राजनीति
पांच राज्यों उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, मणिपुर औऱ गोआ में चुनाव की सरगर्मियां अपने चरम पर हैं...सबकी निगाहें इन चुनाव में हैं। देश की राजनीति में दखल रखने वाले सबसे अहम प्रदेश उत्तर प्रदेश में अपना झंडा बुलंद करने के लिए सभी पार्टियों ने ऐडी चोटी का जोर लगा रखा है। 403 विधानसभा सीटों वाले उत्तर प्रदेश में एक बार फिर से महिलाओं के सहारे ही राजनीतिक पार्टियां सत्ता के गलियारों तक पहुंचने का ख्वाब देख रहे हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में सबका सूपडा साफ करने वाली बसपा की कमान जहां एक महिला मायावती के हाथ में है। वहीं भाजपा उमा भारती के सहारे तो कांग्रेस रीता बहुगुणा जोशी के सहारे उत्तर प्रदेश में अपनी खोई जमीन वापस पाने की फिराक में हैं। हालांकि कांग्रेस के लिए राहुल गांधी ने अपनी पूरी ताकत इस चुनाव में झोंक दी है...लेकिन मुख्य भूमिका में कांग्रेस की प्रदेशाध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी ही हैं...दूसरी तरफ भाजपा ने मप्र की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती के सहारे उत्तर प्रदेश में अपनी पूरी ताकत लगा दी है। कुल मिलाकर इस चुनाव के जरिए नारी शक्ति एक बार फिर से देश को अपनी ताकत का एहसास कराने को बेताब दिखाई दे रही है। हाल ही में पश्चिम बंगाल व तमिलनाडु में हुए विधानसभा चुनाव के नतीजों भी हम नहीं नकारा सकते। दोनों ही राज्यों में दबी – कुचली व उपेक्षित माने जाने वाली नारी ने एक बार फिर से अपनी शक्ति का एहसास कराया...और अपनी विजयी पताका फहराते हुए राजनीति हल्कों में खलबली मचा दी। पश्चिम बंगाल में जहां 34 सालों से कायम वामपंथी सरकार को जनता ने नकार दिया...वहीं ऐसा ही कुछ तमिलनाडु में भी घटा औऱ करुणानिधी सरकार को भी जनता ने आइना दिखा दिया। पश्चिम बंगाल औऱ तमिलनाडु के विधानसभा चुनावों में जीतने वाली दोनों पार्टियों तृणमूल कांग्रेस औऱ अन्ना द्रमुक की कमान महिला ममता बनर्जी औऱ जयललिता के हाथ में थी...जनता ने पुरूष की बजाए महिला नेतृत्व पर अपनी मुहर लगायी। जो देश में महिलाओं के लिहाज से एक सकून देने वाली खबर थी...और इससे निश्चित ही महिलाओं में नयी ऊर्जा का संचार भी हुआ है। राजनीति में महिलाओं ने समय समय पर अपनी शक्ति का एहसास सबको कराया है। बात भले ही सोनिया गांधी की करें जब सोनिया ने 20 साल पहले 21 मई 1991 को अपने पति व तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के बाद देर से ही सही कांग्रेस की कमान संभाली और सबके भारी विरोध के बाद भी एक बार फिर से कांग्रेस को स्थयित्व प्रदान किया.....औऱ साबित कर दिया कि महिला की ताकत क्या होती है।
...और यही काम पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी ने वामपंथी सरकार को परास्त करके दिखा दिया। जिसके बाद ममता ने पश्चिम बंगाल की पहली महिला मुख्यमंत्री बनने का गौरव हासिल किया वहीं वह देश में 14वीं महिला मुख्यमंत्री भी बनीं.....वहीं दूसरी तरफ जयललिता ने दूसरी बार तमिलनाडु की मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली।
.....सिंगूर और नंदीग्राम आंदोलन के जरिए जनता में अपनी पैठ बना लेने वाली ममता बनर्जी की सादगी औऱ मेहनत का ही नतीजा था कि जनता ने वाममोर्चा को नकारते हुए ममता की तृणमूल कांग्रेस पर अपना भरोसा जताया...औऱ भारी बहुमत से विजयी बनाया...वहीं दूसरी बार तमिलनाडु के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने वाली जयललिता ने भी भ्रष्टाचार के समुद्र में गोते लगा रही द्रमुक सरकार के खिलाफ जनता का विश्वास जीतने में सफल रही।
...पश्चिम बंगाल औऱ तमिलनाडु विधानसभा चुनावों के नतीजों के जरिए नारी ने भारत ही नहीं समूचे विश्व को अपनी शक्ति का एहसास करा दिया..जो काम इससे पहले दिल्ली में शीला दीक्षित औऱ उत्तर प्रदेश में मायावती कर चुकीं थी। पश्चिम बंगाल व तमिलनाडु में जनता ने महिला नेतृत्व पर भरोसा दिखाकर राजनीति को अपनी बपौती समझने वाले राजनेताओं को करारा जवाब भी दिया है। एक बार फिर से सबसे बडे प्रदेश उत्तर प्रदेश में चुनावी बिसात बिछ चुकी है...औऱ नारी एक बार फिर से अपनी शक्ति दिखाने को बेताब है।
दीपक तिवारी
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