्होंने अपने कार्यकाल के आखिरी दिनों में 35 कैदियों की मौत की
सजा माफ कर दरियादिली दिखाई थी...और खास बात ये है कि इनमें से 5 बलात्कार के बाद
पीड़ित की नृशंस हत्या के जुर्म में मौत की सजा पाए हुए थे। मजे की बात तो ये है
कि राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल ने यूपीए सरकार की सलाह पर ही मौत की सजा
माफ करने के फैसले लिए थे। अब हम ये कैसे उम्मीद कर लें कि दिल्ली गैंगरेप या ऐसी
हैवानियत करने वालों को अगर कानून में संशोधन के बाद मौत की सजा मिल भी जाती है तो
वे लोग इसके अंजाम तक भी पहुंचाए जाएंगे। साथ ही ये मत भूलिए कि ये भारत है और इस
देश की संसद पर हमला करने वाले आरोपी अफजल गुरु को घटना के 12 साल बाद भी फांसी
नहीं दी जाती जबकि सर्वोच्च न्यायालय अफजल को फांसी की सजा सुना चुका है जबकि इसके
विपरीत अमेरिका को देखिए चाहे आप अमेरिका की कितनी आलोचना कर लो लेकिन उसने वर्ल्ड
ट्रेड सेंटर पर हमला करने वाले को उसके घर में घुसकर मारा और भारत में संसद के
हमले के आरोपी की सरकार जेल में खातिरदारी कर रही है।
deepaktiwari555@gmail.com
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