कुल पेज दृश्य

सोमवार, 30 सितंबर 2013

अगर मैं चारा खाने नहीं जाता !

लालू प्रसाद यादव भारतीय राजनीति का एक ऐसा नाम जिससे शायद ही कोई न जानता हो। लालू की खासयित भी यही है कि उनके न चाहने वाले भी लालू के सामने होने पर या टीवी पर होने पर लालू को सुने बिना नहीं रह सकते। लेकिन अपने ही एक कारनामे की वजह से अगले कुछ सालों तक लालू का मसखरा अंदाज शायद ही अब संसद में या फिर टीवी पर देखने या सुनने को मिले। ये लालू के प्रशंसकों के लिए बुरी ख़बर जरुर हो सकती है लेकिन भारतीय राजनीति के भविष्य के लिहाज से ये सीबीआई की विशेष अदालत का एक ऐतिहासिक फैसला है।  
सीबीआई की विशेष अदालत द्वारा बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव, पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र समेत 45 लोगों को चारा घोटाले से जुड़ी चाईबासा ट्रेजरी से फर्जी तरीके से 37 करोड़ 70 लाख रुपए निकालने के मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद इन्हें कितने वर्ष की कारावास होगी ये तो 3 अक्टूबर को सबके सामने आ ही जाएगा लेकिन ये फैसला बिहार और झारखंड की राजनीति के साथ ही देश की राजनीति पर गहरा असर डालेगा। ये इसलिए भी क्योंकि ये फैसला ऐसा वक्त पर आया है जब सुप्रीम कोर्ट पहले ही किसी भी मामले में सांसद या विधायक को दो वर्ष या उससे अधिक की सजा होने पर तत्काल प्रभाव से उनकी सदस्यता रद्द करने का आदेश जारी कर चुका है।
जाहिर है इसका गहरा असर लालू के राजनीतिक करियर पर पड़ेगा और बिहार में एक बार फिर से राजद को अपने दम पर वापस लाने का ख्वाब देख रहे लालू का ये ख्वाब पूरा होना अब इतना आसान नहीं रहेगा। 17 साल पहले जनता की गाढ़ी कमाई को चारा घोटाले के बहाने उड़ाने वाले राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने शायद ही उस वक्त सोचा होगा कि उनका ये कारनामा भविष्य में न सिर्फ उनके राजनीतिक भविष्य पर विराम लगा सकता है, बल्कि उन्हें जेल की हवा भी खिला सकता है। सत्ता के नशे में चूर रहे लालू प्रसाद यादव को शायद ही इस बात का आभास उस वक्त हुआ होगा लेकिन सीबीआई की विशेष अदालत द्वारा दोषी ठहराए जाने पर रांची की बिरसा मुंडा सेंट्रल जेल में आराम फरमा रहे लालू को अब जरुर इसका एहसास हो रहा होगा।
राजनीति में ऐसे लालूओं की कोई कमी नहीं है जो सत्ता के नशे में चूर होने के बाद जनता की गाढ़ी कमाई को भ्रष्टाचार और घोटालों के जरिए अपनी तिजोरियों को भरने में जरा भी नहीं शर्माते हैं। उन्हें शर्म नहीं आती जनता के उस विश्वास को ठेस पहुंचाने में, जो इस उम्मीद के साथ उन्हें वोट देकर लोकतंत्र के मंदिर तक पहुंचने का मार्ग प्रशस्त करते हैं कि वे न सिर्फ उनकी समस्याओं का समाधान करेंगे बल्कि विकास का दूत बनकर काम करेंगे। लेकिन अफसोस लालू जैसे राजनेता इस कसौटी पर खरे नहीं उतरते और सत्ता के नशे में मदहोश होकर जनता की गाढ़ी कमाई को उड़ाने का कोई मौका नहीं छोड़ते हैं।
लालू के इस हश्र से ये तो नहीं कहा जा सकता कि इससे भारत में भ्रष्टाचार का अंत हो जाएगा और सत्ता के नशे में चूर राजनेता अब कोई भ्रष्टाचार या घोटाले को अंजाम नहीं देंगे लेकिन इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि दागियों पर 10 जुलाई का सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला और लालू जैसे राजनेता का हश्र भ्रष्टाचारियों में एक भय का माहौल बनाने में अहम भूमिका जरुर निभाएगा।
ऐसे में जनता की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है कि वे अब भी अपने मत का इस्तेमाल जाति और धर्म के आधार पर करेंगे या फिर उम्मीदवार की योग्यता और ईमानदारी को ध्यान में रखकर करेंगे। क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने अपने 10 जुलाई के फैसले से चुनाव सुधार की दिशा में अपना काम तो कर दिया है, लेकिन ये अंजाम तक तभी पहुंच पाएगा जब देश की जनता चुनाव में दागियों को सबक सिखाएगी और सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले का असली मतलब अपनी वोट की ताकत से दागी नेताओं को समझाएगी।
आखिर में संसद में एफडीआई पर बहस के दौरान लालू प्रसाद यादव का नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज पर सुनाया गया एक शेर मुझे बार बार याद आ रहा है। साथ ही उस शेर के कुछ शब्दों को बदलकर सभी मित्रों को सुनाने का मन भी कर रहा है। लालू का कहा शेर कुछ यूं था – http://youtu.be/31yXIlicepI
मोहब्बत में तुम्हें आसूं बहाना नहीं आता।
अगर आपके बनारस में पान खाने नहीं आता।।

चारा घोटाले में रांची की बिरसा मुंडा सेंट्रल जेल में बंद लालू पर अब ये शेर कुछ यूं पढ़ने का मन कर रहा रहा है-
रांची की बिरसा मुंडा सेंट्रल जेल में नहीं जाता।
अगर 17 साल पहले मैं चारा नहीं खाता।।


deepaktiwari555@mail.com

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें