बिहार विधानसभा
चुनाव से पहले राजद और जदयू के हाथ मिलाने की कहानी ये बताने के लिए काफी थी कि
लालू प्रसाद यादव और नीतिश कुमार के सामने अगामी विधानसभा चुनाव में अपना राजनीतिक
वजूद बचाए रखने का संकट नजर आने लगा है। लेकिन इस बीच तस्वीर बदली मोदी लहर का असर
हवा होता नजर आया। लिहाजा बिहार की जिस चुनावी जंग में कुछ महीने
पहले भाजपा का पलड़ा भारी दिखाई दे रहा था,
वहां अब मुकाबला लगभग बराबरी पर आकर अटक गया गया है।
राजद और जदयू के
सामने एक और संकट था कि हाथ मिलाने के बाद किस चेहरे पर दांव खेला जाए। नीतीश
कुमार का नाम मुख्यमंत्री उम्मीदवार के रूप में घोषित हुआ तो ना चाहते हुए भी लालू
के मुंह से निकल पड़ा कि मोदी रथ रोकने के लिए वे जहर का प्याला तक पीने को तैयार हैं। जाहिर है ईशारा अपने धुर विरोधी
नीतिश कुमार की तरफ था। लेकिन सवाल राजनीतिक
वजूद को बचाए रखने का था, लिहाजा दोनों न चाहते हुए भी साथ- साथ हैं।
अब जबकि बिहार में
अघोषित तौर पर चुनावी बिगुल बज चुका है तो आरोप-प्रत्यारोप का दौर भी शुरुआत से ही
अपने चरम पर है। नीतीश कुमार के डीएनए पर सवाल उठाकर मोदी इसकी शुरुआत कर चुके थे।
ऐसे में तिलमिलाए नीतीश कुमार एंड कंपनी इसे बिहारियों का अपमान बताकर अब इसे
मुद्दा बनाकर मोदी को घेरने की तैयारी में लगे हुए हैं।
गया में तो नरेन्द्र
मोदी के मुंह से निकला एक – एक शब्द नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव के दिल
में तीर की तरह चुभा होगा।
जदयू और राजद के
नामकरण की बात हो या जहर के प्याले की
बात ! बिहार में जंगलराज की बात हो या फिर लालू की जेल यात्रा का जिक्र ! बिहार को बीमारू राज्य कहने की बात हो या फिर जंगलराज पार्ट टू की बात। मोदी ने गया में भाजपा के लिए
माहौल तैयार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
ट्विटर वार से
चुनावी रैली तक कोई भी एक दूसरे को
घेरने का एक भी मौका जाया नहीं होने दे रहा है। नीतीश कमार मोदी सरकार को ट्विर
सरकार का तमगा दे रहे हैं तो कभी अपराधियों को टिकट न देने का चैलेंज। मोदी ने
जदयू का जनता का दमन और उत्पीड़न का तमगा दिया तो नीतीश बीजेपी को "बड़का झुट्ठा पार्टी" कहने से पीछे नहीं हटे। तिलमिलाए लालू ने तो अजीबोगरीब सवाल पूछ लिया कि
कभी पीएम मोदी ने अपने पूर्वजों का पिंडदान किया है ? लालू यहीं नहीं रूके, लालू ने तो पीएम
मोदी के मानसिक स्थिति पर ही सवाल उठा दिया!
मकसद सबका सिर्फ एक
ही है, कैसे भी जनमत को
अपने पक्ष में किया जाए। हालांकि बिहार चुनाव की तारीखों का ऐलान अभी नहीं हुआ है
लेकिन उससे पहले ही बिहार की चुनावी जंग रोचक हो चली है।
वैसे भी अब चुनौती
लालू और नीतीश के सामने ही नहीं है बल्कि भाजपा के सामने भी है। गया में मोदी के
चुनावी शंखनाद के बाद ये साफ भी हो चुका है कि भाजपा बिहार में किसी भी सूरत
में भगवा लहराकर अपने विरोधियों को ये संदेश देना चाहती है कि केन्द्र की मोदी सरकार
से जनता का अभी मोहभंग नहीं हुआ है। लेकिन मोदी इस बात को बेहतर समझते होंगे कि राजनीति
की हवा का रुख बदलते देर नहीं लगती।
बहरहाल बिहार की
जनता किसे चुनेगी ये तो चुनाव परिणाम के बाद ही सामने आएगा लेकिन इतना तो तय है कि
बिहार की चुनावी जंग इस बार पहले से कहीं ज्यादा रोचक होने वाली है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें