मध्य प्रदेश में व्यापम
घोटाले से “खूनी व्यापम” बनने की इस
रहस्यमयी कहानी की परतें खंगालने का जिम्मा मध्य प्रदेश एसआईटी के पास था। एक तरफ एसआईटी
जांच कर रही थी दूसरी तरफ व्यापम से जुड़े लोगों की रहस्यमयी मौतों का सिलसिला
अनवरत जारी था। ऐसे में मध्य प्रदेश एसआईटी पर संदेह के बादल गहराने लाजिमी थे।
मध्य प्रदेश में भी
अपना राजनीतिक वजूद तलाशने में लगी कांग्रेस को शिवराज सरकार पर वार करने का सुनहरा
अवसर हाथ आया तो कांग्रेस कैसे इसे छोड़ती। वैसे भी राजनीति में लाशों पर सियासत की
पुरानी रीत रही है। ये रीत किसी खास राजनीतिक दल की नहीं बल्कि ये निर्भर करती है
कि सत्ता में कौन है और विपक्ष में कौन ?
महाघोटाले का तमगा
हासिल कर चुके व्यापम में किस की शह पर धड़ल्ले से फर्जीवाड़ा हुआ ये तो जांच का
विषय है। लेकिन सियासत, जांच रिपोर्ट का कहां इंतजार करती है। लिहाजा शिवराज सिंह
चौहान के इस्तीफे के साथ ही इस महाघोटाले की सीबीआई जांच की मांग उठने लगी। आरोप
ये कि एसआईटी पर किसी को भरोसा नहीं है और एसआईटी राज्य सरकार के इशारे पर काम कर
रही है।
देर से जागे शिवराज
सिंह चौहान के पास विपक्ष के हमलों से बचने का कोई दूसरा रास्ता नहीं था लिहाजा मामले
की जांच हाईकोर्ट औऱ सुप्रीम कोर्ट के रास्ते सीबीआई के पास पहुंच चुकी है। सीबीआई
ने मामले की जांच शुरु तो कर दी है, लेकिन सवाल ये उठता है कि सुप्रीम कोर्ट से “तोते” की संज्ञा पा चुकी
सीबीआई की जांच पर भरोसा किया जा सकता है ?
ये सवाल उठना इसलिए
भी लाजिमी है क्योंकि सीबीआई पर केन्द्र सरकार के दबाव में काम करने के आरोप आज के
नहीं बरसों पुराने हैं। ये आरोप कितने सही हैं, कहा नहीं जा सकता लेकिन इन आरोपों
के चलते सीबीआई की विश्वसनीयता हमेशा सवालों के घेरे में रही है।
केन्द्र में यूपीए
सरकार थी तो विपक्षी दल सरकार पर सीबीआई को अपने सियासी फायदे के लिए इस्तेमाल
करने का आरोप लगाते रहे हैं। अब एनडीए सरकार है तो सत्ता से विपक्ष में आई
पार्टियां भी इस सुर में बात करने लगी हैं।
अगर दो साल, पांच
साल, दस साल में सीबीआई व्यापम घोटाले की जांच पूरी कर किसी निष्कर्ष पर पहुंचती
है तो क्या गारंटी है कि सीबीआई पर फिर सवाल नहीं उठाए जाएंगे ? जाहिर है मामले की
सीबीआई जांच की मांग करने वाले लोग ही उस वक्त उनके मन माफिक जांच रिपोर्ट न आने
पर सीबीआई की विश्वसनीयता पर फिर से सवाल खड़े करेंगे।
ये होता आया है और
पूरी उम्मीद भी है कि ये फिर से होगा, लेकिन इसके बाद भी किसी भी मामले की
निष्पक्ष जांच के लिए नाम सिर्फ सीबीआई का ही लिया जाता है। साथ ही सीबीआई पर
केन्द्र सरकार के ईशारे पर काम करने का भी आरोप भी लगाया जाता है। राजनीतिक दलों
की ये दोगुली भाषा अपनी समझ से तो बाहर है।
बहरहाल हम तो यही उम्मीद
करते हैं कि विश्वसनीयता के संकट से जूझ रही सीबीआई व्यापम घोटालों की एक-एक परत
को पूरी निष्पक्षता से खोलेगी और इससे जुड़े लोगों की मौत के राज पर से पर्दा उठेगा।
ताकि खूनी व्यापम से सने हाथों के पीछे के असली चेहरे बेनकाब हों।
deepaktiwari555@gmail.com
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