कहते हैं समय खराब
हो तो किसी से नहीं भिड़ना चाहिए...पिटाई आपकी ही होगी...कांग्रेस को भी शायद ये
समझ में आ गया है लगता है...आरटीआई एक्टिविस्ट अंजलि दमानिया के भाजपा के
राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी पर लगाए आरोप पर कांग्रेस की चुप्पी तो कम से कम
यही जाहिर करती है। कांग्रेस शायद ये जानती है कि पहले से ही कोयला घोटाले पर
चौतरफा हमला...फिर महंगाई और एफडीआई पर सरकार के फैसले से मचा बवाल सरकार की
किरकिरी करा चुका है...साथ ही महाराष्ट्र में सिंचाई घोटाले में सहयोगी एनसीपी के
डिप्टी सीएम अजित पवार का इस्तीफे ने उसकी मुश्किलों को बढ़ा रखा है। ऐसे में
गडकरी पर अपने व्यापारिक हितों के लिए केन्द्रीय मंत्री और एनसीपी के अध्यक्ष शरद
पवार के भतीजे और तत्कालीन सिंचाई मंत्री अजित पवार को बचाने के लिए घोटाले को
दबाने के आरोप के बाद भी कांग्रेस ने चुप्पी साधी है। आखिर ऐसा क्या हुआ जो
कांग्रेस ने गडकरी पर लगे आरोप पर भाजपा को घेरने की बजाए रक्षात्मक रूख अपना लिया
है और पूरे मामले में चुप्पी साध रखी है। दरअसल ये सारा खेल कुर्सी का है...कांग्रेस
को निश्चित तौर पर बढ़िया मौका मिला था...लेकिन बदकिस्मती से महाराष्ट्र में
कांग्रेस की सरकार और एनसीपी की बैसाखी पर खड़ी है...ऐसी ही कुछ स्थिति केन्द्र
में भी है...जब ममता के समर्थन वापस लेने के बाद यूपीए सरकार के लिए छोटे से छोटा
दल भी महत्वपूर्ण हो गया है...यानि कि केन्द्र में भी एनसीपी के समर्थन का उतना ही
महत्व है जितना कि महाराष्ट्र में। अब कांग्रेस अगर इस मुद्दे को लेकर गडकरी को
घेरती तो छींटे शरद पवार की दामन पर भी उछलते...क्योंकि गडकरी से शरद पवार के
व्यापारिक संबंध की बात आने के साथ ही जिस नेता पर सिंचाई घोटाले में लिप्त होने
का आरोप है वो शरद पवार का भतीजा है। जाहिर है कांग्रेस चाहकर भी आक्रमक नहीं हो
सकती क्योंकि कांग्रेस का आक्रमक रवैया शरद पवार को नागवार गुजर सकता है और शरद
पवार की नाराजगी कांग्रेस की महाराष्ट्र सरकार के साथ ही केन्द्र की यूपीए सरकार
पर भी भारी पड़ सकती है...लिहाजा कांग्रेस ने चुप्पी साधना ही बेहतर समझा...ताकि
मामला धीरे धीरे शांत हो जाए और फिर लोग उसे भूल जाएं...जैसे कि हमारे सुशील गृहमंत्री
शिंदे साहब का सोचना भी है। खैर ये तो रही कांग्रेस की मुश्किल अब बात करें गडकरी
पर लगे आरोप कि तो ये तो जग जाहिर है कि गडकरी पहले उद्योगपति हैं उसके बाद
राजनेता...अब व्यापार करना है तो शरद पवार क्या किसी से भी हाथ मिला सकते हैं। और
अगर अंजलि दमायनी के आरोप सही हैं तो भी ऐसा लगता नहीं कि अंजलि अपने इन आरोपों को
साबित कर पाएंगी...क्योंकि अंजलि भले ही ये साबित कर दें कि वे गडकरी से मिलने गई
थी...लेकिन गडकरी पर जो बातें कहने का आरोप उन्होंने लगाया है उसे साबित करना
अंजलि के लिए आसान नहीं होगा या यूं कहें कि नामुमकिन दिखाई पड़ता है। हालांकि अंजलि
के सहयोगी और हाल ही में राजनीतिक पार्टी के गठन का ऐलान करने वाले अरविंद
केजरीवाल ने अंजलि के आरोपों के बाद अब खुद गडकरी के खिलाफ मोर्चा खोल लिया
है...औऱ गडकरी पर सवालों की बौछार कर दी है...लेकिन केजरीवाल भी गडकरी को घेर
पाएंगे इसकी उम्मीद कम ही है। वैसे अंजलि आरोप अगर सही हैं तो देश की जनता के लिए
इससे बड़ा दुर्भाग्य और कुछ नहीं हो सकता कि जिस पार्टी को मुख्य विपक्षी दल होने
के नाते सरकार के गलत कामों और फैसलों पर नजर रखते हुए उसे घेरना चाहिए वे ही लोग
अपने फायदे के लिए आपस में सांठ गांठ करने में लगे हुए हैं। बहरहाल गडकरी ने अंजलि पर झूठे औऱ बेबुनियाद आरोप लगाने की बात कहते हुए
अंजलि दमानिया को कानूनी नोटिस जरूर भेज दिया है…ऐसे
में देखना ये होगा कि अंजलि अब गडकरी के नोटिस का जवाब किसी पुख्ता सबूत के साथ
देती हैं या फिर इस मामले का यहीं पटाक्षेप हो जाएगा।
deepaktiwari555@gmail.com
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