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गुरुवार, 18 जुलाई 2013

उसे भूख से डर लगता था..!


अगर किसी के पास खाने के लिए कुछ नहीं है...खाना खरीदने के लिए तक पैसे नहीं हैं तो फिर उसके लिए भूख से बड़ा डर और कोई नहीं हो सकता..! क्योंकि जब भूख आती है तो एक बार तो कोई भी उसे नजरअंदाज कर सकता है लेकिन कब तक..? ये कमबख्त भूख नहीं मानती और लौट लौट कर आ जाती है..! समय रहते अगर भूख को शांत नहीं किया तो ये भूख भूखे को ही खा जाती है..!
इन पंक्तियों से शायद ये बात बेहतर तरीके से समझ आ जाए..!
उसे भूख से डर लगता था
भूख आती थी वह उसे मार देता था
भूख जिंदा हो जाती थी
वह फिर उसे मार देता था
भूख लौट लौट कर आ जाती थी
वह उसे उलट उलट कर मार देता था
एक दिन भूख दबे पांव आई
और उसे...खा गई

केन्द्र सरकार ने इसी भूख के डर के बहाने गरीब बच्चों को स्कूल से जोडने की पहल की और मिड डे मील योजना की शुरुआत की। सरकार की योजना थी कि एक वक्त की भूख मिटाने के लिए ही सही कम से कम इसी बहाने गरीब परिवार अपने बच्चों को पढ़ने के लिए स्कूल तो भेजेंगे लेकिन बिहार के छपरा में मिड डे मील खाने से मौत के मुंह मे समाए बच्चों के परिजन शायद अब ये सोच रहे होंगे कि उनके जिगर का टुकड़ा स्कूल न जाता न सही लेकिन कम से कम आज उनके पास तो होता..! खुद एक रोटी कम खाकर अपने बच्चों का पेट भर देते लेकिन कम से कम वो उन्हें हमेशा के लिए छोड़कर तो नहीं जाता..!
सरकारी लापरवाही एक बार फिर से मासूमों की जान पर भारी पड़ गयी और करीब दो दर्जन बच्चों को इसकी कीमत अपनी जान देकर चुकानी पड़ी..! बात सिर्फ बिहार के छपरा तक ही सीमित होती तो ठीक था लेकिन देशभर के अलग अलग राज्यों में कई स्कूलों में आए दिन मिड मील खाकर बच्चों का बीमार पड़ना, मिड डे मील में मरी हुई छिपकली, कॉकरोच, चूहे का मिलना साबित करता है कि जिम्मेदार लोग अपने काम को लेकर कितने संजीदा हैं और कितनी ईमानदारी से अपने काम को अंजाम दे रहे हैं।
हर बार इस तरह की घटनाओं पर केन्द्र व राज्य सरकारें ये कहकर अपना पल्ला झाड़ लेती हैं कि वे दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करेंगे और कोशिश करेंगे कि भविष्य में ऐसे हादसे फिर कभी न हों लेकिन इसके बाद भी एक महीने, दो महीने, तीन महीने, छह महीने तो सालभर के बाद किसी ऐसे ही हादसे की ख़बर आती है..!
शायद यही सरकारी योजनाओं को सच है जिसकी कीमत आए दिन उस गरीब को ही चुकानी पड़ती है जिनके नाम पर ये योजनाएं शुरु की जाती हैं..! जरुरतमंदों को इन योजनाओं को कितना लाभ मिलता है इसकी हकीकत आए दिन टीवी चैनलों और समाचार पत्रों की सुर्खियों में दिखाई देती हैं..! रही सह कसर समय समय पर कैग की उन रिपोर्ट में पूरी हो जाती है जो इस सच को उजागर करती है कि योजनाओं का कितना लाभ जरुरतमंदों को मिला और कितना लाभ नेताओं के साथ ही सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों को..?
इन्हीं योजनाओं को बड़े बड़े पोस्टरों – बैनरों में उकेर कर चुनाव के वक्त जनता से वोट मांगे जाते हैं..! जनता से जनता के लिए ही चुनाव जीतने पर ऐसी ही भारी भरकम बजट वाली योजनाएं शुरु करने का वादा किया जाता है लेकिन इन योजनाओं के नाम पर कितनों के वारे न्यारे होते हैं शायद ये बताने की जरुरत नहीं है..!
बिहार के छपरा में दिल दहला देने वाले हादसे के बाद भी केन्द्र और राज्य सरकारें जागेंगी या फिर भ्रष्ट नेताओं और अधिकारियों-कर्मचारियों की नींद टूटेगी और सरकारी लापरवाही फिर किसी पर भारी नहीं पड़ेगी इसकी उम्मीद कम ही है..!
केन्द्र और राज्य सरकार की नजरों में शायद यही सुशासन है...शायद यही असली भारत निर्माण है..?


deepaktiwari555@gmail.com

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