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बुधवार, 6 फ़रवरी 2013

लोकतंत्र का राजा- मतपेटी से आता है मां के पेट से नहीं !


2014 के आम चुनाव में किसकी सरकार बनेगी...? से बड़ा सवाल ये उठ रहा है कि 2014 में देश का प्रधानमंत्री कौन बनेगा..?  
मैंने तो सुना था कि लोकतंत्र का राजा मां के पेट से नहीं मतपेटी से निकलता है लेकिन यूपीए सरकार बनाने की स्थिति अगर आती है तो इस बार लगता है कि लोकतंत्र का राजा मतपेटी से नहीं मां के पेट(परिवारवाद) से ही आएगा..! समझ तो आप गए ही होंगे कि मैं किसकी बात कर रहा हूं..?
बात यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी के बेटे और कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की ही हो रही है..। वही राहुल गांधी जिन्हें हाल ही में कांग्रेस में नंबर दो की कुर्सी सौंपकर अघोषित तौर पर 2014 के लिए कांग्रेस का पीएम उम्मीदवार घोषित किया गया है।
लेकिन अगर एनडीए की सरकार बनने की स्थिति आती है तो यहां पर भी तस्वीर लगभग- लगभग साफ ही है लेकिन इस पर से राजनीतिक कुहासा हटना अभी बाकी है। भाजपा ने मोदी के चेहरे पर दांव खेलने की तैयारी तो कर ली है लेकिन मोदी के नाम पर विरोध करने वालों की भी एनडीए में कमी नहीं है। गनीमत है कि एनडीए की सरकार बनेगी तो लोकतंत्र का राजा मतपेटी(परिवारवाद नहीं) से ही निकलेगा..!
कुल मिलाकर प्रमुख रूप से दो नाम राहुल गांधी और नरेन्द्र मोदी अभी सामने हैं...ऐसे में सवाल ये उठता है कि आखिर जनता किसकी ताजपोशी का रास्ता तैयार करेगी..?
हर पांच साल में लोकतंत्र के महापर्व के दिन तो जनता ही राजा होती है लेकिन ये अलग बात है कि बाकी के 4 साल 364 दिन जनता हाशिए पर चली जाती है क्योंकि जनता जिस पर भरोसा करके उसे अपना राजा चुनती है उन लोगों के निजि हित जनता के हित पर भारी पड़ते दिखाई देते हैं। एक ऐसे ही अनुभव से रूबरू होने के बाद कहीं न कहीं देश की जनता एक बार फिर से उसी मुहाने पर खड़ी है कि आखिर अपना राजा किसे चुनें..?
एक ऐसा राजा जो देश की बात करे...जनता के सरोकारों की बात करे...देश की तरक्की की बात करे...हर गरीब, पिछड़े की तरक्की की बात करे।  
करीब 15 महीने के बाद लोकतंत्र के महापर्व से पहले जनता को धर्म और जाति के नाम पर साधने का खेल फिर से शुरु हो गया है..! हिंदू आतंकवाद के शब्द को जन्म दिया जा चुका है तो इलाहाबाद में आस्था का महाकुंभ...राजनीति के महाकुंभ में तब्दील हो गया है..!
सत्ता के जहर को पीने के लिए नीलकंठ(राहुल गांधी) का भेष धारण किया जा रहा है तो...सत्ता को हासिल करने धर्म संसद के बहाने महामंथन से अमृत(नरेन्द्र मोदी) निकालने की तैयारी की जा रही है...!  
सत्ता को पाने के लिए हर तरफ से हर तरह की कवायद जारी है...वक्त बदल गया है...लेकिन जनता को लुभाने के हथकंडे वही पुराने हैं...ऐसे में बड़ा सवाल ये है कि क्या जनता का मानस बदला है..?
ऐसा नहीं है कि मानस बदलने की कोशिश नहीं हुए..! कोशिशें बहुत हुई...अन्ना हजारे ने दो साल पहले शुरुआत भी की थी...बाबा रामदेव ने भी आवाज बुलंद की थी...अरविंद केजरीवाल भी उनके मुताबिक एक इमानदार कोशिश कर रहे हैं...लेकिन एक सवाल फिर खड़ा होता है कि क्या 2014 तक जनता की जनता की याददाश्त ताजा रहेगी..? ये सवाल इसलिए भी क्योंकि 70 के दशक में एक कोशिश जेपी ने भी की थी...लेकिन स्थितियां आज भी जस की तस है..!
बहरहाल फैसला जनता के ही हाथ है कि लोकतंत्र का राजा मतपेटी से निकलेगा या मां के पेट(परिवारवाद) से हम तो यही उम्मीद करेंगे कि उसकी सर्वोच्च प्राथमिक्ता देश और देश की प्रजा हो।  

deepaktiwari555@gmail.com

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