सरकार किसी की और श्रेय विरोधी ले जाए,
ऐसे कैसे हो सकता है। अगर होता दिखाई दे और नेताजी खामोश बैठे रहें ऐसे तो संभव ही नहीं है। भ्रष्टाचारियों
पर नकेल कसने वाले लोकायुक्त अधिनियम को लेकर उत्तराखंड में सत्तापक्ष और विपक्ष
में मचा घमासान तो कुछ इसी ओर ईशारा कर रहा है। लोकायुक्त अधिनियम को राष्ट्रपति
प्रणव मुखर्जी की मंजूरी मिलने के बाद भी जिस तरह से बहुगुणा सरकार ने इसको लागू
करने को लेकर लचर रवैया अपनाया है, उसके बाद इस अधिनियम के अधर में लटकने का आसार
ज्यादा दिखाई दे रहे हैं। खास बात ये है कि मुख्यमंत्री महोदय को अधिनियम में खामियां
नजर आती हैं लेकिन उनकी ही पार्टी के नेता और विधानसभा अध्यक्ष गोविंद कुंजवाल
चाहते हैं कि लोकायुक्त कानून को उसके मूल रूप में ही लागू किया जाए और जरुरत
महसूस होने पर ही आवश्यक संशोधन किए जाएं।
दो साल पहले लोकपाल
को लेकर जब समाज सेवी अन्ना हजारे का आंदोलन अपने चरम पर था ठीक उसी वक्त
उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव से पहले दोबारा प्रदेश के मुख्यमंत्री की कुर्सी
संभालने वाले भाजपा के भुवन चंद्र खंडूड़ी ने भ्रष्टाचार के खिलाफ सशक्त लोकायुक्त
लाने का वायदा किया था और उसी के तहत राज्य विधानसभा में इस विधेयक को रखा गया था।
जिसे तत्कालीन राज्यपाल मार्गेट अल्वा ने अपनी सहमति देते हुए इसे राष्ट्रपति की
मंजूरी के लिए भेज दिया था। जिसके बाद बीती चार सितंबर को राष्ट्रपति ने इस विधेयक
पर अपने हस्ताक्षर किए और लोकायुक्त अधिनियम का उत्तराखंड मे लागू होने का रास्ता
साफ हो गया।
राष्ट्रपति के पास
मंजूरी के लिए भेजे जाने और राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने की समयावधि के बीच उत्तराखंड
में सत्ता परिवर्तन हो चुका था और 2012 के विधानसभा चुनाव में कांटे के मुकाबले के
बाद आखिरकार कांग्रेस राज्य में सरकार बनाने में सफल साबित हुई और मुख्यमंत्री के
तौर पर विजय बहुगुणा ने शपथ ली।
सूबे का निजाम बदला
तो वह कैसे लोकायुक्त का श्रेय पिछली सरकार को दे सकता था लिहाजा बहुगुणा ने राष्ट्रपति
की मंजूरी के बाद भी लोकायुक्त अधिनियम के कई प्रावधानों पर आपत्ति जताते हुए ये
संकेत दिए हैं कि पिछली भाजपा सरकार द्वारा पारित ये विधेयक शायद ही अपने मूल रूप
में लागू हो पाए। हालांकि इस पर अखिरी फैसला सात नवंबर को होने वाली बहुगुणा
कैबिनेट की बैठक में ही होगा लेकिन मुख्यमंत्री बहुगुणा ये कह चुके हैं कि इस
अधिनियम में संशोधन भी किया जा सकता या फिर इसे निरस्त कर नया विधेयक भी लाया जा
सकता है।
दरअसल कभी न्यायाधीश
रहे मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा को निचली न्यायपालिका को लोकायुक्त के दायरे में
लाना असंवैधानिक लग रहा है। वहीं मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा ने लोकायुक्त को लेकर
सरकार की मंशा पर सवाल उठाते हुए कहा है कि इतना सशक्त लोकायुक्त किसी राज्य मे
नहीं बना है और इससे भ्रष्टाचार पर अंकुश लगेगा। साथ ही इसमें किसी तरह के संशोधन
को अनुचित ठहराते हुए सरकार से इसे इसके मूल स्वरूप में लागू करने की मांग की है। लेकिन
उत्तराखंड में फिलहाल इस लोकायुक्त अधिनियम का लागू होना फिलहाल टेढ़ी खीर नजर आ
रही है क्योंकि कांग्रेसी खेमा इसमें भी अपना नफा नुकसान तलाश रहा है।
वर्तमान स्वरूप में
इस लोकायुक्त अधिनियम के लागू होने की स्थिति में भ्रष्टाचार पर कितना अंकुश लगता और
भ्रष्टाचारियों पर कितनी नकेल कसती ये तो वक्त ही तय करता। लेकिन फिलहाल श्रेय की
लड़ाई में भ्रष्टाचारियों पर नकेल कसने वाला कानून उत्तराखंड में लागू होने से
पहले ही दम तोड़ता दिखाई दे रहा है और शायद भ्रष्टाचारी राजनेता भी तो यही चाहते
हैं।
deepaktiwari555@gmail.com
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें