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रविवार, 23 दिसंबर 2012

दिल्ली गैंगरेप- ओबामा रोते हैं...हम क्यों सोते हैं !



दिल्ली गैंगरेप के खिलाफ शनिवार और रविवार तो इंडिया गेट से लेकर रायसीना हिल्स तक जो हुआ वो इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया। सरकार और पुलिस के खिलाफ गुस्से का ऐसा ज्वार शायद ही इससे पहले कभी फूटा होगा। गैंगरेप की शिकार पीड़ित के लिए इंसाफ की मांग कर रहे युवा मानो किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं। लेकिन एक बार फिर से एक जनांदोलन का दमन करने की कोशिश दिल्ली पुलिस और सरकार ने की...लेकिन दमन की कोशिश ने गुस्से की आग को और ज्यादा भड़का दिया है। अमेरिका में एक स्कूल में एक सिरफिरे की अंधाधुंध फायरिंग 20 बच्चों समेत 28 लोगों की दुखद मौत हो जाती है तो अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा घटना पर दुख जताते हैं...लेकिन दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के राजा भारत के राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी साहब को न तो राष्ट्रपति भवन के बाहर गैंगरेप के खिलाफ हजारों लोगों का जनाक्रोश दिखा और न ही राष्ट्रपति ने इस जघन्य कृत्य की निंदा में दो शब्द ही कहे। मौनी बाबा की उपाधि पा चुके हमारे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह एफडीआई के मुद्दे पर तो देश को संबोधित करते हैं लेकिन एक जघन्य अपराध के बाद उसकी निंदा करने का वक्त उनके पास नहीं है। अमेरिका को ऐसे ही दुनिया का सरताज नहीं कहा जाता...9/11 के आरोपियों को अमेरिका उसके घर में घुसकर मारता है तो 26/11 के आरोपी कसाब की सुरक्षा पर भारत करोड़ों रुपए खर्च करता है (फांसी को काफी दवाब के बाद और काफी देर से दी गई) और 26/11 के मास्टरमाइंड अफजल गुरु को हमारे देश के गृहमंत्री श्रीअफजल गुरु कहकर संबोधित करते हैं...शायद यही फर्क है भारत और अमेरिका में। दिल्ली गैंगरेप पीड़ित का ईलाज कर रहे डॉक्टरों का बयान साफ बयां करता है कि चलती बस में लड़की के साथ जो दरिंदगी हुई है वो कम से कम कोई इंसान तो नहीं कर सकते...ये काम सिर्फ शैतान ही कर सकते हैं और ऐसे शैतान कानून के मुताबिक सजा होने के बाद भी समाज के लिए खतरा ही बने रहेंगे...जाहिर है ऐसे हैवानियत करने वालों के लिए मौत की सजा भी कम है। लेकिन अफसोस है कि हमारे देश की सरकार देश की राजधानी दिल्ली की सड़कों पर एक मासूम के साथ दरिंदगी का खेल खेलने वाले अपराधियों को फांसी के फंदे तक पहुंचाने की बात करने से घबराती हुई नजर आ रही है और दुर्भाग्य देखिए देश का...पहले तो इंसाफ की मांग करने वालों को इंडिया गेट तक पहुंचने से रोकने के लिए मेट्रो स्टेशन के साथ ही इंडिया गेट को जाने वाले सभी रास्ते बंद कर दिए जाते हैं...और इसके बाद भी प्रदर्शनकारी इंडिया गेट पर पहुंच जाते हैं तो उन पर आंसू गैस के गोले छोड़े जाते हैं और लाठियां बरसाई जाती हैं। एक लड़की के साथ हैवानियत का खेल खेला जाता है और उसके लिए इंसाफ की मांग करने वाली लड़कियों पर लोगों की रक्षा करने का बीड़ा उठाने वाली हमारी बहादुर पुलिस लाठियां बरसाती हैं...हालांकि ये बात सभी जानते हैं कि पुलिसवाले भी सरकार के इशारे पर ही ये काम कर रहे थे। इसके बाद भी विडंबना देखिए दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के बेटे और कांग्रेस सांसद संदीप दीक्षित जब इंडिया गेट पर पुलिसिया कार्रवाई के लिए दिल्ली पुलिस कमिश्नर को जिम्मेदार ठहराते हुए उन्हें हटाने की मांग करते हैं तो उनकी माता जी उनके सुर में सुर मिलाती हैं...और कमिश्नर के सिर सारा ठीकरा फोड़ देती हैं...और कमिश्नर को हटाने की बात कहती हैं...क्या ऐसा संभव है कि दिल्ली के सबसे सुरक्षित माने जाने वाले और कड़ी सुरक्षा वाले इलाके में जहां एक तरफ राष्ट्रपति भवन है तो दूसरी तरफ संसद वहां पर हजारों लोग प्रदर्शन करते हैं और उन पर लाठियां बरसती हैं और ये बिना दिल्ली की मुख्यमंत्री की जानकारी के हुआ हो ? लेकिन इसके खिलाफ जब जनाक्रोश भड़कता है तो माननीय मुख्यमंत्री साहिबा इसके लिए दिल्ली पुलिस कमिश्नर को दोषी ठहराती हैं। जाहिर है शीला दीक्षित जानती हैं कि ये जनाक्रोश कहीं 2013 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में उनकी कुर्सी न हिला दे शायद इसलिए पहले शीला दीक्षित के कांग्रेस सांसद बेटे संदीप दीक्षित दिल्ली पुलिस कमिश्नर को हटाने की बात कहते हैं और इसके बाद दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित उनके सुर में सुर मिलाती हैं...लेकिन षीला जी ये भूल गई कि ये पब्लिक है...ये सब जानती है। उम्मीद करते हैं ये आंदोलन अपने अंजाम तक पहुंचे...पीड़ित को इंसाफ मिले और दोषियों को मौत की सजा।

deepaktiwari555@gmail.com

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