अन्ना हजारे ने
ऐलान कर दिया है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ उनकी लड़ाई जारी रहेगी लेकिन वे अब इस
लड़ाई के दौरान अनशन नहीं करेंगे। अन्ना न कहा कि सरकार पर दबाव बनाने के लिए वे
आंदोलन का सहारा लेंगे...और ये आंदोलन मुद्दों पर ही आधारित होगा। अन्ना की
भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई के इतिहास पर नजर डालें तो सामने आता है कि अन्ना के
अभी तक के सभी आंदोलन में अनशन ही उनकी सबसे बड़ी ताकत थी। अन्ना का पहला बड़ा
आंदोलन महाराष्ट्र में ही शुरु हुआ था जब 1991 में अन्ना हज़ारे ने महाराष्ट्र
में शिवसेना-भाजपा की सरकार के कुछ भ्रष्ट' मंत्रियों को
हटाए जाने की मांग को लेकर भूख हड़ताल की। ये मंत्री थे- शशिकांत सुतर, महादेव शिवांकर और बबन घोलाप। अन्ना ने उन पर आय से अधिक संपत्ति
रखने का आरोप लगाया था। सरकार ने उन्हें मनाने की बहुत कोशिश की, लेकिन आखिरकार सरकार को दागी मंत्रियों शशिकांत सुतर और महादेव
शिवांकर को हटाना ही पड़ा। इसके बाद 1997 में अन्ना हज़ारे ने सूचना का
अधिकार अधिनियम के समर्थन में मुंबई के आजाद मैदान से अपना अभियान शुरु किया। 9
अगस्त 2003 को मुंबई के आजाद मैदान में ही अन्ना हज़ारे आमरण अनशन पर बैठ गए। 12
दिन तक चले आमरण अनशन के दौरान अन्ना हज़ारे और सूचना का अधिकार आंदोलन को
देशव्यापी समर्थन मिला। आख़िरकार 2003 में ही महाराष्ट्र सरकार को इस अधिनियम के
एक मज़बूत और कड़े मसौदे को पारित करना पड़ा। बाद में इसी आंदोलन ने राष्ट्रीय
आंदोलन का रूप ले लिया। इसके परिणामस्वरूप 12 अक्टूबर 2005 को भारतीय संसद ने भी
सूचना का अधिकार अधिनियम पारित किया। अगस्त 2006, में सूचना का अधिकार
अधिनियम में संशोधन प्रस्ताव के खिलाफ अन्ना ने 11 दिन तक आमरण अनशन किया, जिसे देशभर में समर्थन मिला। इसके परिणामस्वरूप, सरकार ने संशोधन का इरादा बदल दिया। 2003 में अन्ना ने
कांग्रेस और एनसीपी सरकार के चार मंत्रियों... सुरेश दादा जैन, नवाब मलिक, विजय कुमार गावित और पद्मसिंह पाटिल को भ्रष्ट बताकर उनके
ख़िलाफ़ मुहिम छेड़ दी और भूख हड़ताल पर बैठ गए। तत्कालीन महाराष्ट्र सरकार ने
इसके बाद एक जांच आयोग का गठन किया। नवाब मलिक ने भी अपने पद से त्यागपत्र दे
दिया। आयोग ने जब सुरेश जैन के ख़िलाफ़ आरोप तय किए तो उन्हें भी त्यागपत्र देना
पड़ा। इसके बाद बीते साल जलनोकपाल के समर्थन में दिल्ली में दो बार और मुंबई में
एक बार उनके अनशन ने सरकार को हिला कर रख दिया। और इस साल अगस्त में जंतर मंतर पर
उनके अनशन ने फिर से सरकार की नींद उड़ा कर रख दी थी। लेकिन इसके बाद से ही अनके
सहयोगियों के राजनीतिक दल गठन के फैसले के बाद अन्ना ने अपने सहयोगियों के किनारा
कर अपना आंदोलन जारी रखने की बात कही...और अब ये साफ कर दिया है कि अब अन्ना अनशन
नहीं करेंगे बल्कि भ्रष्टाचार के खिलाफ और जनलोकपाल के समर्थन में अपनी लड़ाई तो
जारी रखेंगे लेकिन अनशन नहीं करेंगे। बड़ा सवाल ये है कि आखिर क्यों अन्ना ने अपनी
ताकत लंबे समय तक भूखे प्यासे रहकर अनशन करने से तौबा कर ली...क्या अन्ना को इस
बात का आभास हो गया है कि उनकी ये लड़ाई लंबे वक्त तक चलेगी और लंबे समय तक अगर
लड़ाई को जारी रखना है तो फिर बढ़ती उम्र में अपने स्वास्थ्य का ख्याल भी रखना होगा...ऐसे
में अगर लंबे समय तक इस लड़ाई को जारी रखना है तो कहीं न कहीं अनशन से किनारा करना
होगा...और आंदोलन के रूप में इस लड़ाई को जारी रखना होगा। इस साल अगस्त में अन्ना
के अनशन पर नजर डालें तो पता चलता है कि सरकार ने आंदोलन को नजरअंजदाज करने की
कोशिश की ताकि अन्ना और उनके पूर्व सहयोगी हताश होकर अपना अनशन समाप्त कर दें...और
कुछ हद तक सरकार अपनी इस रणनीति में कामयाब भी रही थी...और अनशन अचानक से समाप्त
हो गया...और इसके बाद टीम अन्ना में जो कुछ हुआ...इसकी कल्पना तक शायद किसी ने
नहीं की थी। सरकार भी इस बात को समझ चुकी है कि अन्ना और उनके सहयोगियों में मतभेद
के बाद का बिखराव अब आंदोलन में वो धार नहीं ला पाएगा...ऐसे में अब सरकार के लिए
इसे नजरअंदाज करना औऱ आसान हो गया है। अन्ना भी इस बात को समझ गए हैं औऱ शायद इसलिए
उन्होंने आंदोलन के रूप में इस लड़ाई को जारी रखने का ऐलान किया है। बहरहाल जो भी
हो अन्ना की ये लड़ाई निश्चित तौक पर एक अच्छे मकसद के लिए दिखाई पड़ती है...ऐसे
में हम तो बस यही कह सकते हैं...गुडलक अन्ना।
deepaktiwari555@gmail.com
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