दिन बुधवार का था और
मन में अमंगल का डर था, लेकिन उससे भी ज्यादा बलवती थी, मंगल की उम्मीद। ये उम्मीद
रंग भी लाई और बुधवार को सुबह आठ बजे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (इसरो) का मार्स
आर्बिटर मिशन यानि मंगलयान जैसे ही मंगल की कक्षा में दाखिल हुआ सब मंगल ही मंगल
हो गया। अमंगल का डर पीछे छूट चुका था, और भारतीय वैज्ञानिकों की मेहनत ने भारत को
दुनिया का सरताज बना दिया। पहले ही प्रयास में मंगल की कक्षा में मंगलयान का
प्रवेश करने पर भारत विश्व बिरादरी के सामने क्यों न इतराता।
इतराए भी क्यों न, जिस
मिशन को विश्व महाशक्ति अमेरीका और रूस जैसे देश तक अपने पहले प्रयास में नहीं साध
पाए, उसे भारतीय वैज्ञानिकों ने साकार कर दिखाया। अमेरिका इस उपलब्धि को सात
प्रयास में हासिल कर पाया तो एशिया के शक्तिशाली देश चीन और जापान के लिए इस
उपलब्धि को हासिल करना अभी भी किसी सपने की तरह है। भारत की ये कामयाबी इसलिए भी
अहम हो जाती है, क्योंकि मंगल के 51 मिशनों में से अब तक सिर्फ 21 ही कामयाब हो
पाए हैं औऱ भारत से पहले इस कामयाबी को सिर्फ अमेरिका, रूस और यूरोप ही हासिल कर सके
हैं। खास बात ये है कि भारत ने इस काम के लिए कुल 450 करोड़ रूपए खर्च किए जो कि अमेरिकी
स्पेस एजेंसी नासा के मंगलयान मावेन की लागत का करीब दसवां हिस्सा है।
भारत के वैज्ञानिकों
ने एक बार फिर साबित कर दिया कि उनका कोई सानी नहीं है और वे चाहें तो असंभव को भी
संभव कर सकते हैं। मार्स आर्बिट मिशन इसकी एक ताजा मिसाल है। भारतीय वैज्ञनिकों के
इस कमाल के साथ ही 24 सितंबर 2014 की तारीख सुनहरे अक्षरों में दर्ज हो चुकी है। पहले
ही प्रयास में सफलता मिलने से न सिर्फ अंतरिक्ष में भारत का रूतबा बढ़ा है, बल्कि इसने अंतरिक्ष में भारत की नई उम्मीदों को
भी पंख लगाए हैं। जाहिर है, इस मिशन की सफलता से इसरो से भारतीयों की उम्मीदें और
भी बढ़ गयी हैं। उम्मीद करते हैं कि पहले ही प्रयास में मंगलयान को मंगल की कक्षा
में स्थापित करने में सफलता हासिल कर विश्व बिरादरी में अपना लोहा मनवाने वाले
भारतीय वैज्ञानिक भविष्य में भी भारतवासियों को गर्व करने का मौका देंगे और सफलता
की नई कहानियां लिखेंगे। मंगलयान मिशन के लिए इसरो की टीम को बधाई और भविष्य की
चुनौतियों को पार करने के लिए ढ़ेरों शुभकामनाएं।
deepaktiwari555@gmail.com
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