शिवसेना को महाराष्ट्र
की सत्ता में आने का भरोसा तो पूरा था, लेकिन जब जनादेश नहीं मिला तो शिवसेना कर
भी क्या सकती थी। हालांकि पुरानी साथी भाजपा से हाथ मिलाने का रास्ता अभी भी खुला
है। भाजपा को कुछ शर्तों के साथ ही सही इस पर कोई ऐतराज नहीं है, लेकिन शिवसेना
असमंजस में है कि आखिर करे तो क्या करे ?
राजनीति में सत्ता
की चाहत तो हर किसी को होती है। शिवसेना के साथ भी कुछ ऐसा ही है, लेकिन जनादेश
शिवसेना के पक्ष में नहीं आया तो भी उसके पास अपने पुराने सहयोगी के साथ हाथ
मिलाकर सत्ता सुख भोगने का पूरा मौका है। लेकिन असमंजस में डूबी शिवसेना को नहीं
सूझ रहा कि किस राह चला जाए। सत्ता के लिए भाजपा की शर्तों को मानते हुए फिर से
हाथ मिला लिया जाए या फिर मजबूत विपक्ष की भूमिका निभाते हुए अगले चुनाव का इंतजार
करे ?
रास्ते दो ही हैं,
लेकिन फिर भी फैसला लेने में शिवसेना हिचकिचा रही है, ये जाहिर करता है कि वो
सत्ता में सहयोगी रहने का मौका नहीं गंवाना चाहती, वैसे भी क्या गारंटी है कि पांच साल इंतजार करने के बाद
सत्ता मिलेगी ही ?
ऐसे में कभी सामना
संपादकीय के जरिए तो कभी अपने नेताओं के बयानों के जरिए भाजपा को विपक्ष में बैठने
का भय दिखाकर अपनी शर्तें मनवाने की पूरी कोशिश भी शिवसेना कर रही है। लेकिन
महाराष्ट्र में छोटे भाई से बड़ा भाई बनने का मौका पाने वाली भाजपा चाहती है कि
शिवसेना साथ आए, उसे कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन बड़े भाई के तौर पर नहीं छोटे भाई
की भूमिका में। भाजपा का स्टैंड कुछ हद तक साफ दिखाई देता है, लेकिन शिवसेना का
रूख समझ से परे है, या कहें कि सत्ता में भागीदारी निभाना तो शिवसेना चाहती है।
लेकिन सीना चौड़ा करके साथ छोड़ने वाली शिवसेना के सामने मुश्किल है कि आखिर सिर
झुकाएं तो कैसे ?
शायद इसलिए ही
शिवसेना कभी 48 घंटे का तो कभी 24 घंटे का अल्टीमेटम देकर दिखाना चाह रही है, कि
वे सत्ता में भागीदार बनना चाहते हैं, लेकिन भाजपा उनकी कुछ शर्तों को तो माने ! शिवसना ने भले ही
विधानसभा सचिव को चिट्ठी लिखकर नेता विपक्ष के पद के लिए दावेदारी पेश करके न
झुकने के संकेत दिए हैं, लेकिब जब इसके साथ ही भाजपा के साथ बातचीत का विकल्प भी
खुला रखा, जो ईशारा करता है कि सत्ता की चाहत दिल से दूर जाती नहीं दिख रही है !
भाजपा और शिवसेना की
तकरार और शिवसेना का न करना इंकार, एक बार फिर साबित करता है कि राजनीति में सत्ता
पाने का मौका कोई नहीं छोड़ना चाहता फिर चाहे वह शिवसेना हो या फिर कोई और पार्टी।
बहरहाल शिवसेना का
48 घंटे का ताजा अल्टीमेटम भी जल्द ही समाप्त हो जाएगा, ऐसे में देखना रोचक होगा
कि इसके बाद शिवसेना कोई फैसला ले पाती है, या फिर से भाजपा को किसी ऐसे ही
अल्टीमेटम के जरिए अपनी बात मनवाने की एक और कोशिश करेगी।
हां, एक बात तो साफ
झलक रही है, कि भाजपा फिलहाल शिवसेना के आगे न झुकने का मानस बना चुकी है !
deepaktiwari555@gmail.com
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