क्या सिर्फ उग्रवादी
होने के शक के आधार पर किसी की सरेआम गोली मारकर हत्या कर देना जायज है..?
या फिर ऐसे किसी कानून को हटाए जाने की मांग को लेकर 12 सालों से भूख हड़ताल पर
बैठी किसी महिला की सुध न लेकर उसे मरने के लिए छोड़ देना जायज है..?
मेरी समझ से दोनों
ही मामलों में अधिकतर लोगों का जवाब नहीं में होगा..!
लेकिन दुर्भाग्य से दोनों ही मामलों में ऐसा ही कुछ हो रहा है। जिस देश में मुबंई जैसे आतंकी हमले में सैंकड़ों
लोगों की हत्या के दोषी कसाब को सारे सबूत उसके खिलाफ होने के बाद भी पूरी कानूना
प्रक्रिया के बाद...उसे बचाव का पूरा मौका देने के बाद फांसी की सजा सुनाई जाती
है...उस देश में तो कम से कम शक के आधार पर किसी की गोली मारकर हत्या कर देना कहीं
से भी जायज नहीं ठहराया जा सकता।
जिस देश में
भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना हजारे और बाबा रामदेव अनशन पर बैठते हैं तो उन्हें
मनाने के लिए उनका अनशन समाप्त करने के लिए तमाम सरकारी कोशिशें होती हैं...उस देश
में 12 साल से भूख हड़ताल पर बैठी सामाजिक कार्यकर्ता की सुध न लेना भी कहीं से भी
जायज नहीं ठहराया जा सकता।
आज जब 12 साल से
मणिपुर से सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून को हटाए जाने की मांग को लेकर भूख हड़ताल पर
बैठी समाज सेविका इरोल शर्मिला पर आमरण अनशन के दौरान खुदकुशी की कोशिश के मामले
में आरोप तय किए जाने की खबर पढ़ी उस वक्त से ये सवाल जेहन में उठ रहे हैं। दरअसल
इरोम शर्मिला मणिपुर में लागू सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून को हटाने की मांग को
लेकर 2001 से अनशन पर बैठी हैं और 6 साल से ज्यादा समय से पुलिस हिरासत में हैं।
2006 में इरोम पर जंतर मंतर पर आमरण अनशन के दौरान खुदकुशी करने का आरोप है और इसी
मामले में दिल्ली की एक अदालत ने इरोम के खिलाफ आरोप तय कर दिए हैं।
मणिपुर के इंफाल
घाटी के मालोम में 2 नवंबर 2000 में असम रायफल्स के जवानों ने 10 लोगों को
उग्रवादी बताकर गोली मार दी थी जसमें एक गर्भवती महिला की जान भी गई थी। इस घटना
के बाद से इरोम मणिपुर से सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून को हटाने की मांग को लेकर
भूख हड़ताल पर बैठी हैं। इसी तरह असम रायफल्स ने 2004 में मणिपुर की मानवाधिकार
कार्यकर्ता थांगजाम मनोरमा देवी को गिरफ्तार कर उसके साथ सामूहिक बलात्कार कर उसकी
गोली मारकर हत्या कर दी थी।
दरअसल सशस्त्र
बल विशेषाधिकार कानून 11 सितंबर 1958 को संसद में पारित किया गया था और इसके तहत
सुरक्षाबलों को अशांत क्षेत्रों में शरारती तत्वों को गोली मार देने, बिना वारंट
के तलाशी लेने या गिरफ्तार करने के साथ ही संपत्ति जब्त करने या नष्ट करने जैसे
विशेषाधिकार प्राप्त हैं। इस कानून की धारा 6 के तहत केन्द्र की अनुमति के बिना
सशस्त्र बलों के खिलाफ किसी तरह का अभियोग नहीं लगाया जा सकता। समय – समय पर
सुरक्षाबलों पर इस कानून के दुरुपयोग करने के तक आरोप लगते रहे हैं और इरोम 2000
में इंफाल में हुई ऐसी ही घटना के बाद भूख हड़ताल पर बैठी हैं।
अत्याधिक
उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों में इस कानून को लगाने का मतलब समझ में आता है लेकिन
इस पर भी सिर्फ शक के आधार पर किसी को गोली मार देना गले नहीं उतरता। माना सुरक्षा
बल अपनी जान हथेली पर लेकर ऐसे इलाकों में तैनात रहते हैं और वे स्थितियों को बेहतर
समझ सकते हैं लेकिन ऐसा नहीं है कि किसी की ये पहचान करने में कि ये उग्रवादी नहीं
है वे कभी गलती कर ही नहीं सकते।
एक महिला 12
सालों से भूख हड़ताल पर बैठी है लेकिन उसकी सुध लेने की फुर्सत किसी के पास नहीं
है। न ही राज्य सरकार के पास और न ही केन्द्र सरकार के पास। एक दर्जन से ज्यादा
महिलाएं निर्वस्त्र होकर असम रायफल्स के हेडक्वार्टर के बाहर 2004 की घटना के
विरोध में प्रदर्शन करती हैं लेकिन सरकार के कानों में जूं तक नहीं रेंगती। मनमोहन
सरकार में मंत्री रहते हुए अगाथा संगमा इरोमा से मिलकर उनकी आवाज इंफाल से लेकर
दिल्ली तक उठाने का दम भरती हैं लेकिन अगाथा का दम भी 24 घंटे में ही फूल जाता है।
माना सरकार की
अपनी मजबूरियां हैं और सरकार पूरे राज्य से इस कानून को नहीं हटा सकती लेकिन 12
साल से भूख हड़ताल पर बैठी इरोमा को अपनी और सशस्त्र बलों की मजबूरी बताकर अनशन
खत्म करवाने की कोशिश कर सकती थी। भविष्य में इस कानून को हटान पर विचार करने का
आश्वासन दे सकती थी लेकिन ऐसा भी नहीं हुआ..!
इरोमा की ये
हालत तब है जब 2004 में मनोरमा दी हत्याकांड की जांच के लिए गठित जीवन रेड्डी
कमेटी ने 2005 में अपनी रिपोर्ट में इस कानून को हटाने की सिफारिश की थी और
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी खुद इस कानून को हटाने के पक्ष में हैं।
12 साल से इरोमा
की भूख हड़ताल कई सवाल खड़े करती है... सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून पर..! समय समय पर सशस्त्र बलों की एकतरफा कार्रवाई पर..!
और सबसे बड़ा सवाल राज्य और केन्द्र सरकार पर कि आखिर क्यों सरकार ने इरोमा की सुध
नहीं ली..? क्यों इरोमा को 12 साल से न तो जीने दिया जा रहा
है और न ही मरने..? जबकि इरोमा ने अदालत में खुद ये बात कही
कि वो अपनी जिंदगी जीना चाहती है।
deepaktiwari555@gmail.com
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