अबकी बार मोदी सरकार
का नारा भी साकार हुए एक महीने का वक्त पूरा हो गया। मोदी सरकार के लिए शायद ये एक
महीना बहुत तेजी से बीता होगा क्योंकि ये बात मोदी भी अच्छी तरह से जानते हैं कि
जो उम्मीदें सत्ता में आने से पहले उन्होंने देशवासियों में जगाई हैं, उन्हें पूरा
करना आसान काम तो बिल्कुल भी नहीं है। हालांकि ये उम्मीदें कितनी पूरी होंगी या
फिर कभी पूरी ही नहीं होंगी ये एक अलग बात है लेकिन इतना तो तय है कि सब 30 दिन
में तो संभव नहीं था। जनता से 60 महीने मांगने वाले मोदी की सरकार का एक महीना
पूरा हुआ तो उनसे भी हिसाब किताब मांगे जाना लगा है। रेल किराए और माल भाड़े का
बढ़ना और दो – दो रेल हादसे कई सवाल खड़े करने के लिए काफी हैं तो चीनी के दाम
बढ़ना और एलपीजी के साथ ही केरोसीन के दाम किस्तों में बढ़ाने की ख़बरें पहले ही महंगाई
के बोझ तले दबी जनता को सीधे सीधे बुरे दिनों की ओर ईशारा कर रही हैं।
हालांकि मोदी सरकार
इऩ कड़वे फैसलों के लिए सीधे तौर पर इसका दोष पिछली यूपीए सरकार के सिर मढ़ रही
है। सरकार का साफ कहना है कि यूपीए सरकार के गलत फैसलों के चलते देश की आर्थिक
स्थिति खराब है। इसमें कोई नई बात नहीं है क्योंकि ये हर क्षेत्र का नियम है, फिर
ये तो राजनीति है। नया बॉस सारी गलतियों के लिए पिछले बॉस को जिम्मेदार ठहरा देता
है, और यही आसानी से अपना पल्ला झाड़ने का सबसे आसान तरीका भी है। मोदी सरकार भी
अभी कुछ ऐसी ही स्थिति में है। अपने हर कड़वे फैसले के लिए मोदी पिछली सरकार को
दोषी ठहरा रही है फिर चाहे वो रेल किराया व माल भाड़े में ईजाफे के फैसले की बात
हो या फिर देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए सरकार के और दूसरे फैसले।
सरकार के 30 दिनों
में खासकर महंगाई जैसे कड़वे फैसलों के लिए विपक्ष की आलोचना झेल रहे मोदी के लिए
इन पर जवाब देना भले ही असहज हो रहा हो लेकिन मोदी सरकार के कुछ फैसले सरकार की एक
सधी हुई शुरुआत नजर आती है।
विदेश में जमा काले
धन पर एसआईटी का गठन का फैसला हो या फिर फैसलों में तेजी लाने के लिए यूपीए काल के
करीब दर्जनभर अधिकार प्राप्त मंत्रियों के समूहों को भंग करना ये ईशारा कर रहे थे
कि मोदी सरकार जनता से किए अपने किए वादों को पूरा करने के प्रति गंभीर है। साथ ही
सरकारी दफ्तरों में बाबूगिरी पर लगाम कसने की ओर कदम बढ़ाना जनता के लिए फायदेमंद जरूर
साबित होगा क्योंकि जनता का पाला इन बाबूओं से ही पड़ता है और उनके काम
महीनों-सालों तक लटके रहते हैं। मंत्रियों को अपने काम का रोडमैप बनाने और 100 दिन
का एजेंडा तैयार करने के निर्देश देकर खुद उसकी मॉनीटरिंग करना इस ओर तो ईशारा
करता है कि सरकार की नीयत काम करने की है, ये अलग बात है कि इसके दूरगामी ही सही,
लेकिन परिणाम नजर आएं।
30 दिन में किसी भी
सरकार के काम का आकलन करना कहीं से भी तर्क संगत तो नहीं लगता लेकिन हर कोई जानना
चाहता है कि मोदी सरकार किस दिशा में आगे बढ़ रही है। क्या वाकई में अच्छे दिन
आएंगे ? जो फिलहाल महंगे दिन
दिखाई दे रहे हैं! क्या वाकई में
सुशासन आएगा? क्या लोगों को
महंगाई से निजात मिलेगी ? क्या भारत विश्व की आर्थिक महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर होगा ? ऐसे तमाम सवालों की लंबी फेरहिस्त है क्योंकि चुनाव से पहले अबकी बार मोदी
सरकार का नारा लगाते वक्त और अच्छे दिन लाने का वादा करते वक्त देश की आम जनता से
किए वादों की लिस्ट की भी लंबी फेरहिस्त है।
उम्मीद करते हैं कि कुछ कड़वे फैसलों के बाद ही सही देश की जनता के अच्छे दिन
आएंगे। वरना मोदी सरकार को ये नहीं भूलना चाहिए कि 59 महीने के बाद अच्छे दिन न
सही देश की जनता का दिन तो आएगा ही, फिर जनता तय करेगी कि किसके अच्छे दिन आएंगे
और किसके खराब !
deepaktiwari555@gmail.com
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