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गुरुवार, 24 अक्तूबर 2013

प्याज, सत्ता और मतदाता

प्याज के दामों से सबसे ज्यादा प्रभावित दिल्ली में तो मैं नहीं हूं लेकिन एक और चुनावी राज्य राजस्थान की राजधानी जयपुर में शाम को टहलते वक्त आपस में प्याज की कीमतों पर चर्चा कर रही महिलाओं के एक झुंड ने मेरा ध्यान अपनी ओर जरुर खींचा। चलते चलते में जितना समझ पाया वो यही था कि उनमें से एक महिला आज ही बाजार से प्याज खरीद कर लाई थी और प्याज की कीमतों पर दूसरी महिलाओं का सामान्य ज्ञान बढ़ा रही थी। चारों तरफ चर्चा में सिर्फ प्याज ही है, प्याज की कीमतों पर बहस और चर्चाओं का दौर जारी है तो उन दिनों को याद किया जा रहा है जब लोग सब्जीवाले से बिना दाम पूछे प्याज तुलवा लेते थे।
ऐसे वक्त पर जब पांच राज्यों में चुनावी मौसम अपने पूरे शबाब पर है, सत्ता पाने के लिए विभिन्न राजनीतिक दलों की मतदाताओं को लुभाने की कोशिशें जारी हैं। प्याज सत्ताधारी दलों के लिए किसी विलेन से कम साबित नहीं हो रहा है। प्याज रूपी विलेन की ताकत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को केन्द्रीय कृषि मंत्री शरद पवार और खाद्य मंत्री के वी थॉमस से मुलाकात कर दिल्ली में प्याज की आपूर्ति में सुधार लाने का अनुरोध करना पड़ा।
दिल्ली की सियासत में प्याज की अहमियत को शीला दीक्षित से बेहतर और कौन समझ सकता है, क्योंकि ये वही प्याज है जिसने 1998 में सत्ताधारी भाजपा को पटखनी देते हुए दिल्ली में अपना झंडा फहराया था। प्याज की आसमान छूती कीमतें शायद शीला को 1998 का वो दौर याद दिला रही होंगी और शायद यही शीला दीक्षित की डर की वजह भी है।
शीला दीक्षित की पूरी कोशिश यही है कि चुनाव से पहले कैसे भी प्याज की कीमतें जमीन पर आ जाएं ताकि प्याज न खरीद पाने की मतदाताओं का गुस्सा कम से कम दिल्ली में मतदान की तारीख 4 दिसंबर को शीला सरकार के खिलाफ न निकले। प्याज के चढ़ते दामों पर शीला की उड़ी हुई नींद का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि शीला ने सस्ते दाम में प्याज बेचने देने के लिए चुनाव आयोग के सामने गुहार लगाई है।
वैसे अच्छी बात ये है कि प्याज की आसमान चढ़ती कीमतों का ये डर आम आदमी से ज्यादा अब राजनीतिक दलों को सताने लगा है, क्योंकि प्याज की कीमतें जितनी चढ़ेंगी नेताओं की कुर्सी जाने का डर भी उतना ही बढ़ता जाएगा। ये डर दिखने भी लगा है और पांच साल तक जनता की सुध न लेने वाली सरकार के मुखिया को अब अचानक से नजर आने लगा है कि प्याज लोगों की थाली से गायब हो रहा है और प्याज के रुप में महंगाई किस कदर सुरसा के मुंह की तरह बढ़ रही है। अब इन्हें लोगों को सस्ते दाम पर प्याज उपलब्ध कराने की चिंता भी सताने लगी है और आम आदमी की पहुंच से दूर हो रहे प्याज को उनकी थाली में लाने का वादा भी ये करने लगे हैं। ये बात अलग है कि सरकार के पांच साल के कार्यकाल में इन्होंने आम जनता की सुध लेने की जहमत तक नहीं उठाई।
बहरहाल चुनावी मौसम में एक बार फिर से प्याज अहम रोल अदा करने जा रहा है, वोट के लिए प्याज की कीमतों को जमीन पर लाने के लिए नेता किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं, वो जमाखोरों औऱ मुनाफाखोरों को जमकर कोस रहे हैं लेकिन बहुत कम लोग ये जानते हैं कि जमाखोरों औऱ मुनाफाखोरों को संरक्षण देने वाले भी ये नेतागण ही हैं ऐसे में देखना ये होगा कि क्या मतदाता इस न दिखाई पड़ने वाले राजनातिक गठजोड़ को समझ पाएंगे और अपने वोट के जरिए ऐसे भ्रष्ट नेताओं को सबक सिखाएंगे..?

deepaktiwari555@gmail.com

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