आस्था के बाजार में
सब कुछ बिकता है, बस आपके पास बेचने का हुनर होना चाहिए और खरीदने वाले की जेब में
पैसा। वैसे धर्मस्थलों पर
आपने कभी न कभी इस बात का अनुभव जरुर किया होगा। मेरा हाल ही में अजमेर और पुष्कर
भ्रमण के दौरान कुछ ऐसा ही अनुभव रहा। हालांकि ये अनुभव मैं इससे पहले भी कई
प्रसिद्ध धर्मस्थलों पर ले चुका हूं, लेकिन इस बार का अनुभव इसलिए आपसे साझा कर
रहा हूं क्योंकि अब तक मैं समझता था कि ये सब सिर्फ हिंदुओं के धर्मस्थलों पर ही
देखने को मिलता है, लेकिन वास्तव में
अधिकतर धर्मस्थलों पर देवदूतों की ही तूती बोलती है।
बीते दिनों अपने कुछ
मित्रों के साथ विश्व प्रसिद्ध दरगाह शरीफ अजेमर और पुष्कर जाना हुआ। गरीब नवाज़
के दर पर पहुंचते ही यहां भी हमें कुछ लोग ऐसे भी मिले जो आस्था के महाबाजार में
आस्था के पुजारियों की जेबों को ढीली करने का कोई मौका नहीं छोड़ते। अचानक से
हमारे सामने प्रकट हुए एक महाशय ने भी हमें भीड़ से अलग हटकर बिना लाईन में लगे फटाफट
दर्शन कराने का ऑफर दिया। इसके बदले में इन महाशय ने कोई पैसे की मांग तो नहीं कि
लेकिन पुष्प हमें खरीदने ही थे, तो ऐसे में ऑफर बुरा नहीं लगा क्योंकि यहां से हमें
पुष्कर के लिए भी कूच करना था और शाम तक जयपुर भी पहुंचना था।
खैर हम इन महाशय के
साथ हो लिए और भारी भीड़ होने के बावजूद सिर्फ 5 मिनट में हम दर्शन कर फारिग हो
गए। वहां भी नजराने के नाम पर पैसों की मांग करने वालों की कोई कमी नहीं थी। नजराने
की डिमांड इस कीमत पर की जा रही थी कि ख्वाजा आपकी हर मुराद पूरी करेंगे और आपकी
झोली खुशियों से भर देंगे। ये समझ नहीं आया कि क्या बिना नजराने के ख्वाजा अपने दर
पर दुआ मांगने वालों की दुआओं को कबूल नहीं करेंगे और उन्हें खाली हाथ लौटा देंगे।
ख्वाजा के दर से हम
पुष्कर के लिए रवाना हो गए। पुष्कर की धरती पर अभी हमारी गाड़ी ढंग से रुकी भी
नहीं थी कि एक सज्जन हमारी गाड़ी के पास पहुंच गए। गाड़ी से नीचे उतरते ही इन
महाशय ने ब्रह्मा जी के मंदिर के साथ ही पुष्कर सरोवर के दर्शन और यहां के धार्मिक
महत्व को बताने की कीमत 50 रुपए बताते हुए अपने साथ चलने का अनुरोध किया। पुष्कर
के धार्मिक महत्व और इतिहास की पूरी जानकारी देने के बाद ये हमें एक प्रसाद की
दुकान पर लेकर गए और प्रसाद खरीदकर पूजा करने के लिए चलने की बात कही। जिसके बाद
पुष्कर सरोवर के किनारे हम पांच मित्रों को इन्होंने वहां पर पहले से बैठे 5 अलग
अलग पंडितों के पास बैठने के लिए कहा। पंडित जी ने कुछ ही मिनटों में पूजा संपन्न
करा दी लेकिन पूजा के दौरान एक बार बीच में भोग के नाम पर 501 से लेकर 5001 तक की
भेंट देने का अनुरोध किया और आखिर में अपनी दक्षिणा की मांगी की ताकि पूजा का फल
हम लोगों को मिल सके। ये बात इस अंदाज में कह गई कि मानो भोग के लिए पैसे और पूजा
कि मुहंमांगी दक्षिणा न देने पर जैसे भगवान हमसे रुष्ट हो जाएंगे और हम दर्शन करने
के बाद भी प्रभु की कृपा से वंचित रह जाएंगे। खैर हम सभी ने अपनी-अपनी सामर्थ्य
अनुसार पंडित जी को दक्षिणा दी और इसके बाद हम दर्शन के लिए ब्रह्मा जी के मंदिर
पहुंच गए। आखिर में ये सज्जन हमें मंदिर के बार स्थित एक देवी देवताओं की
प्रतिमाओं की दुकान में भी लेकर गए और लगे हाथों दुकान से सामान खरीदने की सलाह भी
दे डाली।
कुल मिलाकर दरगाह
शरीफ से लेकर पुष्कर तक मुझे एक ही बात समझ में आयी कि धर्मस्थलों में भगवान के
दर्शन हो या न हों लेकिन देवदूतों के दर्शन आपको जरुर हो जाएंगे जो देवों के दर्शन
और पुण्य कमाने के नाम पर आपकी जेब ढीली करने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं, लेकिन
ये बात समझ में नहीं आयी कि निर्मल बाबा की तरह श्रद्धालुओं को प्रभु की कृपा दिलाने
का दावा करने वाले इन देवदूतों पर आखिर प्रभु की कृपा क्यों नहीं बरसती।
deepaktiwari555@gmail.com
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