दीपावाली से दो दिन पहले की बात है, एक
पार्सल बुक कराने के लिए पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन के पार्सल कार्यालय कम गोदाम
में जाना हुआ। कर्मचारी से लेकर वहां रहे वहां रखे पार्सल सब कुछ अस्त व्यस्त ही
नजर आ रहे थे। पार्सलों के बीच से जैसे तैसे में अंदर दाखिल हुआ तो नजारा कुछ यूं
था। एक कर्मचारी पार्सल के ऊपर ही आराम से पालती मारकर बैठा हुआ था तो दूसरा वहां
रखी एक मेज पर। एक तीसरा व्यक्ति हाथ बांधकर खड़ा हुआ था। पास ही पड़ी एक दूसरी
मेज पर रंगीन कागजों में लिपटे कुछ गिफ्ट पैक रखे हुए थे। कुछ ड्राई फ्रूट टाईप
पैकेट दिखाई दे रहे थे और साथ में कुछ बड़े बड़े पैकेट भी थे। जो शायद आज ही
इन्हें मिले थे। कर्मचरियों के बीच दीपावली के गिफ्ट को लेकर चर्चा जोरों पर थी।
उसके कुछ अंश इश प्रकार हैं।
पहला कर्मचारी – यार दीपावली को सिर्फ दो
दिन बचे हैं, लेकिन इस बार गिफ्ट बहुत कम मिले हैं।
दूसरा कर्मचारी – हां यार, जो गिफ्ट मिले
भी हैं, वो बड़े छोटे – छोटे और सस्ते हैं।
तीसरा कर्मचारी निश्चिंत भाव में – अरे
यार अभी दो दिन बाकी हैं दीपावाली पर और गिफ्ट आएंगे अभी तो।
कर्मचारियों की गंभीर चर्चा में दखल देते
हुए मैंने बीच में अपना एक पार्सल बुक कराने के लिए उनको टोका तो उनकी शारीरिक
भाषा देखकर ऐसे लगा जैसे मैंने कोई बड़ी भूल कर दी। खैर मेरा 10 मिनट के काम में
उन्होंने दो घंटे लगा दिए और बीच बीच में उनके दीपावाली के तोहफों की चर्चा जारी
रही, जो समय बीतने के साथ चिंता में तब्दील होती जा रही थी।
इसी बीच एक शख्स वहां पहुंचा तो सभी
कर्मचारियों को बांछें खिल गयी। वो उसे देखते ही अपनी कुर्सी से खड़े होकर उसे
दीपावली की बधाई देने लगे। दरअसल उस शख्स के साथ एक लड़का था जिसके हाथ में चमकदार
रंगीन कागजों में लिपटे ड्राई फ्रूट के डिब्बे और कुछ दूसरे उपहार थे। उस शख्स ने
एक कागज निकाला और सबके नाम के आगे पैन से कुछ लिखा और कर्मचारियों को दीवाली की
बधाई के साथ ही तोहफे देने लगा। इसकी क्या जरुरत थी, ऐसा बोलते हुए बड़े ही सहज
भाव से सभी कर्मचारियों ने अपना काम छोड़ पहले तोहफे स्वीकार कर लिए।
ये वाक्या बहुत ही आम है, जो आपने भी दीपावाली
पर अपने आस पास देखा होगा। आपको भी दीपावाली पर इस तरह के तोहफे मिले होंगे, मुझे
भी मिले हैं। लेकिन जिस रेलवे पार्सल कार्यालय के बहाने मैं तमाम ऐसे सरकारी
दफ्तरों में दीपावाली से पहले होने वाले तोहफों की सुगबुगाहट और चर्चा की बात कर
रहा हूं वह सिर्फ दीपावाली पर तोहफों के मिलने का एक आम घटनाक्रम तो बिल्कुल भी
नहीं दिखाई देता है।
जाहिर है जो लोग तोहफों की लालसा पाले
बेकरारी से तोहफों का इंतजार करते हैं वो उन तोहफों के बदले सालभर तोहफे बांटने
वाले के लिए काफी कुछ करते होंगे। तोहफे बांटने वालों के कई ऐसे काम आसानी से कर
देते होंगे, जो या तो नियमों के खिलाफ होते होंगे या फिर इससे उन्हें मोटा मुनाफा
होता होगा। वैसे भी आज के समय में ऐसे ही कोई मुफ्त में किसी को क्यों तोहफे
बांटेगा..?
दरअसल ये तोहफे बांटने वालों के एक तरह का
इन्वेस्टमेंट होता है, जिसे वे दीपावाली के मौके पर करते हैं और फिर सालभर इस
इन्वेंस्टमेंट का रिटर्न लेते रहते हैं। वैसे इसे देशी भाषा में रिश्वत कहते हैं,
जो कि गैर कानूनी है लेकिन दीपावाली पर दिया गया तोहफा न तो रिश्वत कहकर दिया जाता
है और न ही रिश्वत कहकर लिया जाता है, इसे तो बस मिठाई कहा जाता है, जो खूब खिलाई
भी जाती है और खाई भी जाती है।
खास बात तो ये है कि मलाईदार पदों पर बैठे
कई आला अधिकारियों को ये नजराने हरे हरे नोटों के रूप में मिठाई के डिब्बे में बंद
कर दिए जाते हैं और इसे भी नाम मिठाई का ही दिया जाता है वैसे भी देखना वालों के
लिए तो ये मिठाई का ही डिब्बा है। बहरहाल जिन्हें इस तरह के खूब तोहफे मिले उनकी
दीपावाली तो खूब रोशन रही लेकिन जिन्हें कम तोहफे मिले वे बेसब्री से अगली दीपावाली
का इंतजार जरुर कर रहे होंगे।
फिलहाल तो सभी मित्रों को मेरी तरफ से दीपावली
की शुभकामनाएं
deepaktiwari555@gmail.com
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