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मंगलवार, 16 सितंबर 2014

खुशी जरूर मनाईये लेकिन…

वो अब कह रहे हैं कि ये चुनाव स्थानीय मुद्दों पर लड़े गए थे और उन्हीं के आधार पर जनता ने वोट दिया और अपने नेता को चुना। जी हां मोदी और अमित शाह की भाजपा का उपचुनाव के नतीजों पर कुछ ऐसा ही कहना है। 33 विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव के जब नतीजे आए, जिनमें से 11 सीटें यूपी की भी थी तो 16 मई के चुनावी नतीजों पर इतराने वाले बीजेपी नेताओं की चेहरे सफेद पड़ चुके थे। अच्छे दिनों के वादों के साथ जिस मोदी लहर पर सवार होकर भाजपा केन्द की सत्ता में काबिज हुई थी, उसका असर फारिग होता दिखाई दिया।
यूपी में लोकसभा की 80 सीटों में से 71 सीटें जीतने वाली भाजपा उपचुनाव में अपनी सीटों को तक नहीं बचा पाई तो ऐसा ही कुछ हाल पीएम मोदी के गृहराज्य गुजरात में और आम चुनाव में मिशन 25 पूरा करने वाले राजस्थान में भी हुआ। उपचुनाव में भाजपा की जीत होती तो शायद भाजपा नेताओं के स्वर बदले हुए होते, वे मोदी सरकार के काम को फुल नंबर देते हुए इसे जनता का फैसला बताने में जरा सी भी देर नहीं करते लेकिन नतीजे मनमाफिक नहीं आए हैं तो भाजपा के स्वर भी बदले बदले से हैं।
16 मई से 16 सितंबर तक जनता का मिजाज इस तेजी से बदलेगी शायद ही किसी ने सोचा होगा लेकिन ये हुआ और इसका होना भाजपा के लिए सबसे बड़ा सिरदर्द है। वक्त है आत्ममंथन का, जीत की खुमारी से बाहर निकलने का, वर्ना जनता के मन को किसने पढ़ा है, हरियाणा और महाराष्ट्र में 15 अक्टूबर का चुनाव और 19 अक्टूबर के नतीजे भी ज्यादा दूर नहीं है। उसके बाद झारखंड और जम्मू-कश्मीर भी पीछे पीछे चल रहे हैं।
इस उपचुनाव के नतीजों ने भाजपा के चेहरे का रंग भले ही उड़ा दिया है, लेकिन कुछ चेहरों पर मुस्कान भी लौट आई है। शुरुआत करने के लिए यूपी से बेहतर जगह और क्या हो सकती है। तमाम मोर्चों पर विफल रहने के आरोपों से घिरे यूपी के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के चेहरे की मुस्कान को कैसे कोई भूल सकता है। अरसे बाद उपचुनाव के नतीजों ने अखिलेश को भी खिलखिलाने का मौका जो दे दिया।
ऐसा ही मुस्कान का इंतजार राजस्थान प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट को भी था, उनकी ये मुराद भी राजस्थान की 4 सीटों में से 3 सीट पर कांग्रेस की जीत के साथ पूरी हो गयी। हालांकि छोटी सी ही सही लेकिन खुशी भाजपा को भी मिली, पश्चिम बंगाल में आखिर बीजेपा का खाता खुल ही गया। भाजपाई इसकी खुशी भी मना रहे हैं, शायद भाजपा नेता भी बड़ी खुशी के चक्कर में छोटी खुशी को बेकार नहीं करना चाहते हैं। बढ़िया है, मनाईये खुशी...जरूर मनाईये, लेकिन ध्यान रखिए इस खुशी में इतना भी न डूब जाना कि 19 अक्टूबर को ये खुशी भी मयस्सर न हो सके।      


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