2014 को ध्यान में
रखते हुए चार महत्वपूर्ण राज्यों दिल्ली, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान के
विधानसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस अध्यक्ष और यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी ने देश
के गरीबों का पेट भरने का इंतजाम करने में कोई कसर नहीं छोड़ी और लोकसभा में खाद्य
सुरक्षा विधेयक ध्वनिमत से पारित हो गया..!
विपक्ष ने भी संशोधन के जरिए
जरुर इसमें अपनी भूमिका बनाने की कोशिश की लेकिन वास्तव में विपक्ष चाहकर भी इसका
विरोध नहीं कर सकता था लिहाजा ये जानते हुए भी कि ये “खाद्य सुरक्षा
विधेयक” नहीं बल्कि “वोट सुरक्षा विधेयक” भाजपा सहित तमाम
विपक्षी दलों ने इस बिल के रास्ते में अड़चन लगाने के अपने इरादे छोड़ दिए..! हालांकि बिल की
टाइमिंग को लेकर भाजपा के मुरली मनोहर जोशी से लेकर सपा के मुलायम सिंह यादव ने
जरुर बहस के दौरान अपनी दिल की भड़ास बाहर निकाली..!
खाद्य सुरक्षा
विधेयक की अगर बात करें तो इससे देश की 67 फीसदी आबादी को हर महीने 5 किलो अनाज प्रति
व्यक्ति के हिसाब से बाजार से कम मूल्य पर दिया जाएगा। चावल 3 रुपये प्रति किलो के
हिसाब से तो गेंहू 2 रुपये प्रति किलो के
हिसाब से जबकि बाकी अनाजों को 1 रुपये प्रति किलो के आधार पर देश की 75 फीसदी ग्रामीण आबादी और 50 फीसदी शहरी आबादी को
दिया जाएगा..!
बहुत अच्छी बात है
कि कम से कम कोई गरीब परिवार जैसा सरकार सोच रही है कि भूखा नहीं सोएगा और उस खाने
के अधिकार के जरिए सरकारी राशन की दुकान से उसके हिस्से का अन्न मिलेगा लेकिन सबसे
बड़ा सवाल ये है कि जिस नीयत से खाने का अधिकार बिल लाया गया है, क्या वास्तव में क्रियान्वयन
तक ये नीयत कायम रह पाएगी..!
देश की 67 फीसदी
आबादी यानि की करीब 80 करोड़ लोगों का पेट भरने के लिए अनाज की मांग 5.5 करोड़ मिट्रिक टन से
बढ़कर 6.1 मिट्रिक टन हो
जाएगी। साथ ही फूड सब्सिडी लागू होने पर सरकार के खजाने पर अतिरिक्त बोझ करीब 20,000 करोड़ रुपये होगा।
इसके लिए करीब 6.123 करोड़ टन फूडग्रेन्स
की जरूरत होगी और फूड सब्सिडी बिल पर कुल फूड सब्सिडी कवर करीब 1.3 लाख करोड़ रुपये
होगा।
क्या दम तोड़ती
अर्थव्यवस्था के बीच सरकार इस योजना को अमलीजामा पहनाने के लिए फंड जुटाने के साथ
ही संसाधनों का इंतजाम कर पाएगी..?
क्या 80 करोड़ लोगों
का पेट भरने के लिए दिल्ली से जो पैसा चलकर राज्यों में जाएगा और फिर पूरे सिस्टम
के जरिए गरीबों तक अन्न पहुंचेगा वह क्या उतनी ही मात्रा में पहुंचेगा और उसकी
गुणवत्ता पर कोई बदलाव नहीं आएगा..?
क्या गारंटी है कि दूसरी
सरकारी योजनाओं की तरह ये योजना भी भ्रष्टाचार की भेंट नहीं चढ़ेगी..? क्या वास्तव में
गरीबों को उनका हक मिल पाएगा और उनके हिस्से का खाद्यान्न पीछे के दरवाजे से निजी
गोदामों में नहीं जाएगा..?
ऐसे तमाम सवाल हैं
जो खाने के अधिकार के सही क्रियान्वयन को लेकर लगातार जेहन में उठ रहे हैं..! ये सवाल उठने इसलिए
भी लाजिमी है क्योंकि इससे पहले भी ऐसी तमाम सरकारी योजनाएं हैं, जो शुरु तो की
गयी थी आमजन के लिए लेकिन वास्तविक हकदारों को उन योजनाओं का लाभ कभी मिल ही नहीं
पाया..! सबसे बड़ा और सबक
लेने वाला उदाहरण भी यूपीए सरकार की एक औऱ महत्वकांक्षी योजना “मनरेगा” ही है, जिसके बूते
यूपीए ने सत्ता सुख तो भोगा लेकिन इस योजना ने भ्रष्टाचार के निए नए रिकार्ड खड़े
किए..!
121 करोड़ की आबादी
वाले जिस देश में भूखों की तादाद ही करीब 45 करोड़ से अधिक हो, भूख से हर रोज
हजारों लोग दम तोड़ते हों उस देश को शायद ऐसे किसी योजना की सबसे ज्यादा जरुरत है
लेकिन बड़ा सवाल यही है कि क्या ये विधेयक भूखे सोने वाले के भूख के डर को कभी
पूरी तरह मिटा पाएगा..?
वहीं खाद्य सुरक्षा
विधेयक आगामी चुनाव में कांग्रेस के लिए वोट सुरक्षा विधेयक बन पाएगा या नहीं ये
तो चुनाव नतीजों के बाद ही तय होगा लेकिन भारत जैसे देश में जिसकी नसों में
भ्रष्टाचार का कीड़ा पूरी रफ्तार से दौड रहा है वहां पर ये विधेयक भ्रष्टाचारियों
के लिए एक सोने का अंडा देने वाली मुर्गी की तरह दिखाई दे रहा है..!
हालात तो यही बयां
कर रहे हैं कि 80 करोड़ लोगों का पेट भरे न भरे लेकिन ये योजना भ्रष्टाचारियों की
जेबें जरुर भर देगी..! 80 करोड़ लोगों को खाद्य सुरक्षा मिले या न मिले लेकिन भ्रष्टाचार करने वालों
को अपने भविष्य के लिए कालेधन की सुरक्षा जरुर मिलेगी..!
उम्मीद तो यही करते
हैं कि ऐसा न हो और 80 करोड़ क्या भारत के एक भी नागरिक को कभी भूखे पेट न सोना
पड़े और सोनिया गांधी ने जो प्रतिबद्धता इस बिल को लेकर दिखाई है और जो वादा देश
की जनता से किया है वो पूरा हो और भविष्य में कभी किसी सर्वे में ये न कहा जाए कि
विश्व के 95 करोड़ भूखों में से लोगों में से 45 करोड़ भारत में हैं..!
deepaktiwari555@gmail.com
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