राजनीति में सत्ता की डगर आसान नहीं होती।
हो भी कैसे ये रास्ता जनता के दिलों के साथ ही विरोधियों के दरवाजे से भी होकर
गुजरता है। जनता का दिल को कहीं न कहीं पसीज भी जाता है लेकिन अपने विरोधी को
चारों खाने चित करने का कोई मौका नहीं छोड़ते हैं..!
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह
ने अपनी टीम का ऐलान क्या किया विरोधियों ने यहां भी घेराबंदी का कोई मौका नहीं
छोड़ा। कांग्रेसी इसे 2014 में भाजपा की लुटिया डुबोने वाली टीम करार दे रहे हैं
तो दूसरे विरोधी भी निशाना साधने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। हालांकि भाजपा
नेता भले ही इस सब से इत्तेफाक न रखते हों लेकिन ये कारनामा करने में वे भी पीछे
नहीं रहे जब कांग्रेस ने राहुल गांधी को उपाध्यक्ष बनाकर कांग्रेस में दूसरी नंबर
की पोजिशन दी उस वक्त भाजपा भी कुछ ऐसा ही राग अलाप रही थी जो कि अब कांग्रेसी
नेता अलाप रहे हैं..!
सही मायने में शायद यही राजनीति है कि राजनीतिक
दल और उनके नेता खुद को मजबूत करने की बजाए अपने विरोधियों को कमजोर करने में अपना
पूरी ताकत लगाते हैं..! वे खुद की उपलब्धियों की बजाए विरोधियों
की कमजोरियों और नाकामियों को हथियार बनाते हैं..! और इसी के बल पर
सत्ता हासिल करने का ख्वाब देखते हैं..!
राहुल गांधी की ताजपोशी के वक्त ये काम
भाजपा नेताओं ने किया तो राजनाथ सिंह की नई टीम के एलान और संसदीय बोर्ड में गुजरात
के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी की एंट्री पर अब कांग्रेसी इस काम को कर रहे हैं। लेकिन
सवाल ये है कि क्या संसदीय बोर्ड में नरेन्द्र मोदी की एंट्री के बाद वाकई में
2014 में मुकाबला राहुल गांधी बनाम नरेन्द्र मोदी होगा..? क्या एनडीए की सरकार बनने की स्थिति में प्रधानमंत्री की कुर्सी के लिए
मोदी की राह भी उतनी ही आसान है जितनी कि यूपीए में राहुल गांधी की..?
राहुल गांधी भले ही पीएम की कुर्सी की
दावेदारी से इंकार करते रहे हों लेकिन कांग्रेसी नेताओं का चाटुकारिता के बहाने ही
सही लेकिन बार – बार ये कहना कि राहुल गांधी की कांग्रेस की सरकार बनने की स्थिति
में प्रधानमंत्री बनेंगे कहीं न कहीं जाहिर करता है कि 2014 से ऐन पहले राहुल
गांधी को उपाध्यक्ष बनाकर कांग्रेस में नंबर दो की कुर्सी पर काबिज करना कहीं न
कहीं इसका एक संकेत है..! इसमें कोई दो राय भी नहीं कि अगर 2014
में यूपीए की सरकार बनने की स्थिति आती है तो पीएम की कुर्सी के लिए राहुल के नाम
पर कांग्रेस में आपत्ति करने की हिम्मत शायद ही किसी नेता में होगी..!
वहीं भाजपा की अगर बात करें तो गुजरात के
मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी की लगातार बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए ही शायद भाजपा
ने मोदी को संसदीय बोर्ड में शामिल कर कहीं न कहीं मोदी के नेतृत्व में 2014 का आम
चुनाव लड़ने के संकेत दिए हैं..! लेकिन मोदी के नाम पर पार्टी के अंदर ही
नेताओं का एकजुट न होना और गंठबंधन के सहयोगियों का मोदी के नाम पर आंखे तरेरना मोदी
की राह में रोड़े अटकाता भी दिखाई दे रहा है..! भाजपा भले ही चुनाव मोदी के नेतृत्व में
लड़ने का फैसला कर ले लेकिन भविष्य में अगर एनडीए की सरकार बनने की स्थिति बनती है
तो उस वक्त पीएम की कुर्सी को लेकर घमासान मचना तय है।
कोई कुछ भी कहे लेकिन 2014 की रणभेरी में
राहुल गांधी बनाम नरेन्द्र मोदी के बीच मुकाबले की पटकथा लिखी जा चुकी है और अपनी –
अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए सियासी जोर आजमाईश शुरु हो चुकी है।
जीत का सेहरा किसके सिर सजेगा ये तो जनता
जनार्दन को तय करना है लेकिन पीएम की कुर्सी पर बैठने का ख्वाब तो राहुल और मोदी
के अलावा भी कई पाले बैठे हैं..! ऐसे में देखना ये होगा कि 2014 में फिर
किसी मनमोहन सिंह की किस्मत उसे प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठाती है या फिर भाजपा
के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी की तरह कुछ लोगों के ख्वाब भी पीएम इन वेटिंग की
खिड़की पर ही दम तोड़ देंगे..!
deepaktiwari555@gmail.com
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