चाहे
कोई कुछ भी कहे लेकिन इस बात को नहीं नकार सकता कि इस भौतिक युग में अर्थ के बिना
सब अनर्थ हैं। मतलब साफ है कि आप अगर किसी अच्छे कार्य के लिए लड़ाई भी लड़ रहे
हैं तो भी आप अर्थ पर ही निर्भर हैं। आम आदमी पार्टी अगर भ्रष्टाचार के खात्मे के
लक्ष्य के साथ चुनावी मैदान में है, जैसा कि “आप” के नेता अरविंद केजरीवाल दावा कर रहे हैं तो जाहिर है कि बिना अर्थ के वे
इस लड़ाई को बहुत लंबे समय तक नहीं लड़ सकते। लेकिन अर्थ जुटाने के लिए “आप” के नेता किस हद तक जा रहे हैं, ये गौर करने वाली
बात है। क्योंकि अगर आप बेनामी चंदे या किसी के भी कालेधन का इस्तेमाल इसके लिए कर
रहे हैं तो इसे कहीं से भी जायज नहीं ठहाराया जा सकता। और अगर ऐसा हो रहा है तो “आप” और ऐसा करने वाले दूसरे लोगों में कोई फर्क नहीं
रह जाएगा। चुनाव से ऐन पहले एक स्टिंग ऑपरेशन में “आप” के नेताओं पर लगे भ्रष्टाचार के आरोप ये सोचने पर मजबूर जरूर करते हैं।
इस
बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि भ्रष्टाचार के खात्मे और भ्रष्टाचारियों के
खिलाफ झंडा बुलंद कर दिल्ली के चुनावी समर में उतरी आम आदमी पार्टी ने सत्ताधारी
कांग्रेस के साथ ही एक बार फिर से दिल्ली की सत्ता हासिल करने का ख्वाब देख रही भारतीय
जनता पार्टी की भी रातों की नींद उड़ा दी है। लेकिन जो पार्टी भ्रष्टाचार के
खात्मे के संकल्प के साथ आम आदमी से वोट की अपील कर रही थी उस पार्टी पर
भ्रष्टाचार के आरोपों का लगना निश्चित तौर पर हैरान वाला है। मीडिया सरकार संस्था
ने अपने स्टिंग में जो दावा किया था उस पर अगर यकीन किया जाए तो ये भाजपा और
कांग्रेस के विकल्प के रूप में “आप” की ओर
उम्मीद भरी नजरों से देख रहे लोगों का दिल तोड़ने के लिए काफी है। लेकिन स्टिंग को
देखने के बाद मेरा व्यक्तिगत रूप से ये मानना है कि मीडिया सरकार के स्टिंग में “आप” के नेताओं पर लगे आरोपों में दम बिल्कुल भी नहीं
है। ये इसलिए भी क्योंकि स्टिंग में आम आदमी पार्टी के नेता शाजिया इल्मी के साथ
ही कुमार विश्वास भी कैश के बदले रसीद देने की बात करते नजर आ रहे थे। जहां तक
कुमार विश्वास का 50 हजार कैश लेने की बात है तो प्रोफेशनली देखा जाए तो उनका किसी
आयोजन के बदले उसकी फीस लेना और सुविधाएं लेना गलत तो नहीं है, वो भी जब वे उसकी
रसीद भी दे रहे हैं।
वहीं आम
आदमी पार्टी का रॉ फुटेज देखने के बाद दावा है कि टीवी पर एडिटेड फुटेज दिखाई गयी
और कई अहम हिस्सों को कांट छांट कर हटा दिया गया। अगर ये सही है तो ऐसे में स्टिंग
करने वाली संस्था मीडिया सरकार पर सवाल तो उठते ही हैं। चुनावी समय में सिर्फ एक
ही पार्टी के कई नेताओं को टारगेट कर स्टिंग करना भी मीडिया सरकार की नीयत पर शक
करने को मजबूर करता है।
जिस
तरह से आम आदमी पार्टी ने अपने नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप लगने पर “आप” ने साहस दिखाते हुए आरोप सही होने पर अपने
उम्मीदवारों को चुनावी मैदान से वापस बुलाने तक की बात पूरी दमदारी से कही वो
काबिले तारीफ है क्योंकि आज के समय में शायद ही कोई दूसरा ऐसा राजनीतिक दल होगा जो
ये कहने का साहस दिखा पाएगा वो भी ऐसे वक्त पर जब वे उनकी जगह पर दूसरे उम्मीदवार
को खड़ा नहीं कर सकते।
“आप” का कितना डर भाजपा और कांग्रेस में है इसका
अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि “आप” के नेताओं पर आरोप लगने के बाद भाजपा और कांग्रेस नेताओं ने इसे भुनाने
में कोई कसर नहीं छोड़ी और आप पर चौतरफा हमले शुरु कर दिए। हालांकि “आप” ने इस स्टिंग के कांग्रेस का हाथ होने का दावा
किया है और इसके लिए 1400 करोड़ रूपए खर्च करने का आरोप लगाया है लेकिन कांग्रेस
का या फिर भाजपा का इस स्टिंग के पीछे कितना हाथ है ये तो वे ही बेहतर जानते होंगे
लेकिन इसके बहाने भाजपा और कांग्रेस नेताओं ने जिस तरह “आप” पर चढ़ाई शुरु कर दी थी, वो जाहिर करने के लिए काफी है कि कहीं न कहीं “आप” का डर दोनों ही पार्टियों में हावी जरुर है। वैसे
भी जो पार्टियां गले तक भ्रष्टाचार में डूबी हुई हों, जिनके नेताओं पर भ्रष्टाचार
के तमाम आरोप लग चुके हों उनका भ्रष्टाचार के मुद्दे पर “आप” पर सवाल उठाना कहीं से भी जायज तो नहीं ठहरा जा सकता। कम से कम इनके मुंह
से ये बातें अच्छी तो बिल्कुल भी नहीं लगती।
बहरहाल
दिल्ली के चुनावी नतीजों पर इस स्टिंग का कितना असर पड़ेगा और जनता “आप” के झाड़ू से कांग्रेस और भाजपा को किस हद तक साफ
करेगी या फिर “आप” का झाड़ू “आप” पर ही उल्टा चलेगा ये तो 8 दिसंबर 2013 को दिल्ली
विधानसभा के चुनावी नतीजों के बाद ही सामने आएगा लेकिन फिलहाल “आप” ने दिल्ली में तो कांग्रेस और भाजपा का बैंड
बजाने में कोई कसर नहीं छोड़ रखी है।
deepaktiwari555@gmail.com
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें