हरियाणा और
महाराष्ट्र में राजनीतिक जमीन तलाशने वाली भाजपा को न सिर्फ इस चुनाव में जमीन मिली
बल्कि इस जमीन में कमल भी खूब खिले। हरियाणा की मिट्टी तो भाजपा को इतनी भायी की 2005
में दो और 2009 में सिर्फ चार सीटें जीतने वाली भाजपा ने 47 सीटों पर जीत हासिल
करते हुए अपने दम पर बहुमत हासिल कर लिया। आम चुनाव के बाद विधानसभा उपचुनाव में
भाजपा की हार पर लहर का असर कम होने की बात करने वालों को भी इसका जवाब मिल ही गया
कि लहर अभी कायम है। नतीजों के बाद को इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि जनता
में मोदी का प्रभाव अभी कायम है और चुनाव के दौरान मोगी का ताबड़तोड रैलियों ने इस
लहर को बनाए रखा।
हालांकि महाराष्ट्र
में बहुमत के जादुई आंकड़े से भाजपा 23 सीटें दूर रह गयी लेकिन महाराष्ट्र में
भाजपा का पिछले रिकार्ड के हिसाब से ये भाजपा के लिए बड़ी उपलब्धि है, वो भी तब जब
चुनाव से ऐन पहले उसकी अहम सहयोगी शिवसेना और भाजपा की राहें जुदा हो गयी थी। चुनावी
नतीजों के बाद तस्वीर आईने की तरफ साफ हो गयी है, तो अब महाराष्ट्र में जद्दोजहद
इस बात की है कि बहुमत के जादुई आंकड़े से 23 कदम दूर भाजपा सरकार कैसे बनाएगी..? 123 सीटें जीतकर
महाराष्ट्र में सबसे बड़ी पार्टी का तमगा हासिल करने वाली भाजपा की चुनाव से पहले
की अकड़ कायम है, तो अपनी अपनी जीत का दम भरने वाली एनसीपी और शिवसेना की अकड़
कमजोर होने लगी है।
पूर्ण नतीजों से
पहले एनसीपी का भाजपा को सरकार बनाने के लिए समर्थन की बात कहना, ये बताने के लिए
काफी है। शिवसेना का भाजपा के लिए नरम पड़ता रूख भी सारी कहानी बयां कर रहा है। शिवसेना
का भाजपा के लिए नरम रूख तो समझ में आता है, लेकिन एनसीपी की भाजपा को समर्थन देने
के लिए बेकरारी बताने के लिए काफी है कि सत्ता में रहने या सत्ता के करीब रहने के
लिए एनसीपी किसी भी हद तक जाने को तैयार है। एनसीपी को शायद जनता के सरोकार से कोई
लेना देना नहीं है, वो चाहती है तो बस सत्ता में रहना। पहले कांग्रेस के साथ मिलकर
सत्ता का सुख भोगा और चुनाव के दौरान भाजपा को खूब कोसा लेकिन जब जनता ने आईना
दिखा दिया तो, अब भाजपा के साथ जाने से भी इन्हें कोई गुरेज नहीं है।
भाजपा किसके साथ
मिलकर सरकार बनाएगी इस पर से पर्दा भी जल्द हट जाएगा। एनसीपी और शिवसेना दोनों ही
विकल्प भाजपा के सामने हैं, एनसीपी बिना शर्त सरकार को बाहर से समर्थन देने को
आतुर दिखाई दे रही है, तो शिवसेना ने एक बार फिर से हाथ मिलाने से इंकार नहीं किया
है। बहरहाल देखना ये होगा कि भाजपा शिवसेना के साथ सरकार बनाती है तो किन शर्तों
पर और एनसीपी के समर्थन से सरकार बनाती है तो किस मुंह से..? जाहिर है सबसे बड़ी पार्टी बनने के बाद भी
दुविधा में भाजपा ही है कि आखिर किसके साथ मिलकर सरकार बनाए..? एनसीपी को चुनाव से
पहले कोसने वाली भाजपा एनसीपी के साथ जाए तो कैसे जाए
और शिवसेना के साथ जाए तो शर्तों का अंबार सामने खड़ा होगा।
deepaktiwari555@gmail.com
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