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बुधवार, 25 अप्रैल 2012

फिर जरूरी हुए खंडूरी !


फिर जरूरी हुए खंडूरी !

खंडूरी हैं जरूरी के नारे से भाजपा ने विधानसभा चुनाव लड़ा...लेकिन कोटद्वार जहां से खंडूरी खुद मैदान में थे...वहां के लोगों ने खंडूरी को जरूरी नहीं समझा...और दिखा दिया भाजपा को आईना...लेकिन उम्मीदों के विपरीत प्रदेश में 31 सीटें जीतने वाली भाजपा का चेहरा खंडूरी भले ही चुनाव हार गए...लेकिन भाजपा को अभी भी उम्मीद है कि शायद खंडूरी के सहारे एक बार फिर से उसकी नैया पार लग जाएगी। कांग्रेस ने किसी विधायक की बजाए सांसद विजय बहुगुणा को सीएम की कुर्सी सौंपी...ऐसे में बहुगुणा को न सिर्फ विधायकी का उपचुनाव लड़ना है बलकि विजय भी होना है...तभी वे मुख्यमंत्री रह पाएंगे और प्रदेश में कायम रह पाएगी कांग्रेस की सरकार। कांग्रेस में चल रही गुटबाजी और भीतरघात से बहुगुणा के लिए उपचुनाव किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं है...औऱ ये बात भाजपा भी अच्छी तरह जानती है...ऐसे में 31 सीटें के साथ कांग्रेस से एक कदम पीछे भाजपा इस जुगत में लगी है...और इस मौके को छक्के में बदलने की पूरी तैयारी में है। खंडूरी कोटद्वार से अप्रत्याशित तरीके से जब चुनाव हारे तो हर कोई हैरान था...खंडूरी के साथ ही भाजपा ने भी इस नतीजे के बारे में शायद सपने में भी नहीं सोचा होगा...और यही सीट आखिरी में निर्णायक साबित हुई और कांग्रेस भाजपा से एक सीट की बढत पर रही। खंडूरी की हार के बाद से प्रदेश में खंडूरी के प्रति एक साहनुभूति की लहर देखी गयी...और भाजपा इसका पूरा फायदा उठाने की फिराक में नजर आ रही है। खबर है कि बहुगुणा कहीं से भी उपचुनाव लड़े...भाजपा बहुगुणा के खिलाफ खंडूरी को मैदान में उतारने की तैयारी में है...औऱ आलाकमान ने खंडूरी को साफ भी कर दिया है कि उपचुनाव के मैदान में जंग उन्हें ही लड़नी है। हालांकि इस सवाल को लेकर पहले दिन से ही तल्ख तेवर दिखाने वाले खंडूरी भी अब ये कहने से गुरेज नहीं कर रहे है कि आलाकमान का जो भी निर्देश होगा उसका पालन करेंगे। बहुगुणा को कुर्सी तो मिल गयी...लेकिन बहुगुणा ये अच्छी तरह जानते हैं कि कुर्सी को संभाले रखना है तो उपचुनाव हर हाल में जीतना ही होगा...ऐसे में बहुगुणा भी फूंक फूंक कर कदम रख रहे हैं...और उपचुनाव कहां से लड़ना है...कैसे लड़ना है ताकि विजय हासिल हो...इसके लिए पूरा होमवर्क किया जा रहा है। ये बात तो बहुगुणा भी अच्छी तरह से जानते हैं कि अगर जल्दबाजी कर दी...तो कुर्सी तो जाएगी ही इज्जत का फालूदा होगा वो अलग। इसलिए उपचुनाव के हर सवाल को समय पर टाल जाते हैं। बहरहाल विधासभा चुनाव में कांग्रेस से एक कदम पीछे रह गयी भाजपा को अभी भी सत्ता की चाबी मिलने का पूरा भरोसा है...औऱ एक बार फिर से भरोसा है कि खंडूरी ही ये चाबी कांग्रेस के गढ़ में सेंध लगाकर हासिल कर सकते हैं...यानि कि एक बार फिर से जरूरी हैं खंडूरी...लेकिन एक बार फिर से वही सवाल उठ खड़ा हुआ है जो विधानसभा चुनाव से पहले सबके सामने था...क्या वकाई में जरूरी है खंडूरी...कोटद्वार की जनता ने तो सबको जवाब दे दिया था...लेकिन अब अगर खंडूरी मैदान में उतरते हैं...तो इसका जवाब क्या होगा...इसका इंतजार सभी को है।   

दीपक तिवारी

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