केदारनाथ में प्रलय
के बाद जैसे जैसे दिन गुजर रहे हैं वैसे वैसे मौत का आंकड़ा भी लगातार बढ़ता जा
रहा है। तबाही थमने के बाद मौत का जो आंकड़ा पहले 15 से 20 लोगों का बताया जा रहा
था अगले दिन वो संख्या 60 पर पहुंच गयी। इसी तरह मृतकों की संख्या इसके बाद 100
फिर 200 और फिर साढ़े पांच सौ से 700 तक बतायी जा रही है। उत्तराखंड के
मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा तो अब इस बात को स्वीकार कर चुके हैं कि ये संख्या एक
हजार के करीब हो सकती है।
बहुगुणा भले ही एक
हजार की संख्या में अटके हों लेकिन उत्तराखंड में खासकर केदारनाथ, रामबाड़ा और
गौरीकुंड में हुई तबाही की तस्वीरें कुछ और ही कहानी बयां कर रही हैं। केदारनाथ के
कपाट साल में सिर्फ छह माह के लिए खुलते हैं ऐसे में हर कोई इन छह माह में
केदारनाथ के दर्शन कर धन्य हो जाना चाहता है। खासकर मई – जून में मैदानों में भीषण
गर्मी और छुट्टियों का समय होने के कारण भी इस वक्त श्रद्धालु चार धाम यात्रा के
लिए उत्तराखंड का रुख करते हैं। 14 किलोमीटर की खड़ी पैदल चढ़ाई होने के कारण
चारों धामों में केदारनाथ धाम की यात्रा सबसे कठिन मानी जाती है।
गौरीकुंड से केदारनाथ
की पैदल यात्रा शुरु होती है ऐसे में गौराकुंड केदारनाथ यात्रा का पहला और सबसे
अहम पड़ाव है। दोपहर बाद या शाम के वक्त गौरीकुंड पहुंचने वाले अधिकतर यात्री
गौरीकुंड में रात्रिविश्राम करते हैं और दूसरे दिन सुबह 14 किलोमीटर तक पैदल चढ़ाई
शुरु करते हैं। बीते साल अप्रेल में केदारनाथ यात्रा पर हमारा पहला पड़ाव भी
गौरीकुंड ही था और उस वक्त वहां के सभी होटल, धर्मशाला और लॉज यात्रियों से खचाखच
भरे हुए थे। गौरीकुंड मे ही करीब 100 से ज्यादा छोटे बड़े होटल, धर्मशाला और लॉज
हैं औऱ यात्रा सीजन में सारे होटल, धर्मशाला और लॉज फुल रहते हैं। अनुमान के
मुताबिक यहां पर एक बार में 8 से 10 हजार यात्री रुकते हैं।
इसके बाद आधे रास्ते
पर यानि 7 किलोमीटर पर रामबाड़ा पर यात्रा का अगला पड़ाव है और यहां पर भी बड़ी
संख्या में अंधेरा घिरने पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु रात्रि विश्राम करते हैं। हालांकि
यहां पर बड़े पक्के निर्माण नहीं है लेकिन इसके बाद भी यात्रियों के खाने पीने के
साथ ही ठहरने के लिए पर्याप्त व्यवस्थाएं रहती हैं। यहां पर भी श्रद्धालुओं की ये
संख्या करीब 4 से 5 हजार रहती है।
रामबाड़ा के बाद 7
किलोमीटर की यात्रा के बाद श्रद्धालु केदारनाथ धाम पहुंचते हैं। रात घिरने पर
श्रद्धालु केदारनाथ में रात्रि विश्राम करते हैं और सुबह केदार बाबा के दर्शन के
बाद श्रद्धालु केदारनाथ से वापस लौटते हैं। केदारनाथ में एक दिन में कम से कम 10
हजार श्रद्धालु मौजूद रहते हैं। साथ ही यहां के पुजारियों, पंडों और दुकान, होटल,
लॉज, धर्मशाला संचालकों की संख्या करीब 5 हजार से ज्यादा रहती है। केदारनाथ
पहुंचने के बाद हमने एक रात केदारनाथ में गुजारी थी और इस दौरान हमने देखा था कि
सभी होटल, लॉज, धर्मशाला, गेस्ट हाउस पूरी तरह श्रद्धालुओं से भरे हुए थे।
इसके साथ ही केदारनाथ
से रामबाड़ा और रामबाड़ा से गौरीकुंड के बीच के रास्ते में भी हजारों यात्री बिना
रुके आ जा रहे होते हैं। चूंकि केदारनाथ में मौत का सैलाब सुबह करीब 8 बजे के आस
पास आया था ऐसे में ज्यादातर यात्री धर्मशाला, होटल और लॉज के अदंर ही थे। मौत के
इस सैलाब में जहां केदारनाथ, रामबाड़ा और गौरीकुंड के सभी होटल, लॉज और धर्मशालाओं
जमींदोज हो गयी हैं तो ऐसे में अंजादा लगाया जा सकता है कि सिर्फ इन तीनों स्थानों
पर ही कितने यात्रियों की मौत हुई होगी..?
उत्तराखंड सरकार ये
आंकड़ा भले ही एक हजार के करीब होने का अनुमान लगा रही हो लेकिन वास्तव में मौत का
ये आंकड़ा 15 हजार से भी बहुत ज्यादा है। इसके साथ ही बद्रीनाथ, हेमकुंड साहिब,
गंगोत्री और यमुनोत्री के साथ आपदा प्रभावित दूसरे इलाकों में हुई मौतों का आंकड़ा
अलग से है।
हम तो यही उम्मीद
करेंगे कि मौत का आंकड़ा कम से कम हो लेकिन तबाही का ये मंजर और हालात तो कुछ और
ही बयां कर रहे हैं..!
शासन प्रशासन तो
बहुत कुछ नहीं कर पाया हालांकि इनसे बहुत ज्यादा उम्मीद भी नहीं थी लेकिन भारतीय सेना
के उन सभी जवानों को सलाम है जिन्होंने दुर्गम पहाड़ी इलाकों में विपरित
परिस्थितियों में न सिर्फ हजारों लोगों की जान बचाई बल्कि बिना रुके वे लगातार
अपने लोगों की जिंदगियों को बचा रहे हैं।
deepaktiwari555@gmail.com
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