कहीं देर न हो जाए...
मंगलवार को दिल्ली में राष्ट्रीय गंगा
बेसिन प्राधिकरण की अहम बैठक हुई। बैठक की अध्यक्षता करते हुए प्रधानमंत्री मनमोहन
सिंह ने कहा कि हमारे पास समय कम है औऱ गंगा को बचाने के लिए त्वरित कदम उठाए जाने
की जरूरत है...मनमोहन सिंह ने गंगा के संरक्षण को लेकर अपनी चिंता जाहिर करते हुए
इस दिशा में तेजी से काम करने की बात भी कही...लेकिन प्रधानमंत्री के पास इस बात
का कोई जवाब नहीं है कि जब उन्हें गंगा नदी की इतनी ही चिंता थी...तो गंगा की सफाई
के लिए 2009 में प्रधानमंत्री की ही अध्यक्षता में गठित गंगा बेसिन की बैठक सिर्फ
दो ही बार क्यों हुई...औऱ 17 अप्रेल को भी बैठक इसलिए बुलाई गयी...क्योंकि गंगा की
अविरलता के लिए पर्यावरणविद जीडी अग्रवाल ने हरिद्वार में अनशन शुरू कर दिया
था...औऱ गंगा की अविरलता के साथ ही गंगा बेसिन की बैठक बुलाए जाने की भी वे मांग कर
रहे थे...जब उन्होंने अऩशन नहीं तोड़ा तो तब प्रधानमंत्री ने 23 मार्च को अग्रवाल
को आश्वासन दिया था कि 17 अप्रेल को गंगा बेसिन की बैठक बुलाई जाएगी...जिसके बाद
ही जीडी ने अपना अनशन समाप्त किया था...यानि कि मंगलवार को हुई इस बैठक में
प्रधानमंत्री भले ही गंगा की वर्तमान दशा पर चिंतित दिखाई दे रहे हों...लेकिन इस
बैठक की वजह ये बिल्कुल भी नहीं है। 2009 में प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में गंगा
बेसिन का गठन हुआ तो गंगा भक्तों को उम्मीद जगी थी कि शायद अब गंगा की दुर्दाशा
सुधरेगी...लेकिन गंगा बेसिन का गठन खानापूर्ति ही साबित हुआ...तीन सालों में इतने
अहम मुद्दे पर सिर्फ दो बार प्रधानमंत्री को गंगा संरक्षण की याद आयी। बहरहाल बात
करते हैं बैठक की...बैठक में पांच राज्यों उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड
और पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्रियों ने शिरकत की...इसके साथ ही गंगा की अविरलता की
मांग कर रहे प्रमुख संत भी बैठक में शामिल हुए। बैठक में सबसे अहम मुद्दा
उत्तराखंड में गंगा पर बनी बिजली परियोजनाएं थी। गंगा भक्त चाहते हैं कि गंगा पर
बनी परियोजनाएं तत्काल बंद कर दी जाएं...जबकि उत्तराखंड के मुख्यमंत्री विजय
बहुगुणा करोडों की लागत से निर्मित इन परियोजनाओं को जारी रखने के पक्ष में
थे...बैठक में बहुगुणा ने जोरदार तरीके से परियोजनाओं के समर्थन में आवाज़ बुलंद
भी की...लेकिन बैठक में मौजूद चार राज्यों के मुख्यमंत्री औऱ संत उनके इस कदम में
खिलाफ थे। वहीं पर्यावरणविद जीडी अग्रवाल भी स्वास्थ्य खराब होने की वजह से बैठक
में नहीं पहुंचे...ऐसे में बैठक में इस पर कोई फैसला नहीं हो पाया। गंगा की अगर
बात करें तो जीवनदायिनी माने जाने वाली गंगा नदी 11 राज्यों की 40 प्रतिशत आबादी
को पानी मुहैया कराती है...लेकिन देवी का दर्जा प्राप्त इस नदी में रोजाना 90
करोड़ लीटर दूषित पानी जाता है...जबकि गंगा की सफाई के लिए लगे सीवेज प्लांट
रोजाना केवल एक अऱब दस करोड़ लीटर गंदे पानी के शोधन करने की स्थिति में है। गोमुख
से गंगासागर तक गंगा लगातार मैली हो रही है...औऱ गंगा की सफाई के लिए ही 2009 में
राष्ट्रीय गंगा बेसिन प्राधिकरण का गठन हुआ औऱ इसके गंगा की सफाई पर करोड़ों रूपये
खर्च भी कर दिए गये...लेकिन गंगा इन तीन सालों में और ज्यादा मैली हो गयी...ऐसे
में सवाल ये उठता है कि क्या सिर्फ गंगा की सफाई के नाम पर प्राधिकरण आदि का गठन
करने से गंगा को उसके पुराने स्वरूप में लौटाया जा सकता है...क्या सिर्फ दिल्ली
में साल में एक बार बंद कमरे में गंगा संरक्षण पर चिंता जाहिर करते ये काम किया जा
सकता है...नहीं न...लेकिन ये बात हमारे प्रधानमंत्री औऱ उन जिम्मेदार लोगों को
क्यों नहीं समझ आती जो गंगा की सफाई के इस अभियान से सीधे जुड़े हुए हैं...औऱ
जिनके पास संसाधन भी है औऱ इसके लिए पैसों की कोई कमी भी नहीं है...कमी है तो बस
ईच्छाशक्ति की। शायद इन लोगों को ये बात समझ भी आ जाए...लेकिन कहीं देर न हो जाए।
दीपक तिवारी
deepaktiwari555@gmail.com
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