अच्छा है, आम जनता
के नहीं तो क्या प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खासम खास अमित शाह के तो अच्छे दिन
आ ही गए। अमित शाह आखिरकार भाजपा महासचिव से भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जो हो गए
हैं। अमित शाह के अध्यक्ष बनने के बाद से लेकर तमाम तरह की बातें हो रही हैं। मसलन
सरकार के बाद अब पार्टी पर भी मोदी के करीबी शाह काबिज हो गए हैं, लेकिन जो भी हो
2014 के आम चुनाव में दिल्ली की सत्ता का रास्ता तैयार करने वाले देश के सबसे बड़े
राज्य उत्तर प्रदेश में प्रभारी रहते हुए भाजपा को 80 में से 71 सीटें दिलाने में
अमित शाह की भूमिका से इंकार नहीं किया जा सकता, भाजपा के लिए तो ये किसी चमत्कार
से कम नहीं था। हालांकि राजस्थान, गुजरात, दिल्ली समेत कई और राज्यों में भाजपा ने
क्लीन स्वीप करते हुए शानदार प्रदर्शन किया लेकिन अपने दम पर 282 की संख्या को
हासिल करना यूपी में बड़ी जीत के बूते ही संभव था, जो कि अमित शाह ने कर दिखाया। ये
वही राज्य था जहां पर भाजपा अपनी जमीन खो चुकी थी, लेकिन मोदी लहर और शाह की
चुनावी रणनीतियों ने भाजपा के लिए ये काम एकदम आसान कर दिया। हालांकि यूपी में भाजपा
का प्रदर्शन इतना शानदार रहेगा इसकी उम्मीद शायद ही भाजपा और अमित शाह दोनों को
रही होगी, लेकिन ये हुआ और भाजपा ने यूपी में 71 सीटों पर विजय पताका फहराई।
अब भाजपा अध्यक्ष
राजनाथ सिहं के गृहमंत्री की कुर्सी संभालने के बाद निकट भविष्य में महाराष्ट्र,
हरियाणा समेत दूसरे राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव को देखते हुए भाजपा के
सामने राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए वैसे भी अमित शाह से बेहतर विकल्प था भी नहीं। अध्यक्ष
की कुर्सी तक पहुंचने के लिए शाह की मदद उनके शानदार ट्रैक रिकार्ड ने भी की(सोहराबुद्दीन
और तुलसी प्रजापति एनकाउंटर मामला छोड़कर) जो बताता है कि न सिर्फ शाह खुद अब तक
कोई चुनाव हारे हैं बल्कि एक बेहतर रणनीतिकार के तौर पर उन्होंने कई मौकों पर खुद
को साबित भी किया है, फिर चाहे आडवाणी और वाजपेयी का चुनावी प्रबंधन हो या फिर आम
चुनाव में यूपी में भाजपा का परचम लहराने की बात।
जाहिर है शाह के
भाजपा अध्यक्ष बनने से सरकार और संगठन के बीच तालमेल भी बेहतर रहेगा क्योंकि शाह
से मोदी की करीबीयां किसी से छिपी नहीं है। ये बात अलग है कि प्रधानमंत्री और
भाजपा अध्यक्ष दोनों एक ही राज्य गुजरात से होने से भाजपा में मोदी विरोधियों की
बेचैनी जरूर बढ़ गई होगी। बहरहाल देखने वाली बात ये होगी कि अच्छे दिन के वादे के
साथ सत्ता में आने वाली मोदी सरकार सरकार गठन के एक माह में ही जिस तरह बढ़ती महंगाई
को लेकर विरोधियों के निशाने पर है, और आम जन बेचैन है, उसके बाद भी क्या निकट
भविष्य में होने वाले कई राज्यों के विधानसभा चुनाव में मोदी का जादू चल पाएगा और एक
बार फिर से अमित शाह की चुनावी रणनीतियों कामयाब हो पाएंगी या फिर बढ़ती महंगाई के
बोझ तले दबी जनता चौंकने वाले परिणाम देगी।
deepaktiwari555@gmail.com
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