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शनिवार, 26 जुलाई 2014

यूपी - दंगे और सियासत !

उत्तर प्रदेश में अपराध का ओवरफ्लो थमने का नाम नहीं ले रहा था कि मुरादाबाद के बाद अब सहारनपुर में भी दो गुटों में हुई हिंसक झड़प ने विकराल रूप ले लिया। सूबे की सरकार का अपराध पर नियंत्रणहो या न हो, लेकिन इस बहाने राजनीति खूब हो रही है। मुरादाबाद के बाद सहारनपुर की घटना और उस पर सियासी बयानबाजी तो कम से कम इसी ओर ईशारा कर रही है। यूपी में अपराध को अगर एक पल के लिए किनारे कर भी लिया जाए तो उसके अलावा जो कुछ हो रहा है, वह विशुद्ध रूप से राजनीति ही है। राजनीतिक दलों के नेता अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं। मुरादाबाद के कांठ में छोटी सी घटना का विकराल रुप ले लेना। इसके बाद सहारनपुर में दो गुटों में हिंसक संघर्ष की ताजा घटना भी इस ओर ईशारा कर रही है। जैसी की ख़बरें हैं कि इस खूनी संघर्ष से पहले कांग्रेस के कुछ नेताओं ने भड़काऊ बयानबाजी से माहौल बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी, ये बताने के लिए काफी है कि अपने सियासी फायदे के लिए लोगों को लड़वाने में, जैसे कि ये हमेशा से करते आए हैं, ये राजनीतिक दल कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। जाहिर है इस हिंसक घटना को होने से रोका जा सकता था, लेकिन सियासतदान अपने मंसूबों में कामयाब हो गए। एक महीने से मुरादाबाद में सुलग रही चिंगारी को कैसे भुलाया जा सकता है, और उस जो सियासत हो रही है, उसको कैसे नजरअंदाज किया जा सकता है, फिर चाहे वो भारतीय जनता पार्टी हो, कांग्रेस हो या फिर सत्ताधारी समाजवादी पार्टी या कोई और राजनीतिक दल।
इन घटनाओं को होने देने के लिए नैतिक तौर पर जिम्मेदार यूपी की सत्ताधारी समाजवादी पार्टी के नेता नरेश अग्रवाल के इस भय को भी जरा समझने की कोशिश कीजिए। अग्रवाल कहते हैं कि यूपी में राष्ट्रपति शासन लगाने के लिए भारतीय जनता पार्टी साजिश रच रही है और इन सब घटनाओं के लिए भाजपा ही जिम्मेदार है। अग्रवाल की बातों में कितना सच है, ये तो वही जानें लेकिन अग्रवाल साहब ये सब कहकर आपकी सरकार अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकती। आप दूसरों को दोष देते रहो, कि इसके लिए ये जिम्मेदार है, इसके लिए वो जिम्मेदार है लेकिन अग्रवाल साहब आपकी सरकार क्या कर रही है, क्या वह यूपी की जनता के लिए जिम्मेदार नहीं है। क्या यूपी में जो कुछ हो रहा है, उसको रोकने के लिए राज्य में शांति और सदभाव स्थापित करने के लिए अखिलेश सरकार जिम्मेदार नहीं है। आप अपने सुरक्षित घरों में बैठकर अपने विरोधियों को कोस रहे हो, और यूपी सुलग रहा है, लोग मर रहे हैं, लोग खौफ के साए में जीने को मजबूर हैं, लेकिन आपको इससे कोई सरोकार नहीं है क्योंकि इनमें शायद आपका कोई अपना नहीं है न।
काश इन नेताओं के उकसावे में आने वाले वो लोग भी समझ पाते कि नेता तो अपनी सियासी रोटियां सेंक रहे हैं और जिंदगी नर्क हो रही है उनकी। ये लोग नहीं क्यों नहीं समझ पाते कि इऩ घटनाओं में अपनी जान गंवाने वाला कभी भी एक नेता क्यों नहीं होता है..?  क्यों आम आदमी इस नफरत की आग में झुलस कर अपनी जान गंवाता है..? शायद जिस दिन ये बात समझ जाएं, उस दिन काफी हद तक हालात सुधर भी जाएं, लेकिन क्या ये कभी होगा..?
वैसे नरेश अग्रवाल की बात में कितनी सच्चाई है, कहा तो नहीं जा सकता लेकिन यकीन मानिए राजनीति में कुछ भी संभव है।


deepaktiwari555@gmail.com

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