13 दिनों तक जीवन
और मौत से संघर्ष करने के बाद आखिरकार वो चली गई...उसने तो अभी अपने जीवन की ठीक
से शुरुआत भी नहीं की थी। उसके सपनों ने तो अभी ठीक तरह से आकार भी नहीं लिया
था...लेकिन कुछ दरिंदों के नापाक ईरादों और शैतानी दिमाग ने उसकी जिंदगी को नर्क
बना दिया। लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी वो फिर भी जीना चाहती थी...उसके जज्बे और
ईच्छाशक्ति को देखकर उसका ईलाज करने वाले डॉक्टर भी दंग थे। उसने जिंदगी की जंग
जीतने की…मौत को मात देने की
पुरजोर कोशिश भी की लेकिन दरिंदों के दिए जख्म आखिरकार जीत गए और वो हमेशा के लिए
खामोश हो गई। एक बार फिर जिंदगी हार गई लेकिन जाते जाते कई ऐसे सवाल खड़े कर गई
जिनका जवाब शायद भगवान के पास भी नहीं होगा।
कुछ लोगों के ईरादे
नापाक थे लेकिन उसका क्या कसूर था ? क्या लड़की के रूप में जन्म लेना उसका
कसूर था ? क्या अंधेरा घिरने
से पहले घर न लौटना उसका कसूर था ? क्या उसकी ईज्जत को तार-तार करने वालों का
विरोध करना उसका कसूर था ?
इस घटना के बाद राजपाथ
पर लोगों का गुस्सा खूब उबाल खाया...एक पोस्टर पर लिखी पंक्तियां मुझे याद आता
हैं...“नजर तेरी बुरी और
पर्दा मैं करूं”। पहले सवाल का
जवाब तो मुझे इन पंक्तियों में ही नजर आता है- वाकई में नजर कुछ दरिंदों की खराब
है...नीयत कुछ लोगों की शैतानी है...इरादे कुछ लोगों के नापाक हैं...लेकिन पर्दा
लड़कियां करें। क्यों न इन खराब नजर वालों को...शैतानी नीयत वालों को नापाक इरादों
वालों को ही सजा मिले...लेकिन इसे देश का दुर्भाग्य कहें या ऐसे लोगों की अच्छी
किस्मत...हमारे देश में कई बार हैवानियत का खेल खेलने वालों को सबूत होने के बाद
भी कई बार सजा नहीं मिलती या मिलती भी है तो वो अपनी आधी जिंदगी खुली हवा में
गुजार चुके होते हैं। कड़ी सजा मिलती भी है तो इससे बचने का ब्रह्मास्त्र(राष्ट्रपति
के पास दया याचिका) उनके पास पहले से ही मौजूद है। हमारी पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा
देवी सिंह पाटिल अपने कार्यकाल के आखिरी दिनों में रेप के 4 आरोपियों की मौत की
सजा माफ कर पहले ही उदाहरण पेश कर चुकी हैं कि ये ब्रह्मास्त्र खाली नहीं जाता।
जहां तक दूसरे सवाल
की बात है कि क्या लड़की के रूप में जन्म लेना उसका कसूर था ?
इसका जवाब एक दूसरे
पोस्टर में लिखी कुछ पंक्तियां में दिखाई देता है। पंक्तियां कुछ इस प्रकार है- “अगले जनम मोहे बिटिया
न कीजौ”। ये पंक्तियां ऐसी
लड़कियों का दर्द बयां करती हैं जो कहीं न कहीं...किसी न किसी रूप में ऐसी ही
घटनाओं का शिकार हुई हैं या फिर उत्पीड़न का शिकार हैं। लड़की के रूप में पैदा
होने के बाद ऐसी पंक्तियां लिखी तख्ती पकड़े कोई लड़की आवाज़ बुलंद करे तो उसका
दर्द समझा जा सकता है।
अंधेरा घिरने से
पहले लड़कियां घर नहीं पहुंचती तो परिजनों की बेचैनी बढ़ जाती है...मन में बुरे
ख्याल आने लगते हैं...क्या ये बताने के लिए काफी नहीं कि लड़कियां हमारे देश में
आज भी सुरक्षित नहीं हैं..?
कुछ दरिंदे किसी
लड़की के साथ जबरदस्ती करते हैं और वो अपनी ईज्जत बचाने के लिए इसका विरोध करती है
तो दरिंदे पूरी हैवानियत पर उतर आते हैं और न सिर्फ दिल्ली गैंगरेप केस की तरह
उसकी बुरी तरह पिटाई कर उसे चलती बस से फेंक देते हैं बल्कि उसके साथ ऐसा कृत्य
करते हैं कि सुनने वाले की तक रूह कांप उठे। क्या ये हैवानियत ये बताने के लिए
काफी नहीं कि महिलाओं के प्रति उनके मन में क्या भाव हैं..? उनकी सोच कैसी है..? वो महिलाओं को
सिर्फ मनोरंजन का साधन समझते हैं और विरोध करने पर हैवानियत पर उतर आते हैं। यानि
कि गलत कार्य का विरोध करने पर भी इसे महिलाओं की जुर्रत समझा जाता है और उनकी
पिटाई की जाती है। क्या ऐसे लोगों समाज में रहने के हकदार हैं..? क्या गारंटी है कि
ऐसे लोग दोबारा किसी के घर की ईज्जत को तार-तार नहीं करेंगे..? क्या गारंटी है कि
ऐसे लोग फिर दिल्ली गैंगरेप जैसे घटना तो नहीं दोहराएंगे..? जाहिर है जब तक
हमारे समाज में ऐसे लोग जिंदा हैं...तब तक समाज में महिलाएं सुरक्षित कतई नहीं है।
जब तक ऐसे लोगों को सरेआम फांसी देकर मौत की नींद नहीं सुलाया जाएगा तब तक ऐसी सोच
के...ऐसी मानसिकता के इनके जैसे दूसरे लोग ऐसा अपराध करने से नहीं हिचकिचाएंगे।
उम्मीद करते हैं हमारी सरकार ऐसे कड़े फैसले लेने के लिए दिल्ली गैंगरेप जैसे किसी
दूसरी घटना का इंतजार नहीं करेगी।
deepaktiwari555@gmail.com
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