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मंगलवार, 4 जून 2013

RTI - पर्दे में रहने दो…पर्दा न उठाओ

राजनीति भी क्या चीज है...जब तक अपना फायदा दिख रहा है तब तक तो सब ठीक है...जनता के बीच गला फाड़ फाड़ कर नेता इसका बखान करने से नहीं चूकते लेकिन जब अपनी ही पोल पट्टी खुलने का खतरा महसूस हो तो सब बकवास है..राजनीतिक दलों को आरटीआई के दायरे में लाने की बात पर तो कम से कम कुछ ऐसा ही नजारा देखने को मिल रहा है। क्या कांग्रेस..? क्या भाजपा..? क्या अन्य सभी राजनीतिक दल..? सबकी रातों की नींद उड़ी हुआ है..! राजनीतिक दलों को आरटीआई के दायरे में लाने की सूचना आयोग की कवायद इनमें से किसी के गले नहीं उतर रही है..! तर्क भी अजीब अजीब दिए जा रहे हैं....कह रहे हैं कि हम चुनाव आयोग को सारी जानकारी देते रहे हैं ऐसे में राजनीतिक दलों को आरटीआई के दायरे में लाना ठीक नहीं है..! अरे महाराज जब आप चुनाव आयोग को जानकारी दे रहे हैं तो फिर सूचना आयोग को देने में क्या दिक्कत है..?
आरटीआई का लाने का ढिंढ़ोरा पीट पीटकर वोट मांगने वाली कांग्रेस कह रही है कि ये फैसला उसे अस्वीकार्य है और इससे लोकतांत्रिक व्यवस्था कमजोर होगी। केन्द्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद तो ये तक कह बैठे कि आरटीआई पर अंकुश बहुत जरुरी है...इसे इस तरह बेकाबू नहीं होने दे सकते। खुर्शीद साहब तो जानते हैं आरटीआई के नफा नुकसान...खुर्शीद की संस्था में उजागर हुए भ्रष्टाचार का मामला तो याद ही होगा आपको..!
आरटीआई को लेकर पारा भाजपा का भी खूब चढ़ा हुआ है। भाजपा का तर्क है कि इससे लोकतांत्रिक व्यवस्था कमजोर होगी। समझ नहीं आ रहा कि इससे लोकतांत्रिक व्यवस्था कमजोर कैसे होगी..? मेरी समझ से तो इससे तो लोकतांत्रिक व्यवस्था मजबूत होनी चाहिए...जनता का विश्वास राजनीतिक दलों पर और बढ़ना चाहिएअब भाजपाईयों के इन तर्कों के पीछे की कहानी तो वे ही बेहतर जानते होंगे लेकिन आरटीआई के करंट का असर फिलहाल सभी राजनीतिक दलों पर साफ दिखाई दे रहा है..!      
जाहिर है आरटीआई के दायरे में रहने पर राजनीतिक दल किसी जानकारी को छिपा नहीं सकते...खासकर पार्टियों को मिलने वाले चंदे, सरकारी मदद, सस्ती जमीन और किराए में छूट आदि...ऐसे में इन्हें करंट तो लगना ही था..!
कुर्सी की लड़ाई में राजनीतिक दलों को विरोधी दल की हर बात पर...हर फैसले पर एतराज होता है और वे एक दूसरे को जमकर कोसते हैं लेकिन जब बात अपने हितों की आती है तो ये एक हो जाते हैं। यहां पर भी तो ऐसा ही कुछ हो रहा है राजनीतिक दलों को आरटीआई में लाने के फैसले के खिलाफ एक दूसरे के धुर विरोधी राजनीतिक दल साथ मिलकर इस लड़ाई को लड़ रहे हैं।
देश से जुड़े अहम मसलों पर इनकी एकजुटता कभी नहीं दिखाई देती...चाहे संसद चलने देने का मामला हो या फिर जनहित से जुड़े अहम मुद्दों पर एकजुट होकर फैसला लेने का मामला..! हां एक और मौका है जब इनकी एकजुटता देखने लायक होती है...वो है जब संसद में इनके वेतन भत्ते बढ़ाने की बात आती है। उस वक्त तो धव्निमत से ये विधेयक पास कर दिए जाते हैं क्योंकि ये उनकी व्यक्तिगत लाभ से जुड़ा हुआ मसला है न...जनता से जुड़ा हुआ नहीं..!
राजनीतिक दल जनता के हितैषी होने का दम भरते हैं...सत्ता में आने पर देश सेवा, जन सेवा की बड़ी बड़ी बातें करते हैं लेकिन ये राजनीतिक दल क्या-क्या कर रहे हैं..? कैसे-कैसे कर रहे हैं..? इसको जनता के साथ साझा करने को तैयार नहीं है।
अरटीआई  के नाम पर ये घबराहट क्यों है..? आरटीआई के नाम पर पसीना क्यों आ रहा है..? जाहिर है कि सब कुछ इतना स्पष्ट नहीं है जितना कि राजनीतिक दल जनता को दिखाने की कोशिश करते हैं।
चुनावों में आंख मूंद कर इन राजनीतिक दलों के प्रत्याशियों को वोट देने वाली जनता को अब इस बात को समझ लेना चाहिए कि जो राजनीतिक दल अपने जानकारियों को जनता से ही पर्दे में रखना चाहते हैं वे क्या इनका भला करेंगे..! वैसे आरटीआई पर नेताओं की छटपटाहट को देखकर तो इन पर एक पुराना गाना याद आ रहा है...पर्दे में रहने दो पर्दा न उठाओ...पर्दा जो उठ गया तो भेद खुल जाएगा..!


deepaktiwari555@gmail.com

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