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बुधवार, 4 दिसंबर 2013

एक्जिट पोल- कहीं खुशी, कहीं गम

पांच राज्यों मिजोरम, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान के बाद दिल्ली के चुनावी नतीजे चाहे कुछ भी हों लेकिन विभिन्न समाचार चैनलों और एजेंसियों के एक्जिट पोल सर्वे ने 2014 में मोदी के सहारे केन्द्र की सत्ता में आने को बैचेन भाजपा को फिलहाल खुश होने का मौका तो दे ही दिया है। अब ये खुशी 8 दिसंबर के बाद भी कायम रह पाएगी या नहीं ये तो पांच राज्यों के चुनावी नतीजों के सामने आने के बाद ही साफ हो पाएगा लेकिन फिलहाल चुनावी थकान उतार रहे भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं के लिए ये एक्जिट पोल किसी ऐसी नशीली दवा की तरह हैं, जिसने उनकी सारी थकान पलभर में ही छू मंतर जरूर कर दी होगी।
विभिन्न एक्जिट पोल को देखने के बाद खुश तो मोदी भी बहुत हो रहे होंगे और शायद मोदी पीएम की कुर्सी को अपने और करीब महसूस कर रहे होंगे। लेकिन कांग्रेस युवराज राहुल गांधी का चेहरा भुलाए नहीं भूलता। आखिर राहुल गांधी का क्या हाल हो रहा होगा जो अघोषित तौर पर 2014 में कांग्रेस के घोषित पीएम कैंडिडेट हैं। उन कांग्रेसी नेताओं का क्या हाल हो रहा होगा जिन्हें देश में पीएम की कुर्सी के लिए राहुल गांधी से योग्य कोई और नेता नहीं दिखाई देता। हालांकि ये लोग फिलहाल तो नतीजों से पूर्व एक्जिट पोल पर भरोसा न करने की बात कर रहे हैं लेकिन एक्जिट पोल में अगर स्थिति ठीक इसके उल्ट होती और कांग्रेस जीत के रथ पर सवार दिखाई दे रही होती तो शायद इनके सुर कुछ और ही होते और ये एक्जिट पोल के नतीजों को जनता की आवाज बताते नहीं अघा रहे होते।
एक्जिट पोल सर्वे में मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के नतीजे भले ही बहुत ज्यादा चौंकाने वाले न हों लेकिन कुल 70 विधानसभा सीटों वाली देश की राजधानी दिल्ली के नतीजे चौंकाने वाले जरूर हैं। जिस तरह से अधिकतर एक्जिट पोल में कांग्रेस को अर्श से फर्श पर आते और भाजपा को बहुमत के करीब पहुंचते और दिल्ली में सरकार बनाने का दावा करने वाली आम आदमी पार्टी को करीब एक दर्जन से ज्यादा सीटें मिलने की बात कही जा रही है वो अपने आप में जनता का बड़े राजनीतिक दलों को एक बड़ा ईशारा है कि बेहतर विकल्प होने की स्थिति में जनता कांग्रेस और भाजपा को छोड़कर आप जैसे किसी पार्टी का भी हाथ थाम सकते हैं। सिर्फ एक साल पहले 26 नवंबर 2012 को गठित हुई आम आदमी पार्टी का दिल्ली में अगर विभिन्न एक्जिट पोल के अनुसार प्रदर्शन रहता है तो ये भाजपा और कांग्रेस के माथे पर बल लाने के लिए काफी है क्योंकि आम आदमी पार्टी आने वाले वक्त में दिल्ली से बाहर निकलकर भी दोनों बड़े दलों की नींद उड़ा सकती है जिसे कहीं न कहीं भारतीय राजनीति के लिए एक शुभ संकेत कहा जा सकता है बशर्ते आम आदमी पार्टी जनता से किए अपने वादों पर कायम रहे और भ्रष्टाचार की कालिख से खुद को बचाकर रखे।
बहरहाल 2014 के सेमीफाईनल माने जा रहे पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में जनता ने तो अपना फैसला सुना दिया है जो 8 दिसंबर को देश के सामने आएगा लेकिन कम से कम तब तक तो विभिन्न समाचार चैनलों और एजेंसियों के इन एक्जिट पोल सर्वे को स्वीकार कर खुश होने और इसे नकार कर अपनी जीत के दावे करने के लिए तो सभी राजनीतिक दल स्वतंत्र हैं ही। फिलहाल तो इंतजार करते हैं 8 दिसंबर का और देखते हैं जनता ने अपने वोट की ताकत से इस बार किस किस की बोलती ईवीएम में बंद कर दी है।


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