बिहार का चुनाव में
इस बार जो ना हो वो कम है, 2014 के आम चुनाव में मोदी की आंधी में बिहार से सूपड़ा
साफ होने की कगार पर पहुंचने के बाद नीतीश कुमार की जदयू और लालू प्रसाद यादव की
राजद के साथ ही कांग्रेस भी एक मंच पर आ चुकी है। बिहार की 243 विधानसभा सीटों पर
तीनों ही पार्टियों के बीच सीटों का बंटवारा भी हो चुका है। जदयू और राजद 100-100
सीटों पर चुनाव लड़ेगी तो कांग्रेस सिर्फ 40 सीटों पर ही मैदान में उतरेगी। चुनाव
पूर्व गठबंधन में सीटों का बंटवारा कोई नई बात नहीं है लेकिन जिस तरह बिहार में हो
रहा है, वो बिहार की राजनीति के लिए नया जरूर है।
अब इसे हार का डर
कहें या फिर खुद पर विश्वास की कमी, बिहार की सबसे लोकप्रिय राजनीतिक दल राजद और
जदयू का सिर्फ 100-100 सीटों पर चुनाव लड़ना हैरान जरूर करता है।
इतना ही नहीं देश की
सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस का 243 सीटों में से सिर्फ 40 सीटों पर अपने
उम्मीदवार मैदान में उतारना साफ करता है कि कांग्रेस 2014 के हार के सदमे से अभी
तक उबर नहीं पाई है।
ये तीनों वो
पार्टियां हैं, जो बिहार पर लंबे समय तक राज कर चुकी हैं। बिहार की जनता का भरोसा
पहले भी जीत चुकी हैं, लेकिन 2014 के आम चुनाव के बाद से कथित तौर पर सांप्रदायिक
ताकतों को राकने का नारा बुलंद करके अब इन तीनों ही दलों ने हाथ मिलाने में देर
नहीं की।
जाहिर है अपने दम पर
बिहार का फतह करना का भरोसा इन पार्टी के नेताओं के पास नहीं रहा, ऐसे में अपने
धुर विरोधियों से हाथ मिलाकर लड़ने में ही इन्होंने अपनी भलाई समझी, ताकि 2014
जैसी स्थिति से बचा जा सके।
वहीं बिहार में 2014
लोकसभा चुनाव की तस्वीर फिर दोहराने का सपना देख रही भाजपा के लिए भी बिहार फतह
करना आसान नहीं होगा, वो भी ऐसे वक्त पर जब एक साल पूरा कर चुकी भाजपी नीत एनडीए
सरकार से धीरे-धीरे लोगों का मोह भंग होने लगा है।
राजद, जदयू और
कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ने से निश्चित तौर पर भाजपा के सामने बिहार में
चुनौती कठिन हो गई है। जाहिर है तीनों ही पार्टियां अपने अपने प्रभाव वाले
क्षेत्रों में ही फोकस कर मिलकर चुनाव लड़ेंगी तो उनको इसका फायदा ही मिलेगा। लेकिन
ये फायदा किस हद तक मिलेगा और कितनी सीटों पर मिलेगा ये तो चुनाव परिणाम ही तय
करेंगे।
वैसे भी वक्त अब बदल
चुका है, जनता सोच समझ कर अपने मताधिकार का प्रयोग करती है। ऐसे में जदयू, राजद और
कांग्रेस की ये दोस्ती जनता को कितना लुभा पाएगी और मोदी का जादू कितना सिर चढ़कर
बोलेगा या नहीं बोलेगा, ये कहना अभी जल्दबाजी होगी।
फिलहाल तो बिहार में
डीएनए की चर्चा और पार्टियों के नामकरण का दौर शुरु हो चुका है। मतदान तक न जाने
किस किस की किस किस चीज की चर्चा अभी और होगी, ये तो सत्ता के लिए किसी भी हद तक
जाने वाले सियासतदान ही बता सकते हैं। फिर जल्दी क्या है मजा लिजिए बिहार की
सियासी जंग का !
deepaktiwari555@gmail.com
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें