70 विधानसभा सीटों वाली दिल्ली प्रदेश तो
छोटा है लेकिन दिल्ली की मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने वाले का कद देशभर में
अपने आप ऊंचा हो जाता है। सोचिए जो शीला दीक्षित 15 सालों तक इस कुर्सी पर राज
करती रही, जिस पार्टी से वह आती है और देश की राजनीति में उस शख्सियत का क्या कद होगा..? चुनाव में इस शख्सियत को राजनीति में एक साल पहले कदम रखने वाले एक शख्स
अरविंद केजरीवाल ने ये कहकर चुनौती दी कि दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित जिस
सीट से चुनाव लड़ेंगी, वह भी उसी सीट से मैदान में उतरेंगे।
राजनीतिक पंडितों की नजर में ये अति
उत्साह में उठाया गया कदम था, जिसे दूसरी भाषा में “पॉलीटिकल सुसाईड” भी कहा जा रहा था। लेकिन 4 दिसंबर को दिल्ली के मतदाता जब अपने पोलिंग
बूथ पर वोट डालने पहुंचे तो उनके मन में शायद कुछ और ही था। उन्हें केजरीवाल की “आम आदमी पार्टी” के झाड़ू को दिल्ली की राजनीति से
कांग्रेस और भाजपा को साफ करना एक बेहतर विकल्प लगा और जब 8 दिसंबर को ईवीएम का
पिटारा खुला तो दिल्ली के लोगों की दिल की बात दुनिया के सामने आ गयी और “आप” के झाड़ू से दिल्लीवासियों ने कांग्रेस का
सफाया कर दिया। केजरीवाल के साथ ही आम आदमी पार्टी इतिहास रच चुकी थी और सबके
अनुमानों से परे केजरीवाल ने न सिर्फ नई दिल्ली सीट पर 15 सालों से दिल्ली की
मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को न सिर्फ 25 हजार 864 वोटों से करारी हार का स्वाद चखा
दिया बल्कि केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने राजनीति की अपनी पहली ही पारी में 28
सीटों में भाजपा और कांग्रेस के प्रत्याशियों को पटखनी देखकर “आप” के अस्तित्व पर सवाल उठाने वालों के मुंह
पर ताला जड़ दिया।
“आप” को बरसाती मेंढ़क की संज्ञा देने वाली
शीला दीक्षित को नई दिल्ली विधानसभा सीट के परिणाम से ही ये समझ में आ चुका होगा
कि जिन्हें वे बरसाती मेंढ़क समझ रही थी दिल्ली की जनता ने उन्हें राजनीति की
गंदगी साफ करने का बीड़ा सौंप दिया है और इसके लिए झाड़ू उठाने से भी परहेज नहीं
किया।
वैसे भी शीला जी राजनीति के दलदल में
बरसाती मेंढ़क ही ऐसा कमाल दिखा सकते हैं लेकिन अफसोस सत्ता के नशे में आप इन्हें
पहचान नहीं पायी और अपने 40 साल के राजनीतिक करियर में हार का एक ऐसा दाग लगा
बैठीं जो शायद ही कभी आपके दामन से मिट पाए। वैसे गलती आप की भी नहीं है 15 साल तक
दिल्ली की मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने वाला कोई भी शख्स इस खुशफहमी का शिकार
हो जाएगा कि वो अजेय है और उसे पराजित करना नामुमकिन है, लेकिन आपकी ये खुशफहमी भी
“आप” ने ही दूर कर दी। “आप” के अऱविंद केजरीवाल ने तो आप को आपकी ही
सीट पर ऐसा पटका की शायद ही आप इस सदमे से कभी उबर पाएं। वैसे हार के बाद आपकी “बेवकूफ हैं हम” वाली पंक्तियां आपके हार के दर्द को बयां
भी कर रही थी।
असल राजनीति भी वैसे आपको राजनीति की अपनी
संभवत: आखिरी पारी में ही समझ आयी होगी क्योंकि
आपने ये शायद ही अपने राजनीतिक जीवन में सोचा होगा कि एक साल पहले राजनीति में आया
एक शख्स आपके राजनीतिक करियर पर झाड़ू फेर कर चला जाएगा।
बहरहाल दिल्ली के चुनावी नतीजे शीला
दीक्षित और कांग्रेस के लिए ही नहीं वरन देश की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी भाजपा के
लिए भी एक सबक है कि राजनीति किसी की बपौती नहीं है। जनता अगर ठान ले तो किसी को
भी शीला दीक्षित बना सकती है और किसी को भी अरविंद केजरीवाल बस सामने वाले की नीयत
में खोट नहीं होना चाहिए। उम्मीद करते हैं “आप” आम आदमी की उम्मीद को धूमिल नहीं होने
देगी और जनता के भरोसे को कायम रखेगी। आखिर में दिल्ली की जनता के साथ ही आम आदमी
पार्टी को राजनीति में शानदार आगाज के लिए ढ़ेरों बधाई।
deepaktiwari555@gmail.com
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