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शुक्रवार, 24 मई 2013

ट्रैफिक जाम- जिम्मेदार कौन..?


सूर्य देवता अपने पूरे शबाब पर हैं। देश भर में आसमान से आग बरस रही है। दिल्ली – एनसीआर भी इससे अछूता नहीं है। पारा 50 डिग्री को छूने को बेताब है। आसमान से बरसती आग के बीच सड़कों पर एसी गाड़ियों से निकलती गर्मी वातावरण को और भी तपा रही है। सोचिए ऐसे में किसी रेड लाइट पर आपको भीषण जाम का सामना करना पड़े तो क्या हालत होगी..?
नोएडा में सुबह के करीब 10 बजे घर से दफ्तर के लिए निकलते वक्त बस हर रोज यही दुआ करता हूं कि ऐसी भीषण गर्मी में किसी ट्रैफिक सिग्नल पर रेड लाइट से मुलाकात न हो और ट्रैफिक जाम से तो कभी भी नहीं..! बस रोज सारे सिग्नल हरे मिले ताकि बिना किसी परेशानी के दफ्तर पहुंच जाऊं लेकिन शायद ही ऐसी कभी हुआ और भविष्य में होने की उम्मीद नजर आती है। घर से दफ्तर के बीच में सात ट्रैफिक सिग्नलों से सामना होता है। कुछ एक सिग्नल तो आराम से पार हो जाते हैं लेकिन दो-तीन ट्रैफिक सिग्नलों को पार करने में पसीने छूट जाते हैं। कई-कई बार तो तीसरी या चौथी बार सिग्नल ग्रीन होने पर चौराहा पार करने का नंबर आता है।  
24 मई 2013, शुक्रवार का दिन था सूर्य देवता पूरे शबाब पर थे...अख़बार और टीवी सुबह से ही दिन का तापमान 46 डिग्री को पार करने की भविष्यवाणी कर लोगों को डरा रहे थे लेकिन नौकरीपेशा लोगों को दफ्तर तो जाना ही था। इसी तरह व्यापारियों को अपनी दुकानें खोलनी थी तो रिक्शे वाले को भी दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करना ही था...मरते क्या न करते भीषम गर्मी में भी सड़कों पर अपने – अपने काम को निकले लोगों की वही भीड़ थी। आसमान से बरसती आग और एसी गाडियों से निकलती गर्मी के बीच रेड लाइट पर 15 सेकंड भी रुकने की हिम्मत नहीं हो रही थी ऐसे में दफ्तर के रास्ते में पड़ने वाली तीन अलग अलग चौराहों पर अकदम अलग तस्वीर देखने को मिली जिसे आपके साथ साझा कर रहा हूं।
पहली तस्वीर- एक चौराहे पर ट्रैफिक सिग्नल ठीक से काम कर रहे थे लेकिन दफ्तर जाने का वक्त होने के चलते अत्याधिक ट्रैफिक दबाव के कारण तीसरी या चौथी बार में चौराहा पार करने का नंबर आया। इस दौरान करीब 250 सेकेंड झुलसाने वाली धूप का सामना करना पड़ा। कार में बैठे लोग तो एसी चलाकर ठंडक का मजा ले रहे थे लेकिन बाहर दोपहिया वाहन या फिर बस, ऑटो या रिक्शे में बैठे लोगों के लिए एसी कार सवारों का मजा किसी सजा से कम नहीं था।
दूसरी तस्वीर- एक व्यस्त चौराहे पर गाड़ियों की लंबी कतार...ट्रैफिक सिग्नल खराब था लिहाजा भीषण गर्मी में ट्रैफिक पुलिस का एक जवान बिना किसी छांव के सूरज की गर्मी और चारों तरफ से गाड़ियों से निकलती गर्मी के बीच ट्रैफिक व्यवस्था को मुस्तैदी से संभाले हुए था।
अंदाजा लगाया जा सकता है कि सुबह दस बज के वक्त 40 डिग्री से ऊपर तापमान में कैसे ये जवान चौराहे पर अपनी ड्यूटी कर रहा था और ट्रैफिक व्यवस्था को बिगड़ने नहीं दे रहा था..? उसके खड़े होने के लिए न तो कोई शेड ही था और न ही एक पल के लिए छांव में जाने का मौका क्योंकि अगर वह एक पल के लिए भी वहां से हटे तो फिर दफ्तर जाने की जल्दी में रेड लाइट पर खड़े लोग ट्रैफिक का क्या हाल करेंगे..!
हालांकि ये उस ट्रैफिक जवान की ड्यूटी का हिस्सा है कि उसे ट्रैफिक व्यवस्था को बिगड़ने नहीं देना है लेकिन इतनी भीषण गर्मी में ट्रैफिक पुलिस के जवान का हौसला काबिले तारीफ था क्योंकि इतनी शिद्दत और ईमानदारी से पुलिसकर्मियों को काम करते हुए देखने की आदत नहीं है न..!
इस सब के बाद भी दफ्तर पहुंचने की जल्दबाजी में लोग ट्रैफिक नियमों को तोड़ने से बाज नहीं आ रहे थे और अपने साथ ही दूसरे की जान को भी खतरे में डाल रहे थे।    
तीसरी तस्वीर- फिर से एक व्यस्त चौराहा...टैफिक सिग्नल खराब हैं...ट्रैफिक को नियंत्रित करने के लिए यातायात पुलिस का कोई भी जवान मौजूद नहीं है...सोचिए कैसा नजारा होगा। चौराहे पर भीषण जाम...वजह पहले निकलने के चक्कर में चारों दिशाओं से आ रही गाड़ियां एक दूसरे का रास्ता रोक कर खड़ी थी। कोई भी न तो पीछे हटने को तैयार था और न ही सामने आ रही गाड़ी को जाने देने के लिए जगह देने को तैयार...हर कोई एक दूसरे को कोस रहा था लेकिन खुद की गलती का एहसास किसी को नहीं था। नतीजा जाम लगातार बढ़ता ही जा रहा था। बाईक पर करीब आधा घंटा मुझे भी जाम में फंसे हो गया था...आसमान से बरसती आग और एसी गाड़ियों की गर्मी झुलसा रही थी। झुलसाने वाली गर्मी में हालत ऐसी थी जिसे शायद ही मैं शब्दों में बयां कर पाऊं..! मेरा क्या शायद हर किसी का यही हाल था लेकिन क्या करते चारों तरफ से गाड़ियों से घिर चुका था न तो आगे जाने की जगह थी न पीछे जाने का रास्ता। इसी बीच सायरन बजाती हुई एक पीसीआर वैन आई और उसमें से उतरे पुलिसकर्मियों ने जैसे तैसे जाम खुलवाया। जाम खुलवाया शब्द पढ़ने में तो शायद एक सेकेंड लगा होगा लेकिन इस जाम को खुलवाने में कितना समय लगा होगा इसका अंदाजा लगाया जा सकता है..!
ये तीन तस्वीरें ये बयां करने के लिए काफी हैं कि जिस ट्रैफिक जाम से हम घबराते हैं...उसके लिए कहीं न कहीं किसी न किसी रुप में हम खुद ही जिम्मेदार हैं। घर से निकलते वक्त सारी रेड लाइट के हरे हो जाने की तो हम कामना करते हैं लेकिन मौका मिलने पर ट्रैफिक सिग्नल को तोड़े में हम देर नहीं करते..! क्या ट्रैफिक को नियंत्रित करने की जिम्मेदारी सिर्फ यातायात पुलिस की ही है..?
जाहिर है सड़क पर चल रहे हर व्यक्ति की भी ये उतनी ही जिम्मेदारी है जितनी की यातायात पुलिस की लेकिन जाम में फंसने पर हम यातायात पुलिस के जवान के न होने पर हम उसे गरियाने में तो देर नहीं करते लेकिन खुद नियमों को तोड़ते हुए चले जाते हैं..!
अगर हम सब इस जिम्मेदारी को समझें तो सड़क पर अपनी आधी से ज्यादा दिक्कतों को हम खुद ही आसान कर सकते हैं लेकिन क्या ये कार्य इतना आसान है..? यकीन मानिए अगर आसान नहीं है तो इतना मुश्किल भी नहीं है कि हम यातायात नियमों को पालन ही न कर सकें..! कोशिश तो करके देखिए...एक दिन शायद अपने गंतव्य पर थोड़ी देरी से पहुंचेंगे...दो दिन देरी से पहुंचेंगे लेकिन इसका दीर्घकालिक असर दिखेगा लेकिन याद रखिए अपने साथ ही हमें दूसरों को भी इसके लिए प्रेरित करते हुए चलना होगा।   

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