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गुरुवार, 19 सितंबर 2013

किसके दरबार में बहुगुणा ?

अपनी कुर्सी बचाने की जुगत में लगे उत्तराखंड के मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा कोशिश तो लाख कर रहे हैं कि कैसे भी उनकी बच जाए लेकिन इसे उनकी राजनीतिक समझ की कमी कहें या फिर कुछ और लाख जतन के बाद भी विवादों से अपना पीछा नहीं छुड़ा पा रहे हैं। बहुगुणा का हर एक फैसला उनकी मुश्किलें कम करने की बजाए बढ़ाता ही जा रहा है।
आपदा के 86 दिन बाद केदारनाथ में पूजा के बहाने आपदा प्रबंधन में सरकार की नाकामी और राहत कार्यों में ढिलाई के दागों को धोने की कोशिश में लगे बहुगुणा पर सवाल पूजा के फैसले को लेकर ही उठने लगे थे। केदारनाथ के मुख्य रावल भीमा शंकर लिंगम से लेकर उनकी अपनी ही पार्टी के सांसद सतपाल महाराज ने तक पूजा की तारीख को लेकर बहुगुणा पर सवाल खड़े करने में देर नहीं की। मुख्य रावल ने पूजा का तारीख उनकी राय से तय न किए जाने की आरोप लगाया तो सतपाल महाराज ने भी पूजा की टाईमिंग को लेकर सरकार के प्रति खुलकर अपनी नाराजगी जाहिर की।
11 सितंबर को पूजा हो भी गयी लेकिन मुख्यमंत्री बहुगुणा दिल्ली परिक्रमा के चक्कर में खुद केदारनाथ नहीं पहुंच पाए। हालांकि मुख्यमंत्री के पास इसके लिए एक बार फिर से खराब मौसम का बहाना था लेकिन असल में पूजा की तारीख से तीन दिन पहले बहुगुणा दिल्ली दरबार की परिक्रमा में व्यस्त थे।
दरअसल मुख्यमंत्री की कोशिश थी कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनाया गांधी व राहुल गांधी 11 सितंबर को पूजा के वक्त केदारनाथ पहुंचे ताकि वे आलाकमान को ये भरोसा दिला सकें कि आपदा के दंश को झेल रहे उत्तराखंड में हालात सामान्य हो रहे हैं और उनकी डगमगाती कुर्सी बच जाए, लेकिन बहुगुणा की ये कोशिश भी नाकाम साबित हुई। सोनिया और राहुल तो केदारनाथ पहुंचे नहीं, खुद मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा भी दिल्ली दरबार की पूजा के चलते केदारनाथ पूजा में नहीं पहुंच पाए।
मुख्यमंत्री का हवा में केदारनाथ पहुंचने का कार्यक्रम था लेकिन मौसम दगा दे गया और बहगुणा देहरादून में ही रह गए। जबकि भाजपा नेता और सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक पैदल मार्ग से केदारनाथ पहुंच गए। जाहिर है बहुगुणा अगर चाहते तो वे भी सड़क मार्ग से केदारनाथ पहुंच सकते लेकिन बहुगुणा ने ये जहमत नहीं उठाई क्योंकि वे तो दिल्ली दरबार की परिक्रमा में व्यस्त थे।
सड़क मार्ग से बहुगुणा जाते तो शायद उन्हें एहसास होता कि वास्तव में आपदा प्रभावित क्षेत्रों में रहने वाले लोग एक एक पल कैसे गुजार रहे हैं, कैसे वे आज भी वे हर पल मौत के साए में जिंदगी बसर करने पर मजबूर हैं लेकिन अफसोस बहुगुणा को शायद आपदा प्रभावितों के दर्द को समझने की बजाए चिंता इस बात की ज्यादा थी कि कैसे अपनी कुर्सी बचायी जाए।
आसमान से तो वैसे भी सिर्फ बहती नदियां और हरे भरे पहाड़ ही दिखाई देते हैं, जिंदगी और मौत से जंग लड़ रहे आपदा प्रभावितो का दर्द नहीं। इस दर्द को समझने के लिए उनके बीच जाना होगा, उनके साथ कुछ वक्त गुजारना होगा लेकिन सरकार के मुखिया के पास राहुल गांधई को खुश करने के लिए दिल्ली यूनिवर्सिटी में एनएसयूआई के प्रत्याशियों के लिए प्रचार कर वोट मांगने का तो वक्त है लेकिन आपदा से जूझ रही अपनी प्रजा का हाल जानने का वक्त नहीं। आपदा के बाद से ही उडनखटोलों से तो मुख्यमंत्री और उनके नुमाइंदों ने आपदा प्रभावित क्षेत्रों के दौरे के नाम पर खूब हवाई सैर की लेकिन जमीन पर उतरकर आपदा प्रभावितों का दर्द समझने की हिम्मत ये लोग नहीं जुटा सके।    
बहरहाल केदारनाथ में जैसे तैसे पूजा जरुर शुरु हो गयी है लेकिन जमीनी हकीकत ये है कि पीड़ितों की मदद के नाम पर देशभर से भरपूर फंड जुटाने के बाद भी सरकार आपदा पीडितों के जख्मों को भरने में नाकाम साबित हुई है। मुख्यमंत्री पूजा के बहाने हालात सामान्य होने का दिखावा भले ही करने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन आपदा प्रभावित क्षेत्रों में हालात आज भी बद से बदतर हैं। सरकारी अमला राहत एवं बचाव कार्य में कितनी संजीगदी से लगा था इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि आपदा के करीब तीन माह बाद भी उत्तराखंड की पहाड़ियां नर कंकाल उगल रही है तो कई क्षेत्रों में जैसे तैसे अपनी जान बचाने में कामयाब रहे लोग आज भी राहत एवं पुनर्वास की बाट जोह रहे हैं।



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