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बुधवार, 7 नवंबर 2012

...और उसने रिक्शा पंचर कर दिया


सोमवार का दिन था...रोज की तरह घर से ऑफिस के लिए निकला...वही सड़क थी...और वही रोज का ट्रैफिक जाम...हर कोई ऑफिस जाने या अपने काम पर जाने की जल्दी में था...कई गाड़ियां आढ़ी -  टेढ़ी खड़ी थी...ये वो गाडियों थी जिनके चालक जल्दी के चक्कर में कई लोगों को इस जाम में फंसा चुके थे...कुछ एक रिक्शा चालक भी इस जल्दबाजी में निकलने की पुरजोर कोशिश में लगे थे। इसी बीच गाड़ियों के इंजन के शोर के बीच अचानक ट्रैफिक को व्यवस्थित करने की कोशिश कर रहे ट्रैफिक पुलिस के जवान की चिल्लाने की आवाज ने ध्यान उसकी तरफ खींचा तो नजारा कुछ अलग था। टैफिक पुलिस का जवान हाथ में लोहे का एक नुकीला सा उपकरण लिए एक रिक्शा चालक पर चिल्ला रहा था..उसने पहले रिक्शा चालक को दो चार थप्पड़ रसीद किए और फिर उस नुकीले उपकरण से रिक्शे के आगे के पहिए को पंचर कर दिया। रिक्शा चालक शायद इस बात की जल्दी में था कि जल्दी जाम से निकल जाएगा तो शाम तक दो – चार सवारियां ज्यादा ढ़ो कर कुछ ज्यादा पैसे कमा लेगा...लेकिन ट्रैफिक पुलिस के जवान ने उसकी जल्दी को देरी में तो बदला ही साथ ही सुबह से कमाए कुछ पैसों को रिक्शे के पंचर जोड़ने में खर्च कराने का इंतजाम भी कर दिया। ये महज एक घटना थी...जो अक्सर आपने भी देखी होगी...लेकिन शायद इस पर गौर न किया हो। ये घटना अपने आप में कई सवाल खड़े करती है। क्या ट्रैफिक जाम के लिए सिर्फ वो रिक्शा वाला ही जिम्मेदार था या फिर चमचमाती दो – चार कारें जो जल्दी निकलने के चक्कर में आढ़ी – तिरछी खड़ी थी...और पूरे ट्रैफिक को जाम कर रही थी...या फिर वो भी उतनी ही जिम्मेदार थी। जाहिर है जवाब होगा कि शायद चमचमाती लंबी कारों के चालक भी उतने ही दोषी थे...लेकिन फिर सवाल ये उठता है कि ट्रैफिक पुलिस के उस जवान ने या कहें आधिकतर जवान अलग – अलग जगहों पर ऐसी स्थिति में सिर्फ रिक्शा चालक पर ही क्यों अपना गुस्सा उतारते हैं। शायद इसलिए कि उन्हें रिक्शा चालक अपना गुस्सा उतारने का आसान तरीका लगता है और वे ये सोचते हैं कि रिक्शा चालक कम से कम उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकता। ट्रैफिक को जाम कर बैठी किसी चमचमाती लंबी गाड़ी के चालक को अगर टोकने या रोकने का प्रयास किया तो शायद उस गाड़ी वाले की पहुंच या फिर रसूख कहीं उसका तबादला या उसे सस्पेंड न करवा दे। हालांकि ऐसा नहीं है कि सभी ट्रैफिक पुलिसकर्मी ऐसे सोचते हैं या ऐसा करते हैं...कुछ एक अपवाद भी हमें देखने को मिलते हैं जो सिर्फ अपनी ड्यूटी निभाते हैं और नियम तोड़ रही चाहे वो चमचमाती लंबी गाड़ी हो या फिर रिक्शा या ऑटो चालक वे सभी को एक तराजू में तोलते हैं। ऐसे में सवाल ये उठता है कि आखिर ऐसे ट्रैफिक पुलिस कर्मी जिनकी बड़ी तादाद रिक्शे को पंचर करने में विश्वास रखती है..आखिर उनके ऐसा करने की बड़ी वजह क्या है। वैसे शायद ये हमारे सिस्टम में ही है कि गरीब, लाचार और बेसहारा लोगों पर जुल्म कर लो...क्योंकि उनकी सुनने वाला कोई नहीं है...और यही तो होता आ रहा है...हर जगह बेसहारा, गरीब और लाचार दबाए जा रहे हैं...जबकि चमचमाती लंबी गाड़ी वाले...ऊंची पहुंच वाले रसूखदारों को हर जगह पहली पंक्ति में जगह मिलती है...और बिना पंक्ति में लगे ही उनके सारे काम अंदरखाने हो जाते हैं। आप सरकारी सस्ते गल्ले की दुकान का उदाहरण ले लें या फिर ड्राईविंग लाईसेंस बनवाने पहुंच जाएं...हर जगह ऐसा ही होता है...शायद अधिकतर लोगों ने इसको महसूस भी किया होगा। सरकारी सस्ते गल्ले की दुकान खोलने के पीछे की भावना शायद यही थी कि गरीबों को बाजार से कम मूल्य पर सस्ती दर पर राशन मिल सके...लेकिन गरीबों के लिए आने वाला आधे से ज्यादा राशन ब्लैक हो जाता है। ऐसा एक नहीं तमाम उदाहरण हैं। ऊपर से लेकर नीचे तक मंत्रियों से नेता तक, अफसरों से लेकर बाबू तक हर कोई कहीं न कहीं...किसी न किसी रूप में इस सब के लिए जिम्मेदार हैं...मंत्री और आला अफसर सोचते तो हैं कि बाबू और कर्मचारी अपना काम ईमानदारी से करें...लेकिन खुद पर अपनी कही बातों को लागू नहीं करते। छत में अगर छेद होने से लीकेज हो रहा है तो...जाहिर है कि लीकेज ठत का छेद ऊपर से बंद करने पर ही रूकेगा न कि नीचे से बंद करने पर...लेकिन हमारे मंत्री, नेता, अफसर सोचते हैं कि छेद नीचे से बंद हो न कि ऊपर से। क्योंकि शायद वे जानते हैं कि छेद ऊपर से बंद कर दिया तो लीकेज की तरह होने वाली उनकी कमाई भी बंद हो जाएगी। बहरहाल बात रिक्शा पंचर होने के दृश्य से निकली थी...इसकी गूंज बहुत दूर तक जाती है...आम आदमी इस पर सोचकर परेशान भी होता है...लेकिन शायद इन नेताओं और अफसरों के कानों तक ये गूंज नहीं पहुंचती...इनकी आंखे शायद इस दृश्य को देखकर अनदेखा कर देती हैं...और यही वजह है कि एक ट्रैफिक पुलिसकर्मी रिक्शा चालाक को थप्पड़ मारने से गुरेज नहीं करता...उसका रिक्शा पंचर करने से भी नहीं हिचकिचाता...और हिचकिचाता है तो बस रिक्शे के साथ ही ट्रैफिक को जाम कर रही उस लंबी चमचमाती गाड़ी की तरफ देखने से...उस गाड़ी में सवार रसूखदार से कुछ कहने से।

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