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मंगलवार, 10 दिसंबर 2013

राजस्थान में क्यों हारी कांग्रेस ?

राजस्थान में डूबते हाथ को तिनके का सहारा भी न मिला और चुनाव में सत्ताधारी दल का सूपड़ा ही साफ हो गया। विकास के मुद्दे पर दमदारी से चुनाव लड़ने वाले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को चुनावी नतीजे से पहले पूर्ण विश्वास था कि सत्ता परिवर्तन की रवायत को पीछे छोड़ इस बार राजस्थान में कांग्रेस पूरी दमदारी से लगातार दूसरी बार सत्ता में काबिज होगी लेकिन 8 दिसंबर को 8 बजे सुबह मतगणना शुरू होने के साथ ही स्पष्ट होने लगा था कि राजस्थान में गहलोत सरकार के सूर्यास्त का वक्त करीब आ गया है। इसकी तस्वीर कांग्रेस के लिए इतनी भयावह(कांग्रेस 21 सीट) होगी ये तो शायद ही किसी ने सोचा था लेकिन जनता के फैसले का कोई कैसे नकार सकता है।   
जनता के फैसले को गहलोत ने समझने में देर नहीं की और मतगणना शुरू होने के चंद घंटों बाद ही अपनी हार स्वीकार कर ली लेकिन इसका ठीकरा उन्होंने केन्द्र सरकार के सिर फोड़ कर अपने दामन को बचाने की कोशिश जरूर की लेकिन राजस्थान में कांग्रेस का एक तरह से जमीन के नीचे चले जाना कई अहम सवाल खड़े करता है कि क्या वाकई में चुनाव में ऐसा हुआ है जैसा कि अशोक गहलोत ने हार के बाद कहा या फिर इस करारी शिकस्त के पीछे कुछ और ही कारण थे।
जहां तक मेरी समझ में आया मोदी का असर कहीं न कहीं राजस्थान में हावी था लेकिन इसके अलावा कांग्रेस का चुनावी कुप्रबंधन, नेताओं की आपसी खटपट और टिकटों का वितरण भी इस करारी हार के लिए काफी हद तक जिम्मेदार रहा। (जरूर पढ़ें- राहुल के 82 वर्षीय युवा साथी !)
राहुल गांधी के युवाओं और दागियों को पार्टी और चुनाव से दूर रखवे का फार्मूला राजस्थान में उस वक्त फेल होता दिखा जब जातिगत वोटों के खातिर कांग्रेस ने दागियों के परिजनों को टिकट बांटने से जरा भी परहेज नहीं किया। बहुचर्चित भंवरी देवी मामले में जेल में बंद गहलोत के पूर्व मंत्री महिपाल मदेरणा की पत्नी लीला मदेरण औंसया में औंधें मुंह गिरी तो इसी मामले में जेल में बंद पूर्व विधायक मलखान सिंह की मां अमरी देवी 85 वर्ष में भी कुछ कमाल नहीं कर सकी। इसी तरह दुद्दू विधानसभा पर यौन शोषण मामले में जेल में बंद पूर्व मंत्री बाबू लाल नागर के भाई को हजारी लाल नागर और एक महिला की मौत पर मंत्री पद गंवाने वाले राम लाल जाट आसिंद सीट पर बड़े अंतर से चुनाव हारे जबकि दुष्कर्म के आरोंपों से घिरे विधायक उदयलाल आंजना भी अपनी सीट नहीं बचा पाए। जातीय वोटरों को लुभाने के लिए कांग्रेस ने दागियों और उनके परिजनों को टिकट देने से परहेज नहीं किया और नतीजा सबके सामने है। कांग्रेस के ये भरोसेमंद घोड़े चुनावी दौड़ में फिसड्डी साबित हुए।  
ये छोड़िए मांडवा सीट से चुनाव लड़ने वाले कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष चंद्रभान सिंह तो चुनाव जीतना तो दूर अपनी जमानत तक नहीं बचा सके और चौथे नंबर पर रहे जबकि लाडनूं सीट से ताल ठोक रहे कांग्रेस के 83 वर्षीय हरजीराम बुरड़क भी बड़े अंतर से चुनाव हार गए। ये तो महज कुछ नाम हैं, गहलोत के 22 मंत्रियों का चुनाव हारना और 5 दर्जन से ज्यादा कांग्रेस प्रत्याशियों का 20 हजार से ज्यादा मतों के अंतर से चुनाव हारना बताने के लिए काफी है कि टिकट वितरण से लेकर चुनावी प्रबंधन में कांग्रेस नेतृत्व पूरी तरह फेल रहा और कांग्रेस राजस्थान के इतिहास में अपने न्यूनतम स्कोर पर आऊट हो गयी।


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