पहले टेस्ट सीरीज
में घर में अंग्रेजों ने धोया...उसके बाद चिर प्रतिद्वंदी पाकिस्तान ने नए साल में
घर में घुसकर वन डे सीरीज में रही सही कसर पूरी कर दी लेकिन भारतीय चयनकर्ताओं को
फिर भी अपने कप्तान और खिलाड़ियों पर पूरा भरोसा है। अंग्रेजों के खिलाफ 11 जनवरी
से शुरु हो रही 5 वन डे मैचों की सीरीज के लिए भारतीय क्रिकेट टीम के ऐलान से पहले
लग रहा था कि शायद इस बार भारतीय चयनकर्ता कुछ साहस दिखाएंगे और टीम में अपना
स्थान पक्का समझने वाले खिलाड़ियों को टीम से बाहर का रास्ता दिखाकर ये संदेश देने
की कोशिश करेंगे कि अच्छा प्रदर्शन करने वाला ही टीम में बना रहेगा लेकिन अफसोस ऐसा
नहीं हुआ और एक बार फिर से चयनकर्ताओं ने सिर्फ टीम चयन की औपचारिकता निभाई। हालांकि
चयनकर्ताओं ने बड़ी ही चालाकी से ये औपचारिकता न लगे इसके लिए सिर्फ एक खिलाड़ी
वीरेन्द्र सहवाग को टीम से बाहर का रास्ता जरूर दिखा दिया। इसके साथ ही अंग्रेजों
के खिलाफ टेस्ट सीरीज में और घरेलू क्रिकेट में शानदार प्रदर्शन करने वाले
चेतेश्वर पुजारा के साथ अमित मिश्रा को पहले 3 वन डे के लिए टीम में शामिल किया
गया। सहवाग और धोनी के बीच की तनातनी जग जाहिर है ऐसे में सिर्फ सहवाग को टीम से
बाहर करना अपने आप में कई सवाल खड़े कर गया। क्या एक बार फिर से कप्तान धोनी के
दबाव में धोनी को टीम से बाहर का रास्ता दिखाया गया है..? या फिर पिछले मैचों
में प्रदर्शन के आधार पर सहवाग की टीम से छुट्टी की गयी है..? अगर धोनी के दबाव
में सहवाग को बाहर नहीं किया गया है तो फिर प्रदर्शन के आधार पर बाकी खिलाड़ियों पर
चयनकर्ताओं ने आशीर्वाद क्यों बरसाया..? ज्यादा पीछे नहीं जाते हैं तो सिर्फ
पाकिस्तान के खिलाफ खत्म हुई तीन वन डे मैचों की सीरीज पर ही नजर डाल लें तो
तस्वीर साफ हो जाती है कि चयनकर्ताओं ने अंग्रेजों के खिलाफ जिस टीम का चयन किया
है उसमें खिलाड़ियों के पिछले प्रदर्शन को कितनी तरजीह दी है। सबसे पहले सहवाग की
ही अगर बात करें तो सहवाग ने 2 मैचों में (4+31)35 रन बनाए, गंभीर ने तीन मैचों में
सिर्फ 34(8+11+15) रन बनाए तो युवराज
ने 3 मैचों में (2+9+23)34 रन और कोहली ने
3 मैचों में सिर्फ 13(0+6+7) रन ही बनाए जबकि
रैना ने तीन मैचों में (43+18+31)92 रन तो धोनी ने 3
मैचों में सर्वाधिक (113+54+36)213 रन बनाए और
रोहित शर्मा ने 1 मैच में सिर्फ 4 रन ही बनाए। खिलाड़ियों के प्रदर्शन को ही
पैमाना माना गया होता तो धोनी और कुछ हद तक सुरैश रैना के अलावा कोई तीसरा खिलाड़ी
अंग्रेजों के खिलाफ टीम में रहने का हकदार नहीं होना चाहिए लेकिन ऐसा नहीं हुआ और सिर्फ
सहवाग को बाहर कर चयनकर्ताओं ने चयन की औपचारिकता पूरी कर ली। माना चयनकर्ता पूरी
टीम को एक बार में नहीं बदल सकते और ऐसा होना भी नहीं चाहिए लेकिन जो खिलाड़ी
लगातार खुद को मैदान में साबित नहीं कर पा रहा है कम से कम उसे टीम से बाहर करने
का साहस तो चयनकर्ताओं को दिखाना ही चाहिए। कागजों में मजबूत टीम की बजाए जरूरत है
ऐसे खिलाड़ियों से भरी टीम की जो युवा हों और देश के लिए खेलें और अपने प्रदर्शन
के दम पर भारत को विजयपथ पर वापस लेकर आएं। भुवनेश्वर कुमार और शमी अहमद ने न के
बराबर अंतर्राष्ट्रीय मैचों का अऩुभव होने के बाद भी दवाब से भरपूर मैच में 167
रनों के एक छोटे से स्कोर को बचाने के लिए जो जी जान लगाई उससे कहीं से ये नहीं लग
रहा था कि युवा खिलाड़ी दबाव में बिखर जाते हैं या अंतर्राष्ट्रीय मैचों का कम
अनुभव उनके प्रदर्शन के आड़े आता है। ऐसे खिलाड़ियों को बस इंतजार रहता है एक मौके
का जो दुर्भाग्य से भारत में युवा खिलाड़ियों को बहुत ज्यादा नहीं मिलता। हां सीनियर
खिलाड़ियों को चयनकर्ता खूब मौके देते हैं फिर चाहे उनका प्रदर्शन कैसा भी रहा हो।
ऐसा तो नहीं है कि हिंदुस्तान में जहां क्रिकेट धर्म से कम नहीं है वहां पर आपके
पास बढ़िया युवा खिलाड़ी नहीं है लेकिन उन्हें देश के लिए खेलने का मौका नहीं
मिलता या कहें कि नहीं दिया जाता..! खैर सहवाग पर
अविश्वास और दूसरी खिलाड़ियों का चयनकर्ताओं का विश्वास क्या रंग लाता है ये तो 11
जनवरी से शुरु होने वाले भारत – इंग्लैंड वनडे सीरीज में भारतीय खिलाड़ियों का
प्रदर्शन की तय करेगा। हम तो यही उम्मीद करेंगे कि भारत वन डे सरीज पर 5-0 से
कब्जा कर टेस्ट में मिली करारी हार का बदला लेकर 2013 में नए जोश से आगे बढ़े।
deepaktiwari555@gmail.com
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